भीड़ वाली जगहों की सुरक्षा के लिए नाटो का नया सिस्टम
२६ मई २०२२रोम के सबवे स्टेशन पर लगा एक मॉनीटर में एक अचानक सामने आये यात्री की हरे रंग की थ्रीडी तस्वीर दिखती है. इसके धड़ से पट्टे के सहारे टंगी असॉल्ट राइफल स्क्रीन पर लाल रंग में चमकने लगती है. जल्दी ही ये जानकारी सॉफ्टवेयर और स्मार्टग्लास की मदद से सुरक्षाकर्मियों तक पहुंच जाती है. यह नाटो के नए सुरक्षा सिस्टम की खूबियां हैं. इसके परीक्षण के लिए रडार पर दिखी तस्वीर एक कार्यकर्ता की थी. तीन साल के नाटो के इस प्रोजेक्ट का मकसद रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट और मेट्रो स्टेशनों पर विस्फोटकों और हथियारों का पता लगाना है.
"डेक्स्टर" नाम का यह प्रोजेक्ट बीते दशकों में सार्वजनिक परिवहन, एयरपोर्ट, स्टेडियम और दूसरी जगहों पर हुए हमलों को देखते हुए शुरू किया गया था.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पिछले तीन महीनों में नाटो का ध्यान यूरोप की सुरक्षा पर केंद्रित हुआ है. यह प्रोजेक्ट नाटो की असैन्य उद्देश्यों के लिए की जा रही वैज्ञानिक रिसर्च का हिस्सा है.
नाटो में 'उभरती सुरक्षा चुनौतियां विभाग' के सहायक महासचिव डेविड वॉन वील का कहना है कि यह तकनीक अचानक तलाशियों की तुलना में कम आक्रामक और ज्यादा सटीक है. इसका बड़ा प्रभाव हो सकता है. उन्होंने कहा, "यह फुटबॉल मैच के लिए स्टेडियमों में जाना और एरपोर्ट को ज्यादा सुरक्षित बना सकता है."
नाटो के 'साइंस फॉर पीस एंड सिक्योरिटी प्रोग्राम' के प्रमुख डेनिज बेटन का कहना है, "यह तो अभी सिर्फ प्रोटोटाइप है. हमें उम्मीद है कि एक या दो साल में हम इसे मेट्रो, एयरपोर्ट और दूसरी जगहों पर इस्तेमाल के लिए चुने गये देशों में कारोबारी रूप दे सकेंगे."
इस प्रोजेक्ट में नाटो के सदस्य देशों- फ्रांस, जर्मनी, इटली और नीदरलैंड के साथ ही फिनलैंड, सर्बिया दक्षिण कोरिया और यूक्रेन जैसे सहयोगी देशों के 11 रिसर्च इंस्टीट्यूट शामिल हैं.
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कैसे काम करता है सिस्टम
रोम के बाहरी हिस्से में मौजूद सबवे के गलियारे में बड़ी स्क्रीनों पर रडार और लेजर सिस्टम से तैयार हुई तस्वीरें नजर आती हैं.
डेक्स्टर में कई सेंसर और सॉफ्टवेयर तकनीकों को एक साथ मिलाया गया है. इसकी मदद से पुलिस और सिक्योरिटी गार्ड को रियल टाइम में सार्वजनिक जगहों पर मौजूद यात्रियों या लोगों की भीड़ पर नजर रखने में मदद मिलती है.
लोगों की तरफ लक्ष्य करके लगाया गया रडार सिस्टम हाई रेजॉल्यूशन की 2डी या 3डी तस्वीरें तैयार करता है जिसमें हथियार लाल रंग में उभरे दिखाई देते हैं, इसके अलावा एक और सेंसर सिस्टम है जो लेजर का इस्तेमाल कर विस्फोटकों का पता लगा सकता है.
इन दोनों सेंसरों के आउटपुट को सॉफ्टवेयर प्रोसेस करके तुरंत संदेश कंट्रोल रूम में बैठे सुरक्षा अधिकारी के स्मार्टग्लास पर भेजी जाती है.
नीदरलैंड के रिसर्च संगठन टीएनओ के वरिष्ठ वैज्ञानिक हेनरी बोउमा का कहना है कि अधिकारी संदिग्ध "अभी सेंसरों के आसपास ही होगा" तब तक अधिकारी वहां पहुंचने में कामयाब हो सकता है.
वीडियो स्क्रीन पर एक संदिग्ध की तस्वीर उभरती है जिसका चेहरा धुंधला कर दिया है. बोउमा ने बताया कि यहां वीडियो की तस्वीरों को सेव नहीं किया जाता.
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कितना सफल है नया सिस्टम
पिछले कुछ महीनों में हुए परीक्षणों के दौरान दोनों सिस्टमों ने विस्फोटक या हथियार लेकर चलने वाले संदिग्धों की पहचान करने में शत-प्रतिशत सफलता पाई है. बोउमा का कहना है कि ज्यादा बड़ी भीड़ में भी यह सिस्टम 99 फीसदी तक सफल हो सकते हैं.
वॉन वील का कहना है कि कई दशकों तक नागरिक शोध और विकास की परियोजनाओं को धन देने से मना करने के बाद डेस्क्टर जैसी परियोजना उस खाली हुई जगह को भर सकती है जिस ओर निजी क्षेत्र का उतना ध्यान नहीं है. उनका कहना है कि निजी क्षेत्र इसमें रुचि ले सकता है. वॉन वील के मुताबिक, "हमारा लक्ष्य वास्तविक रुप से आगे की कार्रवाई को तीव्र बनाना है जिसका ज्यादा हिस्सा निजी क्षेत्र के जरिये ही होगा.
एनआर/आरएस (एएफपी)