महामारी में भारतीय सेक्स वर्करों ने खोजे कमाई के नए तरीके
१७ अगस्त २०२०कोरोना महामारी ने यौनकर्मियों की जिंदगी बदल दी है. अब वे अपने यहां आने वाले ग्राहकों का टेम्परेचर जांच रही हैं और हर ग्राहक के जाने के बाद कमरे को सैनिटाइज कर रही हैं. इस तरह अब ये लोग कोरोना की मार से उबर रही हैं. हालांकि ग्राहकों की संख्या बहुत कम होने के कारण उनके लिए रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करना मुश्किल हो रहा है.
भारत ने कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए जब 25 मार्च को लॉकडाउन लागू किया तो देश भर की लाखों यौनकर्मियों से उनके आमदनी का जरिया एकदम छिन गया. मुंबई में इंसानी तस्करी को रोकने के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था प्रेरणा की निदेशक और सह संस्थापक प्रीति पाटकर कहती हैं, "जून के अंत तक यौनकर्मियों का कोई धंधा ही नहीं हुआ. मुंबई में पुलिस की निगरानी इतनी सख्त थी कि कमाठीपुरा के वेश्यालयों में कोई गतिविधि नहीं थी."
पाटकर बताती हैं, "खाना और दूसरी जरूरी चीजें तो मुहैया कराई गईं, लेकिन इससे उन्हें घर का किराया और कर्ज उतारने में कोई मदद नहीं मिल पाई." महामारी शुरू होने के बाद से ही अधिकारी लोगों को जरूरी चीजें मुहैया करा रहे हैं.
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दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) नाम की संस्था के मुख्य सलाहकार समरजीत जन कहते हैं, "सरकार सिर्फ उन लोगों को मदद मुहैया करा रही है जिनके पास राशन कार्ड है. भारत में 50 प्रतिशत से ज्यादा यौनकर्मियों के पास राशन कार्ड या फिर कोई और ऐसा दस्तावेज नहीं है."
डीएमएससी 65 हजार से ज्यादा यौनकर्मियों का प्रतिनिधित्व करती है. संस्था यौनकर्मियों को खाना, सैनिटरी नैपकिन और अन्य जरूरी चीजें मुहैया करा रही है. यह संस्था एशिया के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया कोलकाता के सोनागाछी में भी काम करती है.
महामारी के हालात
लॉकडाउन के हालात में यौनकर्मियों के लिए काम करना लगभग असंभव था. लेकिन मई में भारत ने लॉकडाउन में ढील देना शुरू किया. इसके बाद रेड लाइट इलाकों में भी कुछ चहल पहल बढ़ी. एक पूर्व सेक्स वर्कर और डीएमएससी की सचिव काजोल बोस ने डीडब्ल्यू को बताया, "जब भी कोई ग्राहक हमारे यहां आता है तो हम उसका टेम्परेचर चेक करते हैं. हम ग्राहक के आने से पहले और उसके जाने के बाद कमरे को सैनिटाइज करते हैं." वह बताती हैं कि कुछ हाई क्लास कैटेगरी की सेक्स वर्करों ने अपनी कमाई के कुछ नए तरीके भी खोज लिए हैं. "इनमें फोन और इंटरनेट सेक्स के माध्यम से पैसा कमाना शामिल है. लेकिन यह विकल्प सबके लिए मौजूद नहीं है."
प्रेरणा की पाटकर कहती हैं कि फोन सेक्स हालांकि एक बेहतर विकल्प है कि इसमें शारीरिक दूरी होती है, लेकिन हर किसी के लिए यह बात लागू नहीं होती. उनके मुताबिक, "यह विकल्प उनके लिए है, जिनके ग्राहक मध्यम और उच्च आमदनी वाले वर्ग से होते हैं. लेकिन कम आमदनी वाले ग्राहकों की जरूरत पूरी करने वाली यौनकर्मियों के पास इसके लिए ना तो जरूरी उपकरण या कनेक्शन होता है और ना ही पर्याप्त जगह."
आमदनी के वैकल्पिक स्रोत
पाटकर कहती हैं कि कुछ यौनकर्मियों ने पैसे कमाने के और भी तरीके ढूंढ़ लिए हैं. एनजीओ उनकी मदद कर रहा है जिससे वे सूखी मछली, प्याज और आलू बेचने वाले स्टोर खोल रही हैं. डीएमएससी से जुड़ी महिलाओं को मास्क और सैनिटाइजर बनाने के काम में भी लगाया गया है. डीएमएसी के सलाहकार जना कहते हैं, "आने वाले दिनों में हम पीपीई किट बनाना भी शुरू करने वाले हैं."
सेक्स वर्कर कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित समूहों में शामिल हैं. कई महिलाएं अपने घर का किराया और बच्चों के स्कूल की फीस नहीं दे पा रही हैं. पाटकर कहती हैं, "कई महिलाओं को वेश्यालय मालिकों की तरफ से उत्पीड़न और हिंसा का सामना भी करना पड़ा है." लॉकडाउन के कारण बहुत से प्रवासी और दिहाड़ी मजदूर वापस अपने घरों को चले गए. ऐसे में यौनकर्मियों के पास आमदनी का जरिया नहीं बचा.
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भारत में यौनकर्मियों को बहुत भेदभाव झेलना पड़ता है. इस पेशे को बुरा माना जाता है. बड़े शहरों में लड़कियों को मानव तस्करी के जरिए देह व्यापार में धकेला जाता है. राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो का कहना है कि मुंबई और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में सबसे ज्यादा महिलाओं और लड़कियों को मानव तस्करी के जरिए लाया जाता है. मुंबई के कमाठीपुरा में रहने वाली मीरा कहती हैं, "वापस गांव जाना संभव नहीं है. वहां मेरी अब किसी को जरूरत नहीं है. मुझे अपनी रोजीरोटी के लिए यहीं कुछ तलाशना होगा. मैं दूसरा कुछ भी काम कर सकती हूं, कुछ भी सीख सकती हूं."
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