यूपी में नहीं रुक रहा है महिलाओं के खिलाफ अपराध
१० नवम्बर २०२०शनिवार को बलिया जिले में एक युवती को उसके पड़ोसी युवक ने ही इसलिए आग के हवाले कर दिया क्योंकि लड़की ने उस युवक के साथ कथित तौर पर संबंध बनाने से इनकार कर दिया. लड़की गंभीर हालत में वाराणसी के बीएचयू हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही है.
दो दिन पहले देवरिया जिले के एकौना थाना क्षेत्र में कथित तौर पर बेटी के साथ छेड़छाड़ का विरोध करने पर 50 वर्षीय एक व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. पुलिस ने इस मामले में 8 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है, जिनमें से सात अभियुक्तों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
नवंबर महीने के पहले दिन ही फिरोजाबाद में छेड़छाड़ का विरोध करने पर कुछ लोगों ने एक महिला के ऊपर तेजाब फेंक दिया. पीड़ित महिला का इलाज सरकारी अस्पताल में चल रहा है.
इस घटना के कुछ दिन बाद ही फिरोजाबाद में एक युवक ने घर में घुसकर युवती से छेड़छाड़ करने की कोशिश की. युवती के विरोध करने पर उसने ब्लेड से युवती के हाथ की नस काट दी. युवती का इलाज चल रहा है.
झांसी में छेड़छाड़ से परेशान एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली, तो सोनभद्र में एक बच्ची की रेप के बाद बेरहमी से हत्या कर दी गई. इसके अलावा पीलीभीत, लखीमपुर, बस्ती में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं.
ये कुछ घटनाएं पिछले एक हफ्ते के दौरान हुई हैं, जबकि इससे पहले भी हाथरस, बलरामपुर, आजमगढ़ में इसी निर्दयता के साथ रेप के बाद हुई हत्या को लेकर न सिर्फ यूपी में, बल्कि देश भर में लोग गुस्से में सड़कों पर उतर आए थे.
एंटी रोमियो अभियान का क्या हुआ?
ये सब घटनाएं तब हो रही हैं जब महज एक महीने पहले राज्य सरकार ने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए जोर-शोर से एक नए कार्यक्रम "मिशन शक्ति अभियान" की शुरुआत की थी. अभियान की शुरुआत से पहले बलरामपुर में युवती के साथ कथित तौर पर गैंगरेप और फिर हत्या के बाद यूपी सरकार कानून व्यवस्था को लेकर लोगों के निशाने पर थी लेकिन अभियान के एक महीने बाद भी जमीन पर उसका असर शायद ही दिख रहा हो.
हालांकि अभियान की शुरुआत में महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ होने वाले अपराधों के मामले में सरकार ने अपराधियों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई शुरू कर दी और एक आंकड़ा भी जारी किया कि नवरात्र से शुरू किए गए इस अभियान के तहत सरकार ने बेहतर तरीके से अदालत में पैरवी करके 14 दोषियों को फांसी की सजा सुनवाई. लेकिन जहां तक अपराधों की बात है, तो न तो उनकी संख्या में कमी दिख रही है और न ही अपराधों की जघन्यता में.
साल 2017 में यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनने के बाद ही सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा और उनके सशक्तिकरण के अपने चुनावी वादों के मुताबिक जोर-शोर से एंटी रोमियो अभियान शुरू किया था. लेकिन एंटी रोमियो स्क्वैड कार्यक्रम महिला सुरक्षा में भूमिका निभाने की बजाय विवादों में ज्यादा आ गया और अब उसका शोर बिल्कुल थम गया है.
इस दौरान सरकार ने एंटी रोमियो अभियान को भी कई बार नए सिरे से शुरू करने और इस अभियान में लगे पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित करने की घोषणा की. कुछ कार्रवाई भी हुई लेकिन आज तक इस अभियान का कोई एक केंद्रीय तंत्र विकसित नहीं हो पाया. अब हाल ही में हाथरस, बलरामपुर और अन्य जगहों पर बलात्कार और हत्या की घटनाओं के बाद राज्य सरकार ने मिशन शक्ति अभियान की शुरुआत की है.
हालांकि राज्य सरकार के अपर मुख्य सचिव अवनीश कुमार अवस्थी कहते हैं कि अभियान के तहत ही कई मामलों में तेजी के साथ पैरवी करते हुए कई अभियुक्तों को जेल पहुंचाया गया और कई मामलों में फांसी की सजा भी सुनाई गई है. उनके मुताबिक, इस अभियान के तहत महिलाओं को अपने अधिकारों और सुरक्षा को लेकर खुद भी सतर्क रहने के लिए जागरूक किया जा रहा है और कई जगहों पर डीएम और एसपी के नेतृत्व में इसके लिए विशेष कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं.
सिर्फ नाम बदलने से क्या होगा?
मिशन शक्ति अभियान के तहत 1,535 पुलिस थानों में एक अलग कमरे का प्रावधान किया गया है जिसमें पीड़ित महिला किसी महिला पुलिसकर्मी के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकती है. अभियान के तहत पुलिस विभाग में बीस प्रतिशत अतिरिक्त महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती की भी घोषणा की गई है. मिशन शक्ति अभियान अगले छह महीने तक जारी रहेगा.
लेकिन सवाल उठता है कि इन सब योजनाओं और कार्यक्रमों के बावजूद आखिर अपराध रुक क्यों नहीं रहे हैं और क्या कई नामों से योजनाएं चलाने का कोई असर भी होता है या नहीं?
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्र कहते हैं, ''यूपी के थानों में अभी भी पर्याप्त संख्या में न तो महिला पुलिसकर्मी हैं और न ही इसके लिए वे बहुत ज्यादा प्रशिक्षित हैं. बदल-बदल कर योजनाएं चलाने की बजाय एक ही योजना के सार्थक तरीके से क्रियान्वयन की जरूरत है. एंटी रोमियो को ही देखिए, शुरू में लगा कि पुलिस वाले बहुत सक्रिय हैं लेकिन उन्हें जो काम करना था, वो नहीं कर सके और मॉरल पुलिसिंग के जरिए लोगों को परेशान करने लगे.”
सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर कहती हैं कि पुलिस वाले जानबूझकर ऐसे मामले दर्ज नहीं करते हैं. वे बताती हैं, "अपराध के मामले दर्ज करने से पुलिस वाले बचते हैं क्योंकि मामले बढ़ने पर उनके खिलाफ कार्रवाई का डर रहता है. सरकार जब तक मामलों को दर्ज कराने में सख्त नहीं होगी, तब तक इसका कोई असर नहीं होगा. अभी भी थानों में इतना भय पैदा किया जाता है कि लोग एफआईआर दर्ज कराने में डरते हैं. ऐसे में आप चाहे जितनी योजनाएं ले आइए, कुछ फायदा नहीं होने वाला है. हाथरस में ही देख लीजिए, पीड़ित लड़की और उसके परिजनों को रेप की रिपोर्ट दर्ज कराने में दो हफ्ते से ज्यादा लग गए.”
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