भारत में ऑनलाइन झूठ का बढ़ता बाजार
२३ अप्रैल २०१८कश्मीर में 8 साल की बच्ची से बलात्कार और फिर उसकी हत्या के मामले में भारत की आम जनता का गुस्सा किसी से छिपा नहीं है. लेकिन इस दौरान इंटरनेट पर एक वीडियो वायरल हो रहा है. इस वीडियो में एक बच्ची गाना गा रही है. कहा जा रहा है कि वह वीडियो 8 साल की पीड़िता का आखिरी वीडियो है. लेकिन तथ्यों की जांच करने वाली एक टीम इसे फेक करार दे रही है. टीम के मुताबिक फेक न्यूज का यह कोई पहला मामला नहीं है. क्योंकि हर रोज देश भर में ऐसी ही फेक खबरें वायरल होती है. भारत जैसे देश में ये खबरें जंगल की आग की तरह फैलती है. ऐसे में यूजर्स और जांचकर्ताओं के लिए पता लगाना कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर क्या सही है, क्या गलत, बेहद ही मुश्किल हो जाता है. जांच करने वाली छोटी टीमों की यही परेशानी है. उनके पास अलग-अलग भाषाओं में इतना कंटेट आता है कि उनके लिए जांच करना टेढ़ी खीर साबित होता है. स्वतंत्र जांचकर्ता यह समझते हैं कि भारत जैसे देश में जहां फेक न्यूज विवाद या हिंसा पैदा करने के लिए काफी है, उनका काम बहुत बड़ा और संवेदनशील है. पिछले साल फेक न्यूज के चलते लोगों की मौत और घायल होने तक की खबरें भी सामने आई थीं.
तथ्यों की जांच
तथ्यों को जांचने वाली बेवसाइट बूम के संस्थापक और संपादक गोविंदराज इथिराज के मुताबिक, "उनकी टीम के पास फेक न्यूज के हर दिन दर्जनों मामले आते हैं. ये मामले गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं." इथिराज मानते हैं कि भारत ही इकलौता ऐसा देश है कि जहां फेक न्यूज के चलते हिंसा भी भड़क सकती है. बूम ने ही उस वीडियो को खारिज किया है जिसमें गाना गाती एक लड़की को 8 साल की पीड़िता बताया जा रहा था. बूम भारत में सोशल मीडिया पर चल रही खबरों से जुड़े तथ्यों को जांचने वाली स्वतंत्र एजेंसी है. इसमें फिलहाल 6 लोगों की टीम यह काम करती है. कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले फेसबुक ने भी बूम के साथ साझेदारी करने की घोषणा की है. फेसबुक पिछले कुछ समय से चुनाव में गड़बड़ी फैलाने का आरोप झेल रहा है. यह पहला मौका है जब फेसबुक जैसी कंपनी ने जांचकर्ता एजेंसी के साथ कोई गठजो़ड़ किया हो.
सस्ते फोन, सस्ता डाटा
एंटी प्रोपेगेंडा साइट बताने वाली कंपनी आल्टन्यूज के संस्थापक प्रतीक सिन्हा कहते हैं, "सस्ते डाटा प्लान और सस्ते स्मार्टफोन बाजार में उपलब्ध है जिसके चलत देश की आबादी का तकरीबन एक तिहाई हिस्सा इंटरनेट से जुड़ा हुआ है. ऐसे में लोगों के लिए सही और फेक खबर में अंतर करना मुश्किल हो जाता है. खासकर ग्रामीण इलाकों के लोग जो अब तक खबरों से दूर रहे थे, अचानक जानकारियां मिलने के बाद यह नहीं समझ पाते कि सही क्या है और क्या गलत. वह उस हर बात पर भरोसा कर लेते हैं जो उनके पास पहुंचती है."
इथिराज कहते हैं कि कई बार ये फेक कंटेट ऐसे हिस्सों में घूमता है जहां के बारे में हमें नहीं पता होता. स्थानीय भाषाओं में यह वायरल हो जाता है. ऐसे में एक बार इसके जारी होने के बाद उसे आगे बढ़ने से रोकना असंभव हो जाता है. जिस तेजी से यह बढ़ता है लोग उसे उसी तेजी से इसे सच मानने लगते हैं. इथिराज बताते हैं, "इस समस्या से निपटने में पुलिस और प्रशासन दोनों ही असफल साबित हो रहे हैं."
नेता भी शिकार
फेक न्यूज पर मोदी सरकार ने पत्रकारों पर कार्रवाई करने जुड़ा फैसला एक दिन बाद ही पलट दिया था. फेक न्यूज का शिकार बीजेपी के मंत्रियों को भी होना पड़ा है. कुछ समय पहले यह भी खबर उड़ी थी देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारामन ने ऑस्कर विजेता किसी संगीत निर्देशक पर गौहत्या को लेकर ट्वीट किया है. लेकिन बाद में वह गलत साबित हुआ. गौहत्या भारत में फेक न्यूज का बड़ा मुद्दा रहा है. इसके अलावा साल 2014 के चुनावों के दौरान भी ऐसे मामले सामने आए थे. एक अन्य जांचकर्ता एजेंसी के मुताबिक देश में फेक न्यूज का असर साल 2019 में होने वाले आम चुनावों को प्रभावित कर सकता है. ऐसे मे जरूरी है कि लोगों को सच बताया जाए.