पत्रकारों के लिए बेहद खराब साल रहा 2017
२९ दिसम्बर २०१७पिछले सात महीने में देशभर में नौ पत्रकारों की हत्या ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. खासतौर पर बेंगलुरु में गौरी लंकेश की हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया.पत्रकारों की हत्याओं से चिंतित केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को परामर्श जारी कर ऐसी घटनाओं को रोकने के निर्देश दिए हैं.
केंद्रीय गृह मंत्रालय की चिंता और राज्यों को दी गयी हिदायत के बावजूद पत्रकारों पर हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. इस साल पत्रकार की हत्या का पहला मामला 15 मई को तब सामने आया जब मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थानीय समाचार पत्र में काम करने वाले श्याम शर्मा की हत्या कर दी गई. इसके बाद मध्य प्रदेश में ही दैनिक नई दुनिया के पत्रकार कमलेश जैन की पिपलिया में गोली मारकर हत्या कर दी गयी.
बेंगलुरु में गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या ने देश भर में चिंता की लहर पैदा कर दी. कन्नड़ भाषा के साप्ताहिक पत्र लंकेश पत्रिके की संपादक गौरी को हमलावरों ने उनके घर के बाहर कई गोलियां मारीं. गौरी की हत्या के 15 दिन बाद त्रिपुरा में स्थानीय टेलीविजन पत्रकार शांतनु भौमिक की हत्या से देश स्तब्ध रह गया. हत्या के समय वे इंडीजीनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा तथा त्रिपुरा राजेर उपजाति गणमुक्ति परिषद के बीच संघर्ष की कवरेज कर रहे थे.
इसके बाद पंजाब के मोहाली में वरिष्ठ पत्रकार केजे सिंह, उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में दैनिक जागरण के पत्रकार राजेश मिश्र, बंगाली अखबार स्यांदन पत्रिका के पत्रकार सुदीप दत्ता भौमिक की त्रिपुरा में, उत्तर प्रदेश में हिन्दुस्तान अखबार से जुड़े पत्रकार नवीन गुप्ता की हत्या हो चुकी है. ताजा मामला हरियाणा का है जहां एक अंशकालिक पत्रकार राजेश श्योराण की हत्या हुई है.
प्रेस पर बढ़ता दबाव
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का कहना है कि दुनिया भर में पत्रकारों और स्वतंत्र मीडिया पर दबाव बढ़ रहा है. प्रेस आजादी पर संस्था की अंतरराष्ट्रीय सूची में भारत तीन स्थान नीचे लुढ़क कर 136वें पर है. इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 2017 में मारे गये पत्रकारों की संख्या पिछले 14 साल में सबसे कम है. वैसे, भारत के संदर्भ में ऐसी स्थिति नहीं है. पिछले साल के मुकाबले इस साल मारे जाने वाले मीडियाकर्मियों की संख्या बढ़ी है. सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों के लिए मुश्किलें बढ़ी हैं.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का कहना है कि 2015 से अब तक सरकार की आलोचना करने वाले नौ पत्रकारों की हत्या कर दी गई. सभी सरकारें मीडिया की स्वतंत्रता की बात कहती हैं और घोषित रूप से आलोचना के प्रति अपनी उदारता भी दिखाती हैं. असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल अपनी सरकार के प्रदर्शन पर मीडिया की आलोचना का स्वागत करते हुए कहते हैं कि अगर हम कोई गलती करते हैं तो मीडिया को हमारी आलोचना करने से नहीं हिचकना चाहिए.
पत्रकारों पर कार्यवाई
भले ही सरकारें पत्रकारों को निष्पक्ष और भयमुक्त होकर काम करने की सुविधा प्रदान करने का दावा करती हों लेकिन वास्तविकता इसके उलट है. अकेले छत्तीसगढ़ में इस साल के शुरूआती 11 महीने में 14 पत्रकार गिरफ्तार किए गए. इसमें वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा भी शामिल हैं. लगभग 60 दिन जेल में बिताने के बाद जमानत पर रिहा हो चुके विनोद वर्मा के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार उन्हें फंसा रही है.
छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री रामसेवक पैकरा के अनुसार जनवरी से नवंबर के अंत तक राज्य की पुलिस ने कुल 14 पत्रकारों को गिरफ्तार किया है. पैकरा के अनुसार इन पत्रकारों के खिलाफ अलग-अलग अपराध पंजीबद्ध थे जिसके बाद इन्हें गिरफ्तार किया गया. कर्नाटक में भी विधायकों के खिलाफ अपमानजनक आलेख लिखने के मामले में कन्नड़ पत्रिका के दो पत्रकारों पर कार्यवाई की गयी. राज्य विधानसभा ने इस मामले में दोनों पत्रकारों को दंडित करने का फैसला लिया.
अक्सर आलोचनात्मक रवैया रखने वाले पत्रकारों को विज्ञापन देकर या कानूनी कार्यवायी का डर दिखा कर सरकार चुप कराने का प्रयास करती है. ऐसे ही प्रयासों के चलते सेल्फ-सेंसरशिप को बढ़ावा मिलता है, जो निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए घातक है. लोकतंत्र में 'विरोध का स्वर' पत्रकारों के जरिये ही मुखर होता है. इसके मंद पड़ने पर लोकतंत्र को ही नुकसान उठाना पड़ेगा.