मतभेदों को कम करेगा फुटबॉल का विश्वकप
फुटबॉल विश्वकप का समय आ गया है. लोगों में इसकी दीवानगी सिर चढ़कर बोल रही है. फुटबॉल की इस खुमारी के बीच रिसर्चर्स ने अपनी स्टडी में दावा किया है कि ऐसे आयोजन न केवल राष्ट्रप्रेम को बढ़ाते हैं बल्कि हिंसा भी कम करते हैं.
राष्ट्रीय एकता
एक स्टडी में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में जीत का भावनात्मक असर पड़ता हैं. यहां तक कि किसी बड़े टूर्नामेंट में क्वालिफाई होना देश की राष्ट्रीय एकता मजबूत करने में अहम हो सकता है.
फील गुड फैक्टर
लाओस में नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च ने अपनी स्टडी में कहा कि बड़े मैचों के दौरान मैदान के बाहर महसूस किए जाने वाला "फील गुड फैक्टर" जातीय समूहों के बीच विश्वास में इजाफा कर सकता है साथ ही अशांति को कम करता है.
हिंसा होती कम
रिपोर्ट में जीत के प्रभाव को साधारण उत्साह या आशावाद से नहीं जोड़ा गया है. रिपोर्ट के मुताबिक किसी देश की जीत न सिर्फ वहां के लोगों के व्यवहार में सकारात्मकता लाती है बल्कि हिंसा को भी कम करती है.
शीत युद्ध का दौर
पेरिस इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल स्टडीज के राजनीतिक अर्थशास्त्री ऐसे उदाहरण भी देते हैं. मसलन 1980 में शीत ओलंपिक में अमेरिका, ने कड़ी मेहनत कर असंभव से लगने वाला आइसहॉकी का मैच रूस के खिलाफ जीता था. वह शीतयुद्ध का दौर था
रंगभेद के खिलाफ
साल 1998 में फुटबॉल विश्वकप जीतने वाली फ्रांस की टीम को आप्रवासी मुद्दे पर तनाव के बीच नस्लीय एकीकरण के मॉडल के रूप में पेश किया गया था. इसके अलावा साल 1995 में दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने भी रग्बी विश्व कप टीम का इस्तेमाल लंबे समय से नस्लभेद जूझ रहे देश को जोड़ने के लिए किया था.
अफ्रीकी स्टडी
"बिल्डिंग नेशन्स थ्रो शेयर्ड एक्सपीयरेंस: एविडेंस फॉर्म अफ्रीकन फुटबॉल" नाम की एक रिपोर्ट में रिसर्चर्स ने खेल के दौरान लोगों की बदलती भावनाओं और उनके सोचने-समझने के तरीके पर रोशनी डाली है. रिपोर्ट में 70 अफ्रीका कप और 2000 से 2015 के दौरान अफ्रीकी देशों के बीच विश्वकप के लिए हुए क्वालीफाइंग मैचों की स्टडी की गई है.
28 हजार लोग शामिल
इस स्टडी में राष्ट्रीय और जातीय पहचान से जुड़ा सर्वे किया गया. जिसमें लोगों से मैच के पहले और मैच के बाद उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश की गई. स्टडी में 18 देशों के करीब 28 हजार लोगों ने हिस्सा लिया.
जातीय टकराव कम
रिसर्चर्स के मुताबिक किसी चिर प्रतिद्वंदी से मुकाबले के दौरान लोग अपने जातीय टकरावों को कम अहमियत देते हैं. टीम अगर पारंपरिक विरोधी के खिलाफ जीतती है तो जातीय समूह अपने निजी टकराव छोड़कर राष्ट्रीयता की भावना महसूस करते हैं.
असाधारण जीत
राष्ट्रीय टीम की जीत हिंसा को भी कम करती है. यह असर उन देशों में ज्यादा नजर आता है जहां की टीम असाधारण जीत दर्ज कर मुकाबले में शामिल हुई हो या लंबे वक्त बाद कोई टीम फाइनल में पहुंची हो.
भावनात्मक जुड़ाव
स्टडी में कहा गया है कि ऐसे देश जो किसी पहचान के संकट या जातीय टकरावों से गुजर रहे हों, उन देशों को खेल के क्षेत्र में निवेश करना चाहिए. या किसी ऐसे क्षेत्र में जहां लोग भावनात्मक रूप से अधिक जुड़े हों.