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मनमोहन के लिए शर्मनाक घोटाला

२८ नवम्बर २०१०

जर्मन भाषी अखबारों में भी भारत के 2जी स्पैक्ट्रम घोटोले की चर्चा है. खास कर प्रधानमंत्री के लिए इसे शर्मनाक करार दिया गया है. पाकिस्तान के आतंकी ढांचे और आईएसआई से इसके संबंधों पर भी कुछ अखबारों ने रोशनी डाली है.

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छवि पर दागतस्वीर: AP

ज्यूरिख के नोए जूएर्षर त्साइटुंग का कहना है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली भारत सरकार भ्रष्टाचार के कई मामलों की वजह से संसद में दबाव झेल रही है. साथ ही आम लोग भी सरकार से नाराज दिखते हैं. खासकर मोबाइल फोन के लाइसैंस घोटाले की वजह से गुस्सा बढ़ रहा है. अखबार का कहना है कि हाल ही में हुए घोटालों में से 2जी स्पैक्ट्रम घोटाला प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए सबसे शर्मनाक है जिन्होंने छह साल पहले पद संभाला.

हालांकि सत्ताधारी गठबंधन को किसी घोटाले की वजह से कोई गंभीर खतरा नहीं है क्योंकि संसद में उसके स्पष्ट बहुमत प्राप्त है. लेकिन इससे कांग्रेस पार्टी की छवि को तो ठेस पहुंच ही सकती है. 2009 में सबसे बड़ी पार्टी बन कर सत्ता में लौटने वाली कांग्रेस ने वादा किया था कि वह अपने कार्यकाल में आर्थिक वृद्धि के फायदे सभी लोगों तक पहुंचाना चाहती है. तब से सरकार ने गरीबी को दूर करने के लिए कई कार्यक्रमों में निवेश किया. लेकिन यह बात किसी से नहीं छिपी है कि आज भी सरकार के बजट का एक बहुत बडा हिस्सा भ्रष्ट अधिकारियों की जेबों में जाता है. इसी वजह से भारत के बहुत सारे मतदाता निराश और दुखी हैं.

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तस्वीर: Vodafone

माइक्रो क्रैडिट का संकट

जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर में प्रकाशित होने वाले फ्रैंकफुर्टर आलगेमाईने त्साइटुंग का कहना है कि भारत में माइक्रो क्रैडिट क्षेत्र में काफी उथल पुथल देखने को मिल रही है. भारत में दिए जाने वाले कुल माइक्रो क्रैडिट में से 35 फीसदी आंध्र प्रदेश में दिए जाते हैं. लेकिन राज्य के 60 लाख गरीब अत्यधिक कर्ज में दबे हैं. आंध्र प्रदेश में नए कानून लागू किए गए हैं क्योंकि ऐसे किसानों की संख्या बढ़ रही है जो हताशा में आत्महत्या कर रहे हैं. अखबार का कहना है कि माइक्रो क्रैडिट के क्षेत्र में राजनीति के प्रवेश से ही सारी समस्याएं पैदा हो रही हैं. बड़े बैंक छोटे बैंकों को लाखों का समर्थन देते हैं. अब, अपनी पूंजी के डर की वजह से उन्होंने ऐसा करना बंद कर दिया है.

यह भी पता चला है कि माइक्रो क्रैडिट देने वाले बैंकों ने गरीबों का फायदा उठाया है. उन्होंने 15 फीसदी ब्याज पर बडे बैंकों से कर्जा लिया है, लेकिन गरीबों से वे 30 फीसदी की दर से ब्याज वसूल रहे हैं. इस समस्या पर इसलिए भी सबकी नजरें टिकी हैं क्योंकि नामी बैंक इसका शिकार बन रहे हैं. उन्हें लगता था कि माइक्रो क्रैडिट के क्षेत्र में निवेश करने से उनकी छवि को फायदा पहुंच सकता है.

यूरोप को भी खतरा

दो साल पहले भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में हुए हमलों में 10 आतंकवादियों के हाथों 166 लोग मारे गए. यूरोपीय सुरक्षा अधिकारी काफी दिनों से चिंतित हैं कि यूरोप में भी इस तरह के हमले न हों जैसा कि दो साल पहले आतंकवादी गुट लश्कर- ए- तैयबा ने मुंबई पर किए थे. कैद जर्मन जिहादियों का कहना है कि 15 से 20 लड़ाके महीनों से यह तैयारी कर रहे हैं कि कैसे यूरोप के बड़े शहरों में एक साथ हमले किए जाएं.

म्यूनिख से छपने वाले जर्मनी के सबसे प्रसिद्ध अखबारों में से एक ज्युड डॉयचे त्साइटुंग का कहना है कि जर्मनी के एक उच्च अधिकारी का मानना है कि मुंबई के हमले पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद के बगैर मुमकिन नहीं थे. उस वक्त हमलावरों को आदेश पाकिस्तान से मिल रहे थे. उन्हें कई महीनों तक विशेष कैंपों में ट्रेनिंग दी गई. आतंकवादियों को यह ट्रेनिंग आईएसआई के संदिग्ध सदस्यों ने दी. ऐसी आतंकवादी योजना को नजरंदाज करना या खुलेआम उसका समर्थन करना यूरोप के अधिकारियों की तरफ से नहीं लग रहा है.

