कोरोना काल में दिख रहे हैं समाज के कई रंग
६ मई २०२१भारतीयों पर कोरोना का खौफ भारी पड़ता जा रहा है. इसका असर समाज के ताने-बाने पर पड़ने लगा है. नतीजतन, इसके कई रंग सामने आने लगे हैं. कहीं रिश्तों की डोर कमजोर होती दिख रही है, तो कहीं जाति, धर्म-संप्रदाय का बंधन तोड़ मानवता अपने वजूद का अहसास भी करा रही है. कहीं बेटा-बेटी कोरोना पीड़ित बाप के शव को छोड़ कर भाग जा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ कोरोना संक्रमितों की पीड़ा को अपना दर्द समझ कोई अपने खर्चे से उनके घर तक खाना पहुंचा रहा है. एक ओर जहां सांसों की खरीद-फरोख्त चल रही है, तो वहीं दूसरी ओर कोई ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर जरूरतमंद की पुकार पर उसके घर पहुंच जा रहा है.
अबोध बच्चियों ने पिता को दिया कंधा
पटना के दीघा इलाके में एक कारोबारी संजय चौधरी की कोरोना से मौत हो गई. पत्नी ने रिश्तेदारों को खबर दी, लेकिन कोई नहीं आया. शव को एक कमरे में बंद कर उनकी पत्नी रातभर तीन बच्चों के साथ बैठी रही. करीब 30 घंटे तक संजय की लाश पड़ी रही. अंत में मुहल्ले के कुछ लोगों ने उनका अंतिम संस्कार कराया.
पटना जिले में ही राजू कुमार की मौत हो गई. उसकी मौत कोरोना से नहीं हुई थी, किंतु कोविड से मौत की आशंका से भयभीत गांव के लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकले. राजू की पत्नी ने घर-घर जाकर गांव के लोगों से दाह संस्कार के लिए हाथ जोड़े. वह बच्चों के साथ रो-रोकर लोगों से कहती रही कि राजू की मौत कोरोना से नहीं हुई है, लेकिन कोई आगे नहीं आया.
इसी तरह पटना में प्रभात कुमार की मौत हो गई. छह साल की बेटी उसके साथ रहती थी. वह 12 घंटे तक पिता के शव के साथ बिलखती रही. बाद में मकान मालिक को जानकारी मिली तो उसने पुलिस को सूचना दी. आखिरकार विधायक की पहल पर प्रभात का दाह संस्कार हो सका.
पत्नी का गला रेत कर ली आत्महत्या
यह तो मृत लोगों की बात थी, किंतु हद तो तब हो गई जब कोरोना होने पर पत्नी द्वारा घर पर रहकर इलाज कराने की बात कहने पर पति ने उसकी हत्या कर दी और खुद भी छलांग लगा कर जान दे दी. दरअसल, पटना जंक्शन के स्टेशन मैनेजर अतुल लाल की पत्नी तुलिका कुमारी कोरोना संक्रमित हो गई थी. अतुल चाहते थे कि पत्नी अस्पताल में भर्ती हो जाए, किंतु तुलिका होम आइसोलेशन में रहना चाहती थी. इसी बात को लेकर दोनों में विवाद हुआ और कोरोना के खौफ से भयभीत अतुल ने बच्चों के सामने ही ब्लेड से तुलिका का गला रेत दिया और खुद अपार्टमेंट की चौथी मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली.
मुजफ्फरपुर के रहने वाले अर्जुन ओझा कोरोना संक्रमित हो गए. लोगों के दबाव पर उनका शिक्षक बेटा अपनी पत्नी के साथ एंबुलेंस से पिता को ले गया. अर्जुन की पत्नी को लगा कि बेटा-बहू इलाज के लिए ले गए हैं, किंतु बेटा-बहू रास्ते में एंबुलेंस रुकवा कर फरार हो गए. थोड़ी देर के इंतजार के बाद एंबुलेंस चालक भी उन्हें सड़क किनारे छोड़कर भाग गया. बाद में सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद डीएम के आदेश पर उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई.
