मणिपुर में उग्रवादी गुटों के बीच पिसता मीडिया
२७ नवम्बर २०२०मणिपुर में 25 और 26 नवंबर को कोई अखबार नहीं छपा. मणिपुर में एक उग्रवादी संगठन के दो गुटों की ओर से एक-दूसरे की खबरों को नहीं छापने के लिए दी जाने वाली धमकियों के विरोध में पत्रकारों ने बुधवार को विरोध प्रदर्शन किया. यह प्रदर्शन राजधानी इंफाल में ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन और एडिटर्स गिल्ड मणिपुर के बैनर तले मणिपुर प्रेस क्लब के सामने हुआ. पत्रकारों ने पहले अनिश्चितकाल के लिए अखबारों का प्रकाशन रोकने का फैसला किया था लेकिन बाद में वे इसे गुरुवार से जारी रखने के लिए सहमत हुए. इससे पहले एक बैठक में पत्रकारों ने संबंधित संगठन से जुड़ी कोई खबर को नहीं छापने का फैसला किया था.
ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन (एएमडब्ल्यूजेयू) के अध्यक्ष बिजय काकचिंग्ताबाम बताते हैं, "हम एक प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन के दो गुटों की आपसी लड़ाई में पिस रहे हैं. दोनों गुट चाहते हैं कि प्रतिद्वंद्वी गुट की खबरें अखबारों में नहीं छपें या टीवी चैनलों पर नहीं दिखाई जाएं. हमारे सामने एक ओर कुआं और दूसरी ओर खाई जैसी स्थिति है. हमें बकायदा धमकियां दी जा रही हैं."
दो गुटों की लड़ाई
साल 1964 में बने मणिपुर के सबसे पुराने मैतेयी उग्रवादी संगठन यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) के अध्यक्ष के.पाम्बेई ने 23 नवंबर को मीडिया संस्थानों को एक प्रेस बयान भेजा था. वह 24 नवंबर को संगठन के स्थापना दिवस की तैयारियों के बारे में था. आमतौर पर संगठन की केंद्रीय समिति ही ऐसे बयान जारी करती रही है. उस बयान पर अध्यक्ष के हस्ताक्षर थे. जबकि उसी दिन केंद्रीय समिति भी इस मुद्दे पर एक बयान जारी कर चुकी थी. इन दोनों बयानों से साफ था कि संगठन के अध्यक्ष पाम्बेई केंद्रीय समिति के मुकाबले खुद को ताकतवर साबित करना चाहते थे.
उसके बाद उग्रवादी संगठन के महासचिव ने मीडिया को फोन कर अध्यक्ष के प्रेस बयान को तवज्जो नहीं देने को कहा. पहले से जारी परंपरा के मुताबिक तमाम मीडिया घरानों ने अगले दिन केंद्रीय समिति की ओर से जारी बयान को ही छापा.
राजधानी इंफाल के एक पत्रकार नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "24 नवंबर को तमाम संपादकों ने एक बैठक में तय किया कि अगले दिन अध्यक्ष के बयान को भी छाप दिया जाए. अगर किसी संगठन में कोई मतभेद है तो दोनों गुटों का पक्ष सामने रखा जाना चाहिए. हमें संगठन की आंतरिक राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. बैठक में हुए फैसले की भनक संगठन की केंद्रीय समिति को मिल गई. उसके बाद तमाम संपादकों को फोन पर धमकी दी गई कि अगर अध्यक्ष का बयान छापा गया तो उसके नतीजे बेहद गंभीर होंगे.”
दूसरी ओर, अध्यक्ष के गुट के लोगों ने भी दो संपादकों के घर जाकर उनको धमकियां दी. उसके बाद ही अनिश्चितकाल तक काम बंद करने का फैसला किया गया. हालांकि बाद में गुरुवार से दोबारा काम शुरू करने पर सहमति बन गई. एडिटर्स गिल्ड मणिपुर के प्रमुख और मणिपुर के अखबार संगाई एक्सप्रेस के संपादक खोगेंद्र खोंग्राम बताते हैं, "फिलहाल हम संगठन के किसी भी गुट की कोई खबर नहीं छापेंगे.”
पहले भी ठप्प हुआ है अखबारों का छपना
उग्रवादी संगठनों की धमकियों की वजह से राज्य में अखबारों का प्रकाशन ठप्प होने का यह कोई पहला मामला नहीं है. हाल में मणिपुर इलाके का सबसे हिंसक राज्य रहा है और यहां लगभग एक दर्जन संगठन सक्रिय हैं. साल 2013 में जब कुछ संगठनों ने अपने बयानों को बिना किसी काट-छांट के छापने की धमकी दी थी तो चार दिनों तक अखबारों का प्रकाशन बंद रहा था. उससे पहले 2010 में भी दस दिनों तक अखबार नहीं छपे थे.
मणिपुर में उग्रवादी संगठनों की धमकियों के बीच जान हथेली पर लेकर काम करना पत्रकारों की नियति बन गई है. इन संगठनों का इस कदर खौफ है कि कोई भी संपादक या पत्रकार यूएनएलएफ का नाम नहीं लेना चाहता. ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन और एडिटर्स गिल्ड मणिपुर की ओर से जारी साझा बयान में भी किसी संगठन का नाम नहीं लिया गया है.
एक संपादक नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "यह पहला मौका नहीं है जब राज्य में पत्रकार दबाव का सामना कर रहे हैं. कुछ खबरों को छापने या नहीं छापने के लिए दबाव का सिलसिला लगातार चलता रहा है."
एक और वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं, "हम बेहद मुश्किल हालात में काम कर रहे हैं. कभी उग्रवादी संगठन धमकियां देते हैं तो कभी राज्य सरकार. ऐसे में आखिर हम क्या करें.”
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