'मानवाधिकारों में एशिया में मामूली बेहतरी'
२८ मई २०१०यह बात अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल की सालाना रिपोर्ट में कही गई है. एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई. उग्रवादियों और सुरक्षा बल के बीच पिस कर रह गया है दक्षिण एशिया का आम आदमी. एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान और श्रीलंका से लेकर फिलीपींस, कई देशों में आम लोगों को लगातार हिंसा का सामना करना पड़ रहा है और इस वजह से सैकड़ों बेकसूर लोगों की जान जा रही है.
खास बात यह कि संघर्ष के इन क्षेत्रों में लाख अपील के बावजूद अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को नहीं जाने दिया जाता. श्रीलंका में पिछले साल जनवरी से मई के बीच लगभग तीन लाख लोगों ने खुद को सेना और तमिल विद्रोहियों की लड़ाई में फंसा पाया, और लड़ाई खत्म होते होते लगभग सात हजार आम लोग मारे गए.
यही हाल पाकिस्तान का रहा, जहां अफगान सीमा के नजदीक कबायली इलाकों में उग्रवादियों के खिलाफ सेना के अभियान के डर से बीस लाख लोगों को घर बार छोड़कर भागना पडा. उधर अफगानिस्तान में 2009 में ढाई हजार नागरिकों की जान गई. जबकि 60 हजार से ज्यादा बेघर हुए. उत्तर कोरिया और म्यांमार हमेशा की तरह मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वालों की देशों की सूची में शामिल हैं. वियतनाम और फिजी जैसे देशों में स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती. फिलीपींस में तो पिछले साल एक निजी सेना ने 57 लोगों की एक साथ हत्या कर दी.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में चीन का खास तौर से जिक्र किया गया है. हाल के सालों में एक बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरे चीन पर अब अंतरराष्ट्रीय दबाव भी कम हो गया है. लेकिन वहां मानवाधिकारों की हालत अब भी बेहद चिंताजनक है. रिपोर्ट के मुताबिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम कसी जा रही है तो सरकार को आलोचक को तुरंत ठिकाने लगा दिया जाता है.
रिपोर्ट में मानवाधिकारों के सिलसिले में एशियाई देशों में हुई प्रगति का भी जिक्र है. इसके मुताबिक दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान ने मानवाधिकारों की संस्था बनाने के एक घोषणापत्र का अनुमोदन किया है. वहीं भारत, इंडोनेशिया और पाकिस्तान जैसे देशों में मौत की सजा का प्रावधान तो है लेकिन हाल के सालों में किसी को फांसी पर लटकाया नहीं गया है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः आभा मोंढे