अंधेरे को खत्म करने की कोशिश में युवा
शहरों में बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो अकेले रह रहे हैं या फिर परिवार के साथ हैं, किंतु कोरोना संक्रमित होने के कारण वे भोजन नहीं बना पा रहे या फिर उनके पास राशन या अन्य जरूरी सामान नहीं रह गया है. इसी पीड़ा को महसूस कर दो बहनें अनुपमा व नीलिमा संक्रमितों के घर मुफ्त खाना पहुंचा रहीं हैं. कुछ महीने पहले इनकी मां और दोनों बहनें कोरोना पॉजिटिव हो गईं थीं, तभी इन्हें लोगों की इस परेशानी का अहसास हुआ था.
राजधानी पटना के काजीपुर मोहल्ले की रहने वाली बहनों में बड़ी अनुपमा कहती हैं, "बुजुर्ग या ऐसे जो लोग अकेले रहते हैं या फिर वह परिवार जिसके सभी सदस्य कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं, वे तो बीमारी से लड़ रहे होते हैं, उन्हें खाना कौन देगा. यही सोचकर आसपास के ऐसे घरों में खाना पहुंचाना शुरू किया." एक-दो लोगों से शुरू हुई दोनों बहनों की यह मुहिम अब पूरे पटना में रंग ला रही है. नीलिमा कहती हैं, "जब मैं खाना सौंपती हूं और तब उनके चेहरे देखकर जो संतुष्टि मिलती है, उसे मैं बयान नहीं कर सकती. इतने कॉल्स आ रहे थे और इतने जरूरतमंद लोग थे कि हम दूर-दूर तक खाना पहुंचाने को तैयार हो गए." फिलहाल रोजाना करीब 200 लोगों को यह सुविधा नि।शुल्क दे रहे हैं.
इसी तरह पटना के गौरव राय सांसों के मसीहा बन शहर में ऑक्सीजन मैन के नाम से जाने जा रहे हैं. गौरव अब तक तीन हजार से अधिक लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध करा चुके हैं. वे कहते हैं, "कोरोना की पहली लहर में अस्पताल में भर्ती था. जीने की आस टूट चुकी थी. पूरे परिवार को ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए भटकना पड़ा था. एक महीने बाद जब स्वस्थ होकर घर लौटा तो तय किया कि ऑक्सीजन के बिना किसी को मरने नहीं दूंगा."
इनसे इतर दो दर्जन युवा लेखक ऐसे हैं जो सोशल मीडिया पर कोरोना वॉरियर्स नामक ग्रुप बना लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर व दवाइयां उपलब्ध कराने में मदद कर रहे हैं. ये अस्पतालों में खाली बेड के बारे में भी लोगों को बता रहे. ये सभी कोरोना मरीज रह चुके लोगों का पता लगा कर प्लाज्मा डोनेट करने के लिए भी उन्हें प्रोत्साहित कर रहे हैं.
वहीं संतोष कुमार अपनी टीम के साथ बुजुर्गों व दिव्यांगों को घर से ले जाकर वैक्सीन दिलवाते हैं और फिर उन्हें घर पहुंचाते हैं. अगर ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लेने में या कोई अन्य परेशानी होती है तो उसमें भी मदद करते हैं. मुकेश हिसारिया, जिनका कोई नहीं होता उनके शव का अंतिम संस्कार
करवाते हैं. पिछली कोरोना लहर में इन्होंने 42 लोगों का अंतिम संस्कार करवाया था. मुकेश कहते हैं, "कोरोना संक्रमित व्यक्ति के शव को अपने भी कंधा नहीं देना चाहते. ऐसे लोगों का शव एंबुलेंस भेजकर घाट पर मंगवाया जाता है और फिर विधि विधान से उनका अंतिम संस्कार किया जाता है. बाद में अस्थि कलश भी परिवार वालों को भिजवा दिया जाता है."
महामारी के बहाने ही सही, डार्विन का सिद्धांत तो लागू होगा ही और अपनी स्वाभाविक वृत्ति के अनुरुप स्वयं को बचाने के लिए हरेक व्यक्ति रक्षात्मक मोड में रहेगा ही.