मारे जाएंगे 3000 बारहसिंगे
१० जनवरी २०१३करीब सौ साल पहले नॉर्वे से शिकारियों का एक दल अंटार्कटिक और दक्षिण अमेरिका के बीच बसे द्वीप दक्षिण जॉर्जिया पहुंचा. शिकारी व्हेल मछली मारना चाहते थे. सामान ढोने और खाने पीने के लिए वे अपने साथ बारहसिंगे लेकर गए. दक्षिणी ध्रुव पर ठंड पड़ने के साथ शिकारी तो वहां से लौट आए लेकिन बारहसिंगे वहीं छोड़ दिए.
पर्यावरणविदों के मुताबिक भालू या बाघ जैसा कोई प्राकृतिक दुश्मन न होने की वजह से बारहसिंगों की तादाद तेजी से बढ़ती गई. इनकी वजह से पेंग्विन और सील का प्राकृतिक आवास छिन गया. नॉर्वे नेचर इंस्पेटोरेट के निदेशक राइडर एंडरसन कहते हैं, "बारहसिंगे बहुत विध्वसंक हो गए." अब इन्हें खत्म करने के लिए 16 टीमें भेजी गई हैं. टीमें ब्रिटेन के अधीन आने वाले द्वीप दक्षिण जॉर्जिया में पहुंच चुकी हैं.
उनके मुताबिक बारहसिंगों ने वहां उगने वाले पौधे भी साफ कर दिए. इन पौधों पर लुप्त होने की कगार पर खड़े कुछ पंछी घोंसला बनाया करते थे. घास खत्म होने की वजह से गर्मियों में वहां की जमीन फटने लगी है, जिस वजह से दक्षिण जॉर्जिया के किंग पेंग्विनों को परेशानी होने लगी. प्राकृतिक रूप से बारहसिंगे उत्तरी ध्रुव के आर्कटिक और उप आर्कटिक इलाकों में पाए जाते हैं.
अधिकारियों की योजना है कि दक्षिणी ध्रुव से बारहसिंगों को पूरी तरह खत्म किया जाए. टीमें अपने साथ चारा और जाल लेकर गई हैं. बारहसिंगों को चुन चुनकर गोली मारी जाएगी. अभियान गर्मियों भर चलेगा. उसके बाद वहां फैले चूहों का सफाया करने की मुहिम छेड़ी जाएगी. सांप और लोमड़ी के न होने से वहां बेतहाशा चूहे हो चुके हैं.
यह अकेला मामला नहीं है जब इंसान के दखल की वजह से किसी इलाके का इको सिस्टम गड़बड़ाया है. बीते 100 साल में इंसान कई नए द्वीपों में पहुंचा है. अकसर उसके साथ चूहे, खरगोश, बिल्लियां और दूसरी प्रजाति के पौधे भी नई जगहों पर पहुंचे. इंसान तो लौट आया लेकिन ये जीव और दूसरी प्रजाति के पौधे वहीं रह गए. प्राकृतिक दुश्मन न होने की वजह से उनकी तादाद इतनी बढ़ गई कि वहां के मूल जीव और पौधे लुप्त होने की कगार पर पहुंच गए. ऑस्ट्रेलिया के किसान अब भी यूरोप के खरगोशों से परेशान हैं. अमेरिका की कई नदियों में एशियाई जीवों ने पुरानी प्रजातियों को खत्म होने के करीब पहुंचा दिया है.
किसी प्रजाति के दूसरी जगह जाने की वजह से खासा नुकसान होता है. एक दशक पहले अनुमान लगाया गया कि इस वजह से हर साल 1,400 अरब डॉलर का नुकसान होता है.
ओएसजे/एजेए (रॉयटर्स)