मिठाई ही नहीं ख़राब दांतों से भी हृदयरोग
१४ अप्रैल २०१०नए शोध से सामने आया है कि मुंह की बत्तीसी जितनी घटती है, हृदयरोग की संभावना उतनी ही बढ़ती है.
इटली के राष्ट्रीय ट्यूमर इंस्टीट्यूट की सबीना सियेरी और उन के साथियों ने 47,749 वयस्क इटली वासियों के बीच एक अध्ययन किया. इन में से 15,171 पुरुष थे और 32,578 महिलाएं. उद्देश्य था लोगों के स्वास्थ्य पर उनके खानपान की आदतों के प्रभाव को जानना.
कार्बोहाइड्रेट से मुश्किल
उन्होंने पाया कि जो महिलाएं कार्बोहाइड्रेट की अधिक मात्रा वाले भोजन की अधिक आदी हैं, उन्हें इस तरह के भोजन की सबसे कम आदी महिलाओं की अपेक्षा हृदय की बीमारियां होने की संभावना दुगुनी होती है. यह नियम पुरुषों पर लागू नहीं होता. सफ़ेद ब्रेड, मिठाइयों और शक्कर मिले सुबह के कॉर्नफ्लेक्स जैसे नाश्ते में कार्बोहाइड्रेट की अधिकता होती है.
कार्बोहाइड्रेट की अधिकता वाले भोजन से रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा बढ़ जाती है. ग्लूकोज़ अपने आप में शक्कर की तरह का एक मीठा पदार्थ है. यह ग्लूकोज़ ट्राईग्लिसरीड नाम की वसा के रूप में रक्त में जमा होने लगता है और अच्छा कोलेस्ट्रोल कहलाने वाले एचडीएल के अनुपात को घटाने लगता है. इससे हृदयरोग से पीड़ित होने का ख़तरा बढ़ने लगता है.
सबीना सियेरा और उनके साथियों ने यह भी पाया कि सभी कार्बोहाइड्रेट रक्त में ग्लूकोज़ को नहीं बढ़ाते, केवल ऐसे कार्बोहाइड्रेट यह काम करते हैं, जिनका ग्लाइसेमिक सूचकांक (इंडेक्स) अधिक होता है. यह सूचकांक बताता है कि किसी खाद्यपदार्थ में कार्बोहाइड्रेट का अनुपात कितना है. फलों, सब्ज़ियों और चोकरदार अनाजों या उन के मोटे आटे में कार्बोहाइड्रेट का अनुपात कम होता है.
सबसे अधिक ग्लाइसेमिक सूचकांक वाले भोजन की आदी महिलाओं को सबसे कम ग्लाइसेमिक सूचकांक वाले भोजन की प्रेमी महिलाओं की तुलना में हृदयरोग होने की संभावना 2,24 गुना अधिक पायी गयी. ऐसा लगता है कि सामान्य गुणवत्ता वाले कार्बोहाइड्रेट की अपेक्षा अधिक ग्लाइसेमिक सूचकांक वाला कार्बोहाइड्रेट अधिक नुकसान पहुंचाता है.
पुरुषों को असर नहीं
शोधक टीम का यह भी कहना है कि यह देखते हुए कि क्योंकि मर्दों को इससे केई फ़र्क नहीं पड़ता कि उनके भोजन में कार्बोहाइड्रेट की कितनी अधिकता है, उसकी गुणवत्ता कैसी है या उसका ग्लाइसेमिक सूचकांक कितना ऊंचा है, यही कहा जा सकता है कि महिलाओं के मामले में शायद उनका लैंगिक भेद, उससे जुड़े लिपोप्रोटीन और उनकी अलग चयापचय क्रिया (मेटाबलिज़्म) आड़े आती है. पर, इसका यह मतलब नहीं कि पुरुष चैन की बंसी बजा सकते हैं.
ख़राब दांत बीमार दिल
जहां तक भोजन में मिठास और मिठाइयों का संबंध है, सभी जानते हैं कि उनसे दांतों का सड़ना या ख़राब होना तेज़ हो जाता है. दांत जब सड़ते हैं, तो गिरते भी हैं. गिरते हैं, तो बत्तीसी में नये नये खंडहर बनने लगते हैं. स्वीडन के वैज्ञानिकों ने पाया है कि दांतों के बीच की ख़ाली जगह जितनी ही बढ़ती जाती है, दिल का दौरा पड़ने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है.
स्वीडन के इन वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि जिस के मुह में 10 से भी कम दांत रह गये हों, उसकी दिल की किसी बीमारी से मरने की संभावना अपनी ही उम्र के ऐसे किसी आदमी की अपेक्षा सात गुना बढ़ जाती है, जिसकी पूरी बत्तीसी अभी साबूत है.
पिछले कुछ वर्षों से ऐसे कई अध्ययन सामने आये हैं, जो दांतों की दशा और हृदयरोगों के बीच संबंध की ओर संकेत करते हैं. स्वीडन के डॉ. अंदेर्स होमलुंद और उनके सहयोगियों का अध्ययन दोनो के बीच अब पहली बार सीधा संबंध दिखाता है.
रोगाणुओं का असर
इस संबंध की व्याख्या यह है कि दांतों का सड़ना और गिरना मुंह की साफ़ सफ़ाई में कमी से होता है. इससे मुंह में जो रोगाणु घर जमा लेते हैं, वे दांतों या मसूड़ों में जलन पैदा करते हैं और समय के साथ इसी रास्ते से शरीर की रक्तसंचार क्रिया में भी पहुंच जाते हैं.
जब वे रक्त में पहुंच जाते हैं, तब हृदय के लिए भी ख़तरा पैदा करने लगते हैं और अलग अलग तरह के हृदयरोग पैदा कर सकते हैं. यह भी कहा जा सकता है कि फिलहल बचे हुए असली दांतों की संख्या इस बात की सूचक है कि कोई व्यक्ति अब तक कितनी बार लंबे समय तक चले और बैक्टीरिया इत्यादि से होने वाले मुंह के किसी संक्रामक रोग को झेल चुका है.
स्वीडन में हुए इस अध्ययन के लिए 7674 स्त्री-पुरुषों का औसतन 12 वर्षों तक अवलोकन किया गया. वे अधिकतर मसूड़ों की बीमारियों से पीड़ित थे. अवलोकन के दौरान 629 की मृत्यु हो गयी. मृत्यु के कारण की जांच करने पर सामने आया कि 299 हृदय और रक्तसंचार की बीमारियों से मरे थे. अध्ययन के संचालक अंदेर्स होमलुंद का कहना है कि इस अध्ययन में सामाजिक-आर्थिक कारणों या अन्य कारणों पर ध्यान नहीं दिया गया. तब भी अध्ययन का निचोड़ दिल दहलाने के लिए काफ़ी है.
रिपोर्ट- एजेंसियां/राम यादव
संपादन- आभा मोंढे