भारत में समलैंगिक सेक्स अब अपराध नहीं
६ सितम्बर २०१८सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों के बारे में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपसी सहमति से समान सेक्स वाले लोगों के बीच यौन संबंध को आपराधिक नहीं माना जाएगा. 1862 में बनी आईपीसी की धारा 377 के तहत अब तक इसको आपराधिक माना जाता था और उसके लिए 10 साल तक की कैद की सजा का प्रावधान था. हालांकि इस कानून के तहत बहुत कम ही लोगों को सजा सुनाई गई लेकिन आलोचकों का कहना है कि इसके जरिए समलैंगिकों, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर लोगों को प्रताड़ित किया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई पांच जजों की बेंच ने की जिसका नेतृत्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा कर रहे थे. बेंच ने कहा कि धारा 377 वयस्क इंसानों के बीच सहमति से होने वाले यौन संबंध को आपराधिक बनाती है जो असंवैधानिक है. धारा 377 पशुओँ के साथ यौन संबंध को भी आपराधिक करार देती है और कोर्ट का कहना है कि यह अब भी आपराधिक बना रहेगा.
कोर्ट में सुनवाई के दौरान बाहर मौजूद समलैंगिक समुदाय के लोगों ने एक दूसरे को बांहों में भर लिया उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े. 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिक सेक्स को गैरआपराधिक घोषित किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया जिससे समलैंगिक समुदाय के लोगों को बड़ा झटका लगा था. कोर्ट के बाहर मौजूद 23 साल की मेघना नंदी ने कहा, "मैं बहुत खुश हूं यह हमारी आजादी का दिन है. अब मुझे छल नहीं करना पड़ेगा. हम लोग अब अपराधी नहीं हैं हम निडर हो कर खुले में रह सकते हैं."
एनआर/एमजे (डीपीए)