महाराष्ट्र के किसानों ने ऐसे बदली अपनी किस्मत
२२ जनवरी २०२१पश्चिमी महाराष्ट्र के गंगापुर गांव के 26 वर्षीय किसान कृष्ण नरोडे जब अपने खेतों को देखते हैं तो उन्हें बहुत खुशी होती है. उन्होंने चार एकड़ जमीन पर पपीते, गन्ने, गेहूं और अदरक समेत कई फसलें लगाई हैं. कुछ ही महीनों में फसल काटने का समय आएगा. नरोडे को उम्मीद है कि खेती बाड़ी के जो प्राकृतिक तरीके उन्होंने अपनाए, उनका पूरा फायदा मिलेगा. उन्होंने डीडब्ल्यू को बातचीत में बताया, "उम्मीद है कि इस साल में फसल से लगभग छह लाख रुपये की आमदनी होगी. 2016 में इतनी कम आमदनी हुई थी कि मैंने खेती को छोड़ने का मन बना लिया था."
इससे कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर मंगला मारुती वाघमारे रहती हैं. वह भी किसान हैं. उन्हें भी इस साल सहजन, शरीफा और आम की फसल से अच्छा मुनाफा होने की उम्मीद है. उन्होंने डीडब्ल्यू से बाचतीत में कहा, "मेरे फल बहुत स्वादिष्ट हैं और बाजार के दाम से दोगुने पर बिकेंगे. अलग अलग फसलें उगाने की तकनीक से उन किसानों को फायदा हो रहा है जो खेती के तरीकों को बदलना चाहते हैं."
लातूर मराठवाड़ा क्षेत्र के बड़े जिलों में शामिल है. वहीं कई साल से सूखे की स्थिति है. एक समय यह इलाका पानी की किल्लत और उसकी वजह से होने वाली किसानों की आत्महत्याओं के लिए खासा बदनाम था. पांच साल पहले अधिकारियों को यहां पानी की आपूर्ति करने के लिए विशेष ट्रेनें भेजनी पड़ी. पानी का वितरण ठीक से हो, इसके लिए पुलिस को तैनात करना पड़ा.
बड़े बदलाव
कृषि विज्ञानी महादेव गोमारे के नेतृत्व में यहां हालात बदलने के लिए कुछ साल पहले एक पहल शुरू हुई. इसमें किसानों को साथ लिया गया. उन्होंने 143 किलोमीटर लंबी मंजारा नदी और उसकी सहायक नदियों को पुनर्जीवित किया. यह इस इलाके के 900 गांवों के लगभग पांच लाख लोगों के पानी का मुख्य स्रोत है.
नदी से लगभग नौ लाख घन मीटर गाद निकालकर इसे नया जीवन दिया गया. इस गाद को खेतों में जमीन को समतल करने के लिए इस्तेमाल किया गया. गोमारे ने डीडब्ल्यू को बताया, "एक बार जब नदियां पुनर्जीवित हो गई, तो इससे पानी की उपलब्धता बढ़ गई. इसके अलावा इलाके की जैवविविधता और इकॉलोजी को सुधारने के लिए कई पहलें शुरू की गईं."
इस काम में आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन संस्था की भी मदद ली गई. इसका इलाके के किसानों को बहुत फायदा हुआ है. किसान धीरे-धीरे खेती के प्राकृतिक तरीकों की तरफ बढ़े. उन्होंने ऐसी फसले उगाने पर ध्यान केंद्रित किया जो जलवायु परिवर्तन का सामना असरदार तरीके से कर सकती हैं. वृक्षारोपण किया और पहले से मौजूद जंगलों की भी देखभाल की.
पानी की उपलब्धता बढ़ने से पूरे गांव के ईकोसिस्टम पर बहुत अच्छा असर हुआ. किसानों की जिंदगी में बड़े बदलाव हुए. एक किसान काका सेहब सिंडी कहते हैं, "समय लगा, लेकिन हमारी मेहनत का फल हमें मिला. अब हमें ज्यादातर किसानों के चेहरे पर मुस्कान दिखती है."
अपनी किस्मत अपने हाथ
भारत में खेती की कुल जमीन का 86 फीसदी हिस्सा छोटे और मझौले किसानों के पास है. इनमें वे लोग शामिल हैं जिनके पास खेती की जमीन दो हेक्टेयर से कम है. ऐसे में गांव देहात में खेती बाड़ी की नई तकनीकें पहुंचाना और किसानों बाजार से जोड़ना एक बड़ी चुनौती है. किसान पांडुगंगाधर कहते हैं, "देश भर के किसान खुश नहीं हैं क्योंकि उनकी आमदनी घट रही है. यही बात उनके विरोध प्रदर्शन में दिखती है. हम अच्छी तरह समझते हैं कि पंजाब किसान क्यों न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए लड़ रहे हैं."
अनाज उगाने वाले अंबालेशन काशीनाथ कहते हैं, "हमें पता है कि दिल्ली के बाहर किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन हमने अपनी तकदीर अपने हाथ में लेने का फैसला किया."
इस इलाके में प्राकृतिक तरीके से खेती करने की वजह से ना सिर्फ किसानों का उत्पादन भी बढ़ा है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निटपने के लिए भी वे खुद को तैयार कर रहे हैं.
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