'भारत पाकिस्तान के बीच बर्फ पिघली'
१६ जुलाई २०१०भारत पाक विदेश मंत्रियों की वार्ता से पहले कश्मीर में पिछले कई दिनों से चल रहे आंदोलन में जर्मन अखबारों की भी दिलचस्पी दिखी है.
बर्लिन से प्रकाशित समाजवादी दैनिक नोएस डॉयचलंड ने लिखा है कि कई सप्ताहों से विरोध प्रदर्शन और सुरक्षा बलों के साथ ख़ूनी झड़पें सुर्खियों में हैं. अखबार आगे लिखता है,
पिछले तीन सप्ताह में इनमें 15 लोग मारे गए हैं. "हमारी नागरिक अवज्ञा और शांतिपूर्ण रैली तब तक जारी रहेगी, जब तक भारत अपने सैनिकों और अर्द्धसैनिक टुकड़ियों को रिहायशी इलाक़ों से हटा नहीं लेता," ये घोषणा की हुर्रियत सम्मेलन के नरमपंथी धड़े के नेता मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ ने. हुर्रियत का विभिन्न धड़ा कश्मीर घाटी में स्वायत्तता, पाकिस्तान में शामिल होने या आज़ादी के लिए लड़ रहा है. 15 जुलाई की बैठक को सभी द्विपक्षीय समस्याओं पर संवाद को तेज़ करना था लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय में संदेह है कि कश्मीर घाटी के घटनाक्रमों को पाकिस्तान में उन ताक़तों की हवा मिल रही है जो कश्मीर को भेंट का मुख्य मुद्दा बनाना चाहते हैं.
जर्मनी की साप्ताहिक पत्रिका फोकस ने इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से ख़बर दी है कि भारतीय विश्लेषण के अनुसार मुंबई हमलों के पीछे पाकिस्तानी खुफ़िया सेवा का हाथ है. पत्रिका ने लिखा है,
दोनों पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों ने तीन में दो लड़ाइयां हिमालय क्षेत्र के विवाद में की हैं. भारत ने मुंबई हमलों के बाद बातचीत तोड़ दी थी. भारतीय नज़रिए से उनकी शुरुआत तब होनी थी जब पाकिस्तान अपने देश में उग्रपंथियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू करेगा.
लेकिन ऐसा पूरी तरह से हुआ नहीं है. फ़्रैंकफ़ुर्टर अलगेमाइने साइटुंग का कहना है कि 20 महीनों तक एक दूसरे को नज़रअंदाज़ करने के बाद भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्री फिर से मिले. दोनों देशों के बीच लहजा बदल गया है. पाकिस्तान आतंकवाद को घरेलू ख़तरे के रूप में स्वीकार कर रहा है और कार्रवाई करना चाहता है. अखबार आगे लिखता है,
वार्ता के संभावित नतीजे सांकेतिक होंगे, लेकिन इस्लामाबाद में कृष्णा और क़ुरैशी की भेंट से दीर्घकालिक शांति वार्ताओं पर से धुंध छंटी है. बच गया है भारत का यह आरोप कि पाकिस्तान आतंकवादियों के ख़िलाफ़ बहुत कम कार्रवाई कर रहा है. मुंबई के हमलों की जांच के मुद्दे पर भारत बहुत बेसब्री दिखाता है. हमले में 170 लोग मरे थे. सात लोगों के ख़िलाफ़ पाकिस्तान ने मुकदमा शुरू किया है लेकिन न तो यह पक्का है कि उन्हें सज़ा होगी और न पाकिस्तान उस व्यक्ति पर हाथ डालने की हिम्मत कर रहा है जिसे भारत हमले का मास्टरमाइंड मानता है, हाफ़िज़ सईद.
पाकिस्तान से हमलों, धमाकों और मौतों के बीच एक अच्छी ख़बर भी आई है. नौए ज़्यूरिषर साइटुंग ने नौजवान पाकिस्तानी लेखक अली सेठी की किताब द विशमेकर के बारे में लिखा है. इसका जर्मन अनुवाद कुछ दिनों पहले डेअ माइस्टर डेअ वुंशे के नाम से बाज़ार में आया है. अखबार कहता है कि इस किताब में 1990 के दशक के पाकिस्तान की ऐसी तस्वीर सामने लाई गई है, जिसे जर्मनी में कम ही लोग जानते हैं. अखबार लिखता है,
ज़की़ शिराजी, 20 के क़रीब उम्र, अपने शहर लाहौर वापस आता है, जहां वह पैदा हुआ था. ज़क़ी स्वयं कथानक के केंद्र में है, और इस तरह 90 के दशक के पलते बढ़ते एक किशोर की कहानी, जो देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दशक था. लेकिन इस किताब की असल नायिकाएं महिलाएं हैं. एक ऐसी महिला ज़क़ी की निडर मां है जो अपने पति की मौत के बाद महिलाओं की एक पत्रिका शुरू करती है. जिसमें हर बात बेझिझक लिखी जाती है. उनकी सहेलियां वकीलों और एनजीओ कर्मचारियों के रूप में महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ती हैं.
और अंत में बांग्लादेश. बांग्लादेश के अधिकारियों ने सोमवार को 2009 में पुलिस विद्रोह में सैनिक अधिकारियों की हत्या के सैकड़ों संदिग्धों पर मुक़दमा शुरू किया है. आरोपियों में 801 सीमा पुलिस के जवान और 23 असैनिक नागरिक हैं. वामपंथी टात्स लिखता है
राजधानी ढाका में यह घटना 25 फरवरी 2009 को अचानक हुई. सीमा पुलिस का नेतृत्व करने वाले नियमित सेना के अधिकारी वार्षिक सम्मेलन के लिए परिसर की केंद्र में स्थित भवन में जमा हुए ही थे कि भारी हथियारों से लैस सीमा पुलिस के जवान हॉल में घुस आए. विद्रोह देश के दूसरे हिस्सों में भी फैल गया. भारत ने अपनी सीमा सील कर दी और अपनी टुकड़ियों को तैनात कर दीया. बहुत से प्रेक्षकों को लगा कि यह सत्ता हथियाने की कोशिश है. आरोप हत्या, साजिश रचने और आगज़नी की है. इन अपराधों के लिए अभियुक्तों को मौत की सज़ा दी जा सकती है.
संकलन: यूलिया थिनहाउस /महेश झा
संपादन: ए जमाल