भारत की रग रग में हैं महात्मा गांधी
भारत के लिए महात्मा गांधी सिर्फ राष्ट्रपिता ही नहीं एक विचार है जो लहू बन कर उनकी रगों में दौड़ता है. राजनीति तो बस बानगी है, रोजमर्रा के जीवन से लेकर कला की विधाओं तक में उनकी गहरी छाप नजर आती है.
नावु
कन्नड़ में नावु का मतलब है हम साथ हैं. बापू जब चलते थे तो पूरा देश उनके साथ खड़ा हो जाता था. दूर से देखो तो सिर्फ गांधी टोपी नजर आती थी लेकिन उसके नीचे अलग अलग चेहरे. खड़ाऊं से बनी इस कलाकृति में उसी भावना, उसी संदेश को दिखाने की कोशिश की गई है. हर खड़ाऊं पर एक अलग चीज रखी है, जो बताती है कि साथ चलने वाले लोग कितनी अलग अलग दुनिया से आते हैं पर बापू के साथ सब हैं.
जी आर इराना
छह सौ से ज्यादा खड़ाऊं से मिल कर बनी यह कलाकृति जी आर इराना की है जो मूल रूप से कर्नाटक के हैं लेकिन दिल्ली में रह कर कला की साधना कर रहे हैं. वो मानते हैं कि हम नाम लें या ना लें, महात्मा गांधी हर घड़ी हमारे दिल में बसते हैं और भारत के हर शख्स के जीवन में बापू का असर है.
शेल्टर
इस कलाकृति में उन ईंटों का इस्तेमाल हुआ है जो प्रदर्शन करने वाली उग्र भीड़ कभी प्रशासन पर फेंकती है, तो कभी पुलिस उन पर. अलग अलग जगह से जमा की गई ईंटों के इन टुकड़ों से एक छोटी सी झुग्गी बना कर उन लोगों का दर्द दिखाने की कोशिश की गई है जो अपना घर छोड़ कर दूसरी जगह जाने पर विवश होते हैं. घर छोड़ना हमेशा सुखद नहीं होता.
असीम पुरकायस्थ
असम के असीम पुरकायस्थ 2014 से ही इन ईंटों को जमा कर रहे हैं. वो उन्हें राइस पेपर पर माउंट करते हैं और फिर उनकी पहचान बताने के लिए कुछ चित्र बना देते हैं. जैसे कि मंदिर से उठाया तो देवता का, किसानों के प्रदर्शन से उठाया तो उनकी आकृति बना दी. उनके पीछे लगी कलाकृति में वो चेहरे की अलग अलग भंगिमाओं से कुछ कहना चाहते हैं.
कवरिंग लेटर
महात्मा गांधी ने 23 जुलाई 1939 को जर्मन तानाशाह हिटलर को एक पत्र लिख कर अनुरोध किया था कि वो संभावित जंग को रोकने की दिशा में काम करें. गैलरी के पूरे हिस्से में पत्र को प्रोजेक्टर की मदद से दिखाया गया है जिसमें शब्द भाप की स्क्रीन पर उभरते हैं और उनकी छाया जमीन पर पड़ती है.
जीतीश कलात
जीतीश कलात को यह पत्र मणि भवन में दिखा था. पत्र छोटा सा है लेकिन अहिंसा का अनुसरण करने वाले महात्मा गांधी का हिंसा के लिए कुख्यात हुए हिटलर को पत्र लिखना एक अजीब घटना थी. महात्मा गांधी ने पत्र में यह भी बताया था कि बहुत से लोग चाहते थे कि वो यह पत्र लिखें लेकिन उन्हें यह सही नहीं लग रहा था हालांकि उन्होंने आखिरकार इसे लिखा.
ऑफ बॉडीज आर्मर एंड केज
मानव सभ्यता की इतनी सदियां बीत जाने के बाद भी औरतों की सुरक्षा खतरे में है. तस्वीर में दिख रही कलाकृति बेंत से बनाया एक कवच है. बेंत इसलिए क्योंकि उसे मोड़ना तो आसान है लेकिन तोड़ना नहीं उसकी दृढ़ता और लचक दोनों ही काम आती है, महिलाएं भी ऐसी ही होती हैं. यह कवच उन्हें शायद थोड़ा सुरक्षित तो कर दे लेकिन हर वक्त इसके भीतर रहना भी मुसीबत है.
शकुंतला कुलकर्णी
शकुंतला कुलकर्णी इस कवच को पहन अलग अलग जगहों पर गईं. लोगों ने कौतूहल से देखा और उसके पीछे की सोच को भी समझने की कोशिश की, शकुंतला यही चाहती थीं. प्राकृतिक चीजों से हाथ की मेहनत और बेजोड़ सोच से बनाए गए इस कवच का संदेश जन जन तक पहुंचे तो महिलाओं को लेकर पुरुषों के रवैये में शायद थोड़ा बदलाव आए.
हिंसा
अलग अलग खानों में दिख रही चीजें या तस्वीरें किसी ना किसी रूप में हिंसा या उसके असर को बयान करती हैं. कहीं इस्तेमाल किए हुए नकली अंग हैं तो कहीं त्रासदियों की तस्वीरें, कहीं प्रवासी पक्षी तो कहीं मजदूरों के औजार. गांधी को पूजने वाले देश में इतनी हिंसा क्यों है, कलाकार यही जानना चाहते हैं.
अतुल दोड़िया
फ्रांस से कला की पढ़ाई पूरी कर जब अतुल दोड़िया भारत लौटे तो देश में हो रही हिंसक घटनाओं ने उनके मन पर गहरा असर डाला. वो लगातार इस सवाल से जूझते रहे कि इतनी समृद्ध संस्कृति और बहुरंगी विरासत वाला देश हिंसा की चपेट में क्यों बार बार घिर जाता है.
एमएफ हुसैन
भारत की आधुनिक कला की चर्चा एमएफ हुसैन के बगैर पूरी नहीं हो सकती है. इसीलिए भारत के इस पवेलियन में इन रंग बिरंगी तस्वीरों के साथ एमएफ हुसैन को भी जगह दी गई है.
रेजनेंस
कांच, टेराकोटा और मिट्टी के बर्तन, चावल, पानी. विकास की सीढ़ी के सबसे निचले पायदान पर मौजूद लोगों के घर और हिस्से में यही आता है. रुमाना हुसैन इसी के जरिए इनके जीवन के सौंदर्य को दिखाना और उनकी ओर दुनिया का ध्यान दिलाना चाहती हैं. प्राकृतिक चीजों की जगह प्लास्टिक और दूसरी चीजें ले रही हैं और इनके जीवन की असली खूबसूरती बिखर रही है.
नंदलाल बोस
नंदलाल बोस के इन चित्रों में ग्रामीण जीवन के विविध रंग नजर आते हैं. कहीं लुहार है, कहीं रंगरेज तो कहीं हल चलाता किसान भी है, कहीं घर के काम करती गृहणी तो कहीं रुई धुनता धुनिया.
कनु गांधी
कनु गांधी की इन तस्वीरों में महात्मा गांधी जीवन के अलग अलग कुछ प्रसंग हैं. कहीं रेलयात्रा के दौरान खिड़की से हाथ निकाल कर चंदा लेते गांधी, कहीं नमक बना कर कानून तोड़ते तो कहीं दांडी मार्च निकालते गांधी.
शिल्पा गुप्ता
यह कलाकृति भारत के कलाकार की जरूर है लेकिन भारतीय पवेलियन में नहीं है. करीब 100 माइक्रोफोन लटके हुए हैं, और उनके नीचे सींखचों में गुंथे कागज पर उन लोगों की रचनाएं हैं जिन्हें भारत और दुनिया के अलग अलग हिस्से में सेंसर करने की कोशिश की गई. हिंदी समेत कई भाषाओं में कुछ प्रमुख नारे गूंजते हैं जैसे "बोल कि लब आजाद हैं तेरे."
सोहम गुप्ता
सोहम गुप्ता की तस्वीरों की इस श्रृंखला में कोलकाता के बाहरी हिस्से में रहने वाले उन लोगों की जिंदगी की चिंता दिखती है जो बेहद कठिन हालात में गुजर बसर कर रहे हैं. यह कलाकृति भी भारत के पवेलियन में नहीं लेकिन भारत के कलाकार की है. सोहम इन तस्वीरों को उन लोगों और उन के बीच हुई गहन चर्चाओं का नतीजा मानते हैं.