मीथेन से तपती धरती
२९ जुलाई २०१३भूगर्भ से निकलने वाली मीथेन किस हद तक धरती को गर्म करती है, इसके बारे में पता नहीं चल पाया है. 2007 में समुद्र वैज्ञानिकों ने अरब सागर के पूर्वी हिस्से में खुदाई की. इनमें से निकाले गए मिट्टी के सैंपल में मीथेन हाइड्रेट पाए गए. यह मीथेन और पानी से बने पथरीले पदार्थ होते हैं और समुद्र की गोद के केवल डेढ़ मीटर नीचे इन्हें पाया गया है.
वैज्ञानिकों को इसके अलावा समुद्र तल के नीचे से पाई गई मिट्टी में पानी और बैराइट नाम का खनिज पदार्थ मिला है. इससे पता चलता है कि पिछले दशकों में मीथेन धरती के अंदर से समुद्र तल तक पहुंच गई है.
ब्रेमन यूनिवर्सिटी के डेविड फिशर का कहना है, "हमने इस बारे में कुछ जानकारी जुटाई और हमें पता चला है कि 1945 में यहां भूकंप आया था. कुछ संकेतों के आधार पर हमने अनुमान लगाया कि भूकंप से तलछट अलग हो गया जिस कारण नीचे फंसी गैस समुद्र में आ गई."
1945 में अरब सागर में एक बड़ा भूकंप आया था जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8.1 थी. समुद्र तल के नीचे नेसंट रिज नाम की जगह पर गैस फंसी थी जो इस भूकंप से फट गई. तब से लेकर अब तक करीब 74 लाख घन मीटर मीथेन बाहर निकली है. इतनी गैस 10 बड़े खनिज गैस टैंकरों में आराम से आ सकती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि समुद्र में और भी इलाके हो सकते हैं जहां समुद्री तल में दरार आ गई है और जहां से गैस निकली हो सकती है.
धरती का तापमान बढ़ाने में कारों और फैक्ट्रियों से निकलते धुएं के साथ साथ प्राकृतिक गैसों का भी हाथ है. मिसाल के तौर पर ज्वालामुखी के फटने से कार्बनडायोक्साइड के साथ साथ सल्फर और मीथेन भी निकलती है. लेकिन कोयला, गैस और तेल के इस्तेमाल के साथ साथ खेती और पेड़ों का कटना भी ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ाता है. मीथेन को लेकर वैज्ञानिक खासे परेशान हैं क्योंकि यह कार्बनडायोक्साइड के मुकाबले 25 गुना ज्यादा गर्मी रोक सकती है. हाल ही में नेचर पत्रिका ने एक रिपोर्ट में बताया कि पूर्वी साइबेरियाई सागर के तट से 50 अरब टन मीथेन लीक हुई है. यह इलाका आर्कटिक महासागर का हिस्सा है और ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज्यादा असर अब तक यहीं हुआ है.
रिपोर्टः एमजी/एएम(एएफपी)