यूपी में रासुका का सबसे ज्यादा इस्तेमाल गोकशी के मामलों में
१४ सितम्बर २०२०एनएसए के तहत सबसे ज्यादा कार्रवाई पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बरेली जोन में हुई है. राज्य के अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी के मुताबिक, "पिछले आठ महीनों में यानी अगस्त तक यूपी पुलिस ने राज्य में 139 लोगों के खिलाफ एनएसए लगाया है, जिनमें से 76 मामले गोहत्या से जुड़े हैं. बरेली जोन में 44 लोगों के खिलाफ एनएसए के तहत मामला दर्ज किया गया है. 37 लोगों पर जघन्य अपराधों के लिए जबकि महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराध के मामलों में अब तक छह लोगों पर एनएसए लगाया गया है.”
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि लोक व्यवस्था पर बुरा असर डालने वाले अपराधियों के खिलाफ रासुका की कार्रवाई की जाए ताकि अराजक तत्वों और बदमाशों के बीच कानून का डर व्याप्त हो और आम जनता के बीच सुरक्षा की भावना पैदा हो.
क्या है रासुका
रासुका यानी एनएसए के तहत किसी भी व्यक्ति को 12 महीने तक बिना किसी आरोप के हिरासत में रखा जा सकता है. हालांकि इसके लिए प्रशासन को यह बताना होता है कि वह व्यक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा या कानून व्यवस्था के लिए खतरा साबित हो सकता है. तीन महीने से ज्यादा समय तक जेल में रखने के लिए सलाहकार बोर्ड की मंजूरी लेनी पड़ती है. सलाहकार बोर्ड में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज भी शामिल होते हैं.
ये भी पढ़िए: गायों के पेट से निकला इतना प्लास्टिक
अवनीश अवस्थी के मुताबिक इस साल गोकशी या तस्करी के मामलों में 1324 मुकदमे दर्ज करके करीब चार हजार अभियुक्तों को गिरफ्तार भी किया गया है.
सरकार का मानना है कