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मूर्तियों को 'बार बार छुए जाने' के खिलाफ जर्मनी में अभियान

१० अप्रैल २०२४

यौन हिंसा के खिलाफ जागरुकता फैलाने के लिए जर्मनी के कुछ शहरों में इन दिनों एक अनोखा अभियान चल रहा है. महिलाओं की कांसे से बनी मूर्तियों के साथ तख्तियां लगाई गई हैं. इन पर लिखा है, “यौन हिंसा के निशान रह जाते हैं.”

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म्यूनिख में जूलियट कैप्यूलेट की मूर्ति में एक हिस्से का रंग लोगों के छूने की वजह से उड़ गया है
बेजान मूर्तियों के स्तन छूते हैं लोग तस्वीर: Peter Kneffel/dpa/picture alliance

यौन हिंसा का प्रभाव एक पीड़ित पर कितने लंबे समय तक रह जाता है यह बताने के लिए जर्मनी में एक अनोखा अभियान शुरू किया गया है. इन दिनों जर्मनी के तीन शहरों में कांसे से बनी महिलाओं की न्यूड मूर्तियों के सामने एक तख्ती नजर आ रही है. इस तख्ती पर लिखा है, "यौन हिंसा के निशान रह जाते हैं.” इन मूर्तियों को ध्यान से देखने पर हम पाएंगे कि बाकी हिस्सों के मुकाबले इनके स्तनों का रंग अलग है. ऐसा मूर्ति के इस हिस्से को लोगों द्वारा लगातार छूने की वजह से हुआ है.

महिलाओं की बेजान ‘मूर्तियां' भी सुरक्षित नहीं

जर्मनी के अलग-अलग शहरों में लगी इन मूर्तियों के स्तनों को लगातार छूने के कारण आए अंतर को साफ-साफ देखा जा सकता है. ये निशान बताते हैं कि इन मूर्तियों के आस-पास से गुजरने वाले लोगों ने इनके स्तनों को कितनी बार छुआ है. यह एक तरीके का यौन उत्पीड़न ही है.

यौन हिंसा से निपटने के लिए कनाडा के क्यूबेक में अनोखी पहल

"हिंसा के खिलाफ चुप्पी तोड़ो” नाम के इस अभियान की शुरुआत महिला अधिकारों पर काम करने वाले संगठन तेरा दे फाम्मा ने की है.  यह संगठन पिछले 40 सालों से लैंगिक भेदभाव, लड़कियों और महिलाओं के मानवाधिकार हनन जैसे मुद्दों पर काम कर रहा है. 

मूर्तियों के पास तख्तियां लगा कर लोगों को जागरूक किया जा रहा है
मूर्तियों के स्तनों को छूने के निशान रह जाते हैंतस्वीर: Sina Schuldt/dpa/picture alliance

ये तख्तियां म्यूनिख के जूलियट कैप्यूलेट स्टैच्यू , ब्रेमन के यूथ स्टैच्यू और बर्लिन के फ्राउ राइन स्टैच्यू के पास लगाई गई हैं. इन तख्तियों के साथ बार कोड भी लगाए हैं जिसे स्कैन करके लोग इन मूर्तियों को बोलते सुन सकते हैं. तेरा दे फाम्मा का कहना है कि इन मूर्तियों के स्तनों पर पड़े ये निशान दशकों से हो रहे उत्पीड़न को दर्शाते हैं. यौन हिंसा अपना निशान छोड़ जाती है. ठीक ऐसे ही ‘निशानों' से यौन हिंसा के पीड़ित भी गुजरते हैं.

मौली मलोन के स्तन छूना बंद

हालांकि ऐसा सिर्फ जर्मनी में नहीं हुआ. आयरलैंड के डबलिन में इस साल सिटी काउंसिल को पर्यटकों से अपील करनी पड़ी थी कि वह मौली मलोन की मूर्ति के स्तनों को छूना बंद करें. आयरलैंड में मौली मलोन की लोक कथाएं बेहद मशहूर हैं. पर्यटक और स्थानीय लोग मौली के स्तनों को छूना ‘शुभ' मानते हैं.

लगातार पर्यटकों के छूने के कारण इस मूर्ति के स्तनों का रंग भी बाकी हिस्सों के मुकाबले फीका पड़ गया है. इसे रोकने के लिए डबलिन में "मौली को अकेला छोड़ दो” का प्रदर्शन भी शुरू किया गया था. इस प्रदर्शन की शुरुआत के बाद यह बहस शुरू हुई कि क्यों एक महिला की मूर्ति के स्तनों को छूना गलत है.

तेरा दे फाम्मा की सदस्य सिना टोंक के मुताबिक, "यौन हिंसा एक ऐसी समस्या है जिसे लंबे समय तक जरूरी नहीं समझा गया या फिर नजरअंदाज किया गया है. पीड़ितों की आवाज सुनी जा रही हैं और दोषियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, यह सुनिश्चित करने के लिए हमें साथ मिलकर काम करना होगा.”

डब्लिन में मौली मलोन की मूर्ति
मौली मलोन की मूर्ति के स्तनों को छूना 'शुभ' मानते थे लोगतस्वीर: Thomas Schäffer/imageBROKER/picture alliance

मूर्तियों के जरिए समझे यौन हिंसा का प्रभाव

तेरा दे फाम्मा के मुताबिक हर तीन में से दो महिलाएं कभी ना कभी अपने जीवन में यौन हिंसा का सामना जरूर करती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2021 के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में करीब 70 करोड़ से अधिक महिलाओं और लड़कियों ने अपने जीवन में यौन हिंसा का सामना जरूर किया होता है. इन आंकड़ों में पिछले एक दशक में कोई बदलाव नहीं आया है.

 अश्लील तस्वीर भेजने पर जेल जाना होगा

यौन हिंसा का असर पीड़ितों में लंबे समय तक देखा जा सकता है. ये प्रभाव न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक और भावनात्मक भी होते हैं.  पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, अवसाद, चिंता जैसे लक्षण ज्यादातर पीड़ितों में देखने को मिलते हैं. यह ठीक वैसा ही जैसे लगातार इन मूर्तियों के एक खास हिस्से को छूने के कारण उनका रंग बदल गया. यह बदला हुआ रंग मूर्तियों के साथ हो रहे ‘उत्पीड़न' की निशानी है.

मूर्तियों के स्तनों को छूना यौन उत्पीड़न कैसे

यह गौर करने वाली बात है कि औरतों की मूर्तियों के स्तनों को ही क्यों इतनी बार छुआ गया. शरीर के इस हिस्से को वहां से गुजरने वाले लोगों द्वारा बार-बार छूना यौन उत्पीड़न की परिभाषा के तहत ही आता है. इन मूर्तियों के साथ दशकों से होता यह व्यवहार यह बताता है कि हमारे समाज में किसी महिला के अंग को दबोचना कितना सामान्य माना जाता है.

यह प्रदर्शन इस बात को भी दर्शाता है कि सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न को बेहद सामान्य माना जाता है. इन्हें गंभीर अपराध के तौर पर भी नहीं देखा जाता. इसलिए महिलाएं भी इसके खिलाफ आम तौर पर आधिकारिक रूप से शिकायत नहीं करती. हालांकि यह अभियान इसी सोच को चुनौती देता नजर आता है कि सार्वजनिक स्थलों पर होने वाला यौन उत्पीड़न भी एक गंभीर अपराध ही है.

आरआर/एनआर (डीपीए)