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मुंबई हमलों को दो साल पूरे हुएतस्वीर: AP

पाकिस्तान का घायल दिल

पाकिस्तान का बंदरगाह शहर कराची, जहां मीडिया के मुताबिक पाकिस्तान का दिल धडकता है, कई हफ्तों से हिंसा का शिकार रहा है. यह कहना है जर्मनी की सबसे मशहूर साप्ताहिक पत्रिका डेयर श्पीगल का. कराची का महत्व इसलिए इतना ज्यादा है क्योंकि पश्चिमी देशों से उसके बंदरगाह के जरिए ही अफगानिस्तान में लड़ रहे नाटो सैनिकों के लिए समान भेजा जाता है. लेकिन कराची की झुग्गी बस्तियां और कई दूसरे इलाके अब अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का केंद्र बन रहे हैं.

डेयर श्पीगल का कहना है कि कराची के बंदरगाह के बिना अफगानिस्तान में नाटो अभियान की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. सैनिकों के लिए जरूरत का 80 फीसदी सामान कराची के जरिए ही अफगानिस्तान पहंचता है. लेकिन इस बीच आतंकवादी भी कराची को अपने व्यापारिक केंद्र के रूप में इस्तेमाल करने लगे हैं. कराची में लड़ाकों को भर्ती किया जाता है. पूंजी, सूचनाएं और नए हमलों की योजनाएं यहीं तैयार होती हैं.

बैंकों पर हमला करना या ब्लैकमेलिंग. ये दो ऐसे काम है जिनके जरिए ज्यादा मेहनत किए बिना जल्द ही बहुत सा पैसा जमा हो सकता है. इस पैसे को फिर जल्द ही कबायली इलाकों में बने कैंपों में भी दिया जाता है जहां चरमपंथियों को ट्रेनिंग दी जाती है. इसके अलावा भूल भुलैया जैसी कराची की छोटी छोटी गलियों में आतंकवादी आसानी से छिप सकते हैं. बताया जाता है कि एक आत्मघाती हमलावर को 25 000 पाकिस्तानी रुपये यानी सिर्फ 300 डॉलर में खरीदा जा सकता है.

डेयर श्पीगल का आगे यह भी कहना है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका भी आज तक स्पष्ट नहीं रही है. पत्रिका का कहना है कि आईएसआई के एजेंट सालों से उन ताकतों की मदद कर रहे हैं जो अफगानिस्तान और कश्मीर में पाकिस्तान के हितों को साध रहे हैं. लेकिन इसके साथ साथ आईएसआई उन लोगों के खिलाफ भी संघर्ष कर रही है जो कट्टरपंथियों से अलग होकर अब पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ रहे हैं. मिसाल के तौर पर उन्होंने रावलपिंडी में 2009 में सेना के मुख्यालय पर हमला किया था. शायद आईएसआई के अधिकारी अब भी सोच रहे हैं कि वह उन कट्टरपंथियों को रोक सकते हैं जिन्हें खुद उन्होंने इतना ताकतवर बनाया है. लेकिन इस बीच ऐसा लग रहा है कि वह अब आत्मनिर्भर हो गए हैं और उन पर काबू पाना मुमकिन नहीं रह गया है.

Flash-Galerie Stimmung in Afghanistan
दहशत और सिर्फ दहशततस्वीर: picture alliance/landov

जीवनदान की गुहार

कुछ ही दिन पहले पाकिस्तानी पंजाब के शेखुपूरा शहर में ईसाई महिला असिया बीबी को मौत की सजा सुनाई गई. आरोप है कि 45 वर्षीय असिया बीबी ने अपने धर्म का पालन करते हुए पैगंबर मुहाम्मद का मजाक उड़ाया. इस पर जर्मनी के सप्ताहिक फोकस का कहना है कि पांच बच्चों की मां असिया बीबी पाकिस्तान में तेजी से फैलते कट्टरपंथी ख्यालों की शिकार बनी है. इस चलन को तालिबानीकरण का नाम दिया जाता है जिसका शिकार खास तौर पर पाकिस्तान में रह रहे 30 लाख ईसाई ही नहीं बल्कि उदारवादी मुसलमान भी बन रहे हैं.

इसके संबंध में सबसे शाक्तिशाली हथियार एक विशेष तरह का ईशनिंदा कानून है, जो सैन्य तानाशाह जिया-उल-हाक के जमाने में बना. उस कानून को खत्म करने के बारे में पाकिस्तान में अब भी कोई नहीं सोच रहा है. इसकी वजह यह है कि कट्टरपंथी बहुत ही प्रभावशाली हैं और उनका दबदबा ऊपर तक है. लेकिन कम से कम सरकार ने घोषणा की है कि वह इस कानून के दुरुपयोग के खिलाफ कार्रवाई करना चाहती है. वैसे उम्मीद की जा सकती है कि असिया बीबी को अपनी सजा के खिलाफ अपील में सफलता मिलेगी. अकसर यह देखा गया है कि पाकिस्तान की बड़ी अदालतों में इस तरह के फैसलों को खारिज कर दिया जाता है. यह बात भी उम्मीद जगाती है कि अब तक ईशनिंदा से जुड़े मामलों में किसी भी मौत की सजा पर अमल नहीं हुआ है.

संकलन: आना लेमान (प्रिया एसेलबोर्न)

संपादन: ए कुमार