मिस्र की अरब वसंत क्रांति के चेहरे अब कहां हैं
मिस्र में अरब वसंत की क्रांति के 10 साल बाद क्रांति के अगुआ और प्रदर्शनों का चेहरा रहे ज्यादातर लोगों का या तो भ्रम टूट चुका है या फिर वो जेल में हैं.
टूट गया भ्रम
वाएल गोनिम दुबई में थे और वहीं से उन्होंने फेसबुक पर "वी आर ऑल खालिद सईद" बनाया. सईद को पुलिस ने इतना मारा था कि उनकी मौत हो गई और गोनिम उन्हें जानते थे. जनवरी में मिस्र में हुए प्रदर्शनों के पीछे इस फेसबुक पेज की भी भूमिका थी. 2014 से गोनिम अमेरिका में रह रहे हैं. अब 40 साल के हो चुके गोनिम की कमेंट्री से पता चलता है कि वो मिस्र की स्थिति से निराश हैं और उनकी उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं.
अनिश्चित हिरासत
मानवाधिकार मामलों की वकील माहिनूर अल मासरी सईद की मौत पर प्रदर्शन करने वालों में सबसे पहली थीं. अब 35 साल की हो चुकीं माहिनूर को कई बार और कई सालों के लिए जेल में डाला गया. 2019 में उन्हें फिर से तब गिरफ्तार किया गया जब वो हिरासत में लिए गए लोगों का बचाव करने अभियोजक के दफ्तर गईं. आज तक उनके केस की सुनवाई नहीं हुई है और वह जेल में ही हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने इसे "आर्बिट्रैरी डिटेंशन" कहा है.
मारपीट और जेल
अला अब्देल फतेह और उनकी पत्नी ने 2004 में स्थानीय गतिविधियों का समर्थन करने के लिए एक ब्लॉग बनाया. उसके बाद से उनकी कई बार गिरफ्तारी हो चुकी है. पांच साल जेल में रहने के बाद 2019 में उन्हें रिहा किया गया. सितंबर में उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया और तब से वो जेल में ही हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक वो और उनके वकील को जेल के भीतर प्रताड़ित किया जाता है.
पैरोल पर रिहा
अहमद माहेर अप्रैल 6 क्रांति के सहसंस्थापक थे. यह अभियान 2008 में फेसबुक पर मिस्र के मजदूरों के समर्थन में शुरू हुआ जिन्होंने इस दिन हड़ताल की योजना बनाई थी. इस अभियान ने जनवरी 2011 के विरोध प्रदर्शनों में मदद की. उन्हें भी कई बार गिरफ्तार किया गया. 2-13 के आखिर में उन्हें तीन और साल के लिए सजा सुनाई गई और 2017 में उन्हें छोड़ा गया. 6 अप्रैल क्रांति पर 2014 में प्रतिबंध लगा दिया गया.
नोबेल के लिए नामांकित कैदी
इसरा अब्देल फतेह को प्रदर्शनों के दौर में लाइव ब्रॉडकास्ट के लिए मिस्र की "फेसबुक गर्ल" कहा जाता है. 2011 में उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया गया. उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया और उन्होंने राजनीति से खुद को अलग कर लिया लेकिन अक्टूबर 2019 में उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया. उनकी रिहाई के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग उठने के बावजूद 43 साल की इसरा आज भी जेल में हैं.
हर किसी ने गिरफ्तार किया
अहमद डूमा 25 जनवरी 2011 को काहिरा में शुरू हुए प्रदर्शनों में सबसे पहले शामिल होने वालों में थे. मिस्र में वो इस बात के लिए कुख्यात हैं कि उन्हें हर प्रशासन ने गिरफ्तार किया है. 2019 में उन्हें अधिकतम सुरक्षा वाली जेल में 15 साल कैद की सजा हुई और 335,000 डॉलर का जुर्माना हुआ. उन्हें दूसरी चीजों के साथ ही सेना के खिलाफ बल प्रयोग का दोषी माना गया. अब 32 साल के हो चुके डूमा जेल में हैं.
परिवार पर ध्यान
25 जनवरी को विरोध प्रदर्शन शुरू होने से पहले असमा महफूज ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो डाल कर लोगों से प्रदर्शन में शामिल होने को कहा. इसे लाखों लोगों ने देखा और बहुत से लोगों को इससे प्रेरणा मिली. महफूज को जेल में तो नहीं डाला गया लेकिन मिस्र के बाहर उनकी यात्रा पर रोक लगा दी गई. 35 साल की अकेली मां का अब पूरा ध्यान अपने दो बच्चों पर रहता है और राजनीतिक विवादों से उन्होंने खुद को दूर कर लिया है.
जेल में बेहाल
53 साल के मोहम्मद अल बेलतागी मुस्लिम ब्रदरहुड के वरिष्ठ सदस्य हैं. ताकतवर इस्लामी गुट ब्रदरहुड की पार्टी को जब 2012 के चुनावों में जीत मिली तो वो सरकार का हिस्सा बने. 2013 में सेना के सत्ता पर नियंत्रण के बाद उन्हें उम्रकैद हो गई और आज भी वो जेल में हैं. 2019 में उनके परिवार ने बताया कि उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया है. इस हफ्ते मिस्र के अधिकारियों ने कथित रूप से उनकी संपत्ति जब्त कर ली है.
ऑस्ट्रिया में रह कर आंदोलन
78 साल के मोहम्मद अल बरदेई ने 1964 में मिस्र की राजनयिक सेवा में करियर की शुरुआत की और ज्यादातर वक्त देश के बाहर बिताया. 2011 में वो वतन लौटे. अल बरदेइ ने कई विपक्षी दलों में अहम भूमिका निभाई और 2013 में मिस्र के अंतरिम राष्ट्रपति भी बने. हालांकि एक महीने बाद ही 500 मोरसी समर्थकों के नरसंहार के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके तुरंत बाद ही वो वियना वापस चले गए.