मुर्गे के कारण महंगा अंडा
१३ फ़रवरी २०१४अंडे देने वाली मुर्गी को खाने के काम में नहीं लाया जाता और मुर्गियों की यह नस्ल जब मुर्गे पैदा करती है तो उन्हें मार दिया जाता है. जैसे ही वे अंडा तोड़कर बाहर निकलते हैं, मुर्गों को मुर्गियों से अलग किया जाता है और गैस से मार डाला जाता है.
कभी कभी निकलने वाले 20,000 चूजों में आधे मुर्गे होते हैं. यह संख्या बड़ी लग सकती है, लेकिन बाडेन वुर्टेमबर्ग का पोल्ट्री फार्म जर्मनी के दूसरे ब्रीडिंग फार्मों की तुलना में काफी छोटा है. तो निश्चित ही वहां पैदा होते ही मरने वाले मुर्गों की संख्या भी ज्यादा होती होगी. वुर्टेमबर्ग पोल्ट्री के वैर्नेर हॉकेनबेर्गर बताते हैं. "मादा की तुलना में नर चूजे सफेद या हल्के होते हैं. दरअसल उनका रंग एकदम अलग अलग होता है. जैसे इसकी भूरी पट्टियां हैं." उन्हें नर चूजों का मारा जाना बहुत बुरा लगता है, "इसीलिए हम दूसरे विकल्पों पर काम कर रहे हैं. करीब 10 फीसदी का हम अलग इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना है ताकि इसका हिस्सा बढ़ सके." जिंदा बचे नर चूजों का सिर्फ एक हिस्सा जीवित ऑर्गेनिक फार्मों में जाता है. 90 फीसदी को तुरंत नष्ट कर दिया जाता है, क्योंकि उनका कोई खरीदार नहीं है. जर्मन प्रांत नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया ने इस प्रक्रिया पर रोक लगा दी है, लेकिन ब्रीडिंग फार्म के प्रमुख इसमें समस्या देखते हैं. जर्मनी के अन्य राज्य लोवर सेक्सनी के ब्रीडिंग फार्म में पैदा होने वाले मर्द चूजों का एक हिस्सा यहां के ऑर्गेनिक फार्मों को बेचा जाता है. यहां सब चूजे हॉकेनबर्ग ब्रीडिंग फार्म से आए हैं. कार्स्टेन बाउक अपने पॉल्ट्री फार्म के लिए अंडा देने वाली मुर्गियां वहीं से खरीदते हैं, और हर मुर्गी के साथ एक मुर्गा भी. बस सिद्धांत के कारण, आर्थिक रूप से यह परेशानी पैदा करता है. "उनकी उम्र बहुत होती है. ये मांस वाली नस्ल नहीं है, बल्कि ये ऐसे पक्षी हैं जिन्हें मादा चूजों वाले गुणों के साथ पैदा किया गया है. यही वजह है कि सिर्फ अंडा देने वाली मुर्गियों को पाला जाता है और उसके भाईयों को फेंक दिया जाता है."
आम तौर पर जिन चूजों को एक ही दिन में मार दिया जाता है, उन्हें बाउक के यहां पाल पोस कर मुर्गा बनाया जाता है. अंत में जब उन्हें काटा जाता है तो वे अच्छी खासी जिंदगी जी चुके होते हैं और खासा खा चुके होते हैं. फिर भी उनका मांस पोल्ट्री के सामान्य मुर्गों से कम होता है. पोल्ट्री मालिक इसका खर्चा मुर्गियों और उसके अंडों से निकालते हैं. एक मुर्गी अपनी जिंदगी में 250 अंडे देती है. भाईयों का खर्च चलाने के लिए अंडों को महंगा बेचा जाता है, पूरे जर्मनी में. बाउकहोफ के अंडे सामान्य ऑर्गेनिक अंडों से कुछ ज्यादा महंगे हैं और आम पोल्ट्री के सस्ते अंडों से तीन गुना. लेकिन लोग फिर भी इसकी कीमत देने के लिए तैयार हैं. बाउक कहते हैं कि वे जो कुछ कर रहे हैं वह कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन इसके जरिए वे संकेत देना चाहते हैं. सिस्टम की गड़बड़ियों को इससे दूर नहीं किया जा सकता. वह तब तक बना रहेगा जबतक खाद्य उद्योग में जोर सिर्फ मुनाफे पर रहेगा और ग्राहक सिर्फ सस्ते से सस्ता खरीदने पर ध्यान देगा.
रिपोर्टः महेश झा
संपादनः आभा मोंढे