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भारत की चंदा वसूल पार्टियां

१० सितम्बर २०१२

भारत में करोड़ों लोग अभी भी 20 रुपये से कम में प्रतिदिन गुजारा करते है, लाखों लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल पाता, लेकिन देश की राजनीतिक पार्टियां चंदे के रूप में हजारों करोड़ रुपये कमा रही हैं.

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तस्वीर: Reuters

ये खुलासा राजनीतिक दलों की आयकर रिपोर्ट और उनके द्वारा चुनाव आयोग में चंदा देने वालों के बारे में दी गई जानकारी के अध्ययन के बाद हुआ है. भारत की राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर 2004 के बाद से 4662 करोड़ रुपये चंदा वसूला है. ये रकम 2011-12 के केन्द्रीय बजट में माघ्यमिक शिक्षा के लिए आवंटित 3124 करोड़ रुपये से कहीं ज्यादा है.

Indien Lal Krishna Advani
तस्वीर: AP

चंदा वसूलने की दौड़ में सत्ताधारी कांग्रेस सबसे आगे है. भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कांग्रेस ने साल 2004 के बाद से अब तक 2008 करोड़ रुपये चंदा वसूला है. संसद में विपक्ष की भूमिका निभा रही बीजेपी दूसरे नंबर है. बीजेपी ने इस दौरान 994 करोड़ रुपये चंदे के रूप में इकट्ठा किया है.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और इलेक्शन वॉच नाम के दो गैर सरकारी संगठनों ने एक साझा प्रेस कांफ्रेस कर इस बारे में जानकारी दी है. इन संगठनों ने देश की 23 राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे के बारे में जानकारी इकट्ठा की और फिर उस पर रिपोर्ट तैयार की. इस रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस की ज्यादातर आमदनी कूपन बेचने से हुई है. खासतौर से जबसे कांग्रेस सत्ता में आई है तब से तो कूपन पर मिलने वाला चंदा और बढ़ गया है. इस दौरान उसे दान के रूप में महज 14.42 प्रतिशत ही मिले हैं. कांग्रेस को दान देने वालों में टाटा और जिंदल से लेकर एअरटेल का भारती ट्रस्ट और अदानी ग्रुप शामिल हैं.

Indien Wahlen Wahlprogramme
तस्वीर: Suhail Waheed

हालांकि बीजेपी की कहानी इसके उलट है. बीजेपी ने ज्यादातर चंदा कॉर्पोरेट घरों से वसूला है. इसकी कमाई का 81.47 फीसदी हिस्सा चंदे से आया है. बीजेपी को चंदा देने वालों में विवादित कंपनी वेदांता भी शामिल है.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक सदस्य प्रो. जगदी छोकर कहते हैं, "ये राजनीतिक दलों का ब्लैक बॉक्स है. इस देश में भ्रष्टाचार का मुख्य स्रोत राजनीतिक दान है. राजनीतिक दलों को मिलने वाले पैसों को नियंत्रित करके भ्रष्टाचार को समाप्त तो नहीं किया जा सकता लेकिन उसे काफी हद तक कम किया जा सकता है."

Prakash Karat im Gespräch mit der Presse in Patna
तस्वीर: UNI

एनजीओ की रिपोर्ट में सबसे दिलचस्प बात ये उभर कर सामने आई है कि कुछ संगठन ऐसे हैं जिन्होंने कांग्रेस और बीजेपी दोनों को चंदा दिया है. आदित्य बिड़ला ग्रुप से जुड़े हुए जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट ने कांग्रेस को 36.4 करोड़ का चंदा दिया तो बीजेपी को इसी ट्रस्ट ने 26 करोड़ का चंदा दिया.

चंदे की दौड़ में राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियां सबसे आगे हैं तो क्षेत्रीय पार्टियां भी पीछे नहीं. 2004 से 2011 के बीच में दलितों की बहुजन समाज पार्टी ने 484 करोड़ का चंदा इकट्ठा किया. इसके ठीक बाद नंबर आता है गरीबों और मजदूरों की राजनीति करने वाली सीपीएम का. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 2004 से 2011 के बीच 417 करोड़ रुपये बतौर चंदा इकट्ठा किया. इस पायदान पर समाजवादी पार्टी 278 करोड़ के साथ सीपीएम से पीछे है. चंदा इकट्ठा करने के मामले में सबसे कमजोर सीपीआई है. सीपीआई इन सालों में 6.7 करोड़ रुपये का ही चंदा इकट्ठा कर सकी.

दूसरी राजनीतिक पार्टियों जैसे तृणमूल ने इस दौरान 9 करोड़, शिवसेना ने 32 करोड़, रामविलास पासवान की लोक जन शक्ति पार्टी ने 4 करोड़, लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद ने 10 करोड़ और फॉरवर्ड ब्लॉक ने 98 लाख रुपये का चंदा हासिल किया है. गैर सरकारी संगठनों की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि कुछ ऐसे क्षेत्रीय दल भी हैं जिन्होने कभी चुनाव आयोग को अपनी आय के स्रोतों के बारे में जानकारी ही नहीं दी है.

वीडी/एमजे (पीटीआई)

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