1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भावी विवादों की जड़ है पानी

८ अगस्त २०११

शीतयुद्ध समाप्त हो गया. अब पानी पर विवाद बढ़ रहे हैं. बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में पानी पर युद्ध होंगे. जो बात उसे रोक रही है वह फिलहाल पानी का सस्ता होना और उस पर कब्जे के खर्च का अत्यंत महंगा होना है.

https://p.dw.com/p/12D0s
तस्वीर: AP

दो चीजें लोगों के लिए बहुत ही जरूरी हैं, चाहे वे कहीं भी रह रहे हों, पानी और खाद्य सामग्री. पानी तो अनाज पैदा करने के लिए भी बेहद जरूरी है. यदि "नीले सोने" की मांग आपूर्ति से ज्यादा हो जाए, तो विवाद अवश्यंभावी है. विश्व आबादी की वृद्धि और साथ ही पानी के बढ़ते इस्तेमाल पर एक नजर डालने से जलवायु परिवर्तन के दौर में भविष्य के लिए कोई अच्छी उम्मीद नहीं पैदा होती. खासकर ऐसे में जब विश्व की अधिकांश नदियां अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से होकर गुजरती हैं.

यूनेस्को की 2003 की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़ें हैं: विश्व भर में 263 अंतरराष्ट्रीय नदियां 145 देशों की सीमा से होकर गुजरती है. वहां दुनिया की 40 फीसदी आबादी रहती है. उनके पास इस्तेमाल के लिए 60 फीसदी मीठा पानी है. कम से कम 19 नदियां पांच से अधिक देशों से होकर गुजरती हैं. अकसर पड़ोसियों के बीच ऐसी नदियों पर बांध बनाने के कारण विवाद होते हैं. मसलन यूफेराट के ऊपरी ढलान पर अतातुर्क बांध बनाकर तुर्की सीरिया और इराक का पानी शब्दशः रोक सकता है.

बर्लिन के विज्ञान और राजनीति ट्रस्ट की एक रिपोर्ट में पश्चिम एशिया की अमुरदाया और सीरदाया तथा नील की स्थिति को अत्यंत जोखिम वाला बताया गया है. इस रिपोर्ट के एक लेखक राजनीतिशास्त्री टोबियास फॉन लोसोव हैं. वह एक ओर मिस्र और सूडान के बीच और दूसरी ओर सूडान तथा इथियोपिया के बीच दशकों के विवाद की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "इथियोपिया अब तक आर्थिक कारणों से भी खेतों की सिंचाई तथा ऊर्जा बनाने के लिए पानी के इस्तेमाल की अपनी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाया है. लेकिन पिछले सालों में नई वित्तीय संभावनाओं और चीनी मदद की वजह से स्थिति बदल गई है."

Kanäle in Deutschland Flash-Galerie
तस्वीर: picture-alliance/dpa

युद्ध की वजह पानी?

अफ्रीका की सबसे बड़ी नदी केंद्रीय और पूर्वी अफ्रीका से भूमध्य सागर तक 7000 किलोमीटर के इलाके से होकर गुजरती है. इस दौरान वह दस देशों से होकर जाती है, जो नील नदी के पानी के इस्तेमाल पर साफ तौर पर विषमता दिखाते हैं. सबसे ज्यादा पानी नदी के ऊपरी ढलान पर स्थित देशों के पास है. लेकिन सबसे ज्यादा इस्तेमाल निचले ढलान पर होता है, खासकर ऐसे देश द्वारा जिसका नीले सोने में सबसे कम योगदान है यानी मिस्र.

इसका कानूनी आधार 1929 की एक संधि है जो तत्कालीन औपनिवेशिक सत्ता इंग्लैंड ने की थी. इस समय मिस्र नदी का 66 फीसदी पानी इस्तेमाल कर सकता है और सूडान 18 फीसदी. पहले ऊपरी ढलान के देश अपने जलभंडार का शायद ही उपयोग करते थे. विवाद की संभावना भी कम थी. लेकिन आज खासकर इथियोपिया, रवांडा, केन्या और युगांडा अपने विकास के लिए कीमती पानी का ज्यादा इस्तेमाल करना चाहते हैं. वे नई संधि के लिए दबाव डाल रहे हैं.

खेती और बिजली बनाने के लिए नील के नीले पानी के इस्तेमाल की इथियोपिया की घोषणा पर मिस्र अप्रत्यक्ष रूप से युद्ध की धमकी दे चुका है. मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति अनवर अल सदात ने एक बार कहा, "मिस्र के युद्ध करने की एकमात्र वजह पानी होगा."

नील बेसीन पहल जैसी बहुराष्ट्रीय संस्थाओं को अब तक नील पर बसे देशों के हितों के संतुलन में ज्यादा सफलता नहीं मिली है.

NO FLASH Boot in Indien
तस्वीर: AP

किसका है हिमालय का पानी

एशिया में पानी का विवाद दोनों उभरती ताकतों भारत और चीन के बीच होने की संभावना है. चीन की प्यास अभूतपूर्व है. साथ ही इलाके की कुछ महत्वपूर्ण नदियों, जैसे मेकांग या ब्रह्मपुत्र का उद्गम चीन में है. चीन दक्षिण से सूखे उत्तर की ओर पानी ले जाने के लिए बड़ी बांध परियोजनाओं पर काम कर रहा है. भारत को संदेह है कि चीन हिमालय से भी पानी ले जा सकता है.

Fragezeichen
यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख़ 09.08 और कोड 6190 हमें भेज दीजिए ईमेल के ज़रिए [email protected] पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.तस्वीर: picture-alliance

नई दिल्ली में रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान के चीन विशेषज्ञ जगरनाथ पंडा का कहना है कि पानी भारत और चीन के बीच मुख्य समस्या बन गया है. "हालांकि चीनी इसका खंडन करते हैं कि वे पानी दूसरी ओर ले जाना चाहते हैं, लेकिन हमें पता है कि वे पानी की दिशा बदलने की परियोजना पर काम कर रहे हैं." पंडा पिछले सालों में आए बदलाव की ओर ध्यान दिलाते हैं, "दोनों देशों में जनमत ने पानी के मुद्दे पर बोलना शुरू कर दिया है. वे समझ गए हैं कि सीमा समस्या या क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर चीन या भारत की भूमिका नहीं, बल्कि पानी का मुद्दा आने वाले सालों में सबसे बड़ी समस्या होगा."

हालांकि बहुत से विवादों में कई मुद्दों में से एक मुद्दे के रूप में पानी की भूमिका होती है. लेकिन जर्मन राजनीतिशास्त्री फॉन लोसोव पानी पर फिलहाल युद्ध की आशंका नहीं देखते. इसलिए भी कि सैनिक रणनीति के हिसाब से ये काफी मुश्किल है. इसकी शुरुआत अत्यंत व्यवहारिक विचार से हो जाती है. "यदि पानी के बांध पर बमबारी की जाती है तो बाढ़ आ जाएगी." इसके अलावा पानी भारी होता है और उसका आर्थिक मूल्य इस समय अपेक्षाकृत कम है. इसलिए दूसरे बहुमूल्य खनिजों की तरह उसका परिवहन संभव नहीं है. विशेषज्ञ कहते हैं कि पानी प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ है. यदि पानी चाहिए तो नदी के बहाव के पूरे इलाके पर कब्जा करना होगा. फॉन लोसोव कहते हैं कि दूरगामी रूप से यह काफी महंगा है.

रिपोर्ट: मथियास फॉन हाइन/मझा

संपादन: ए कुमार

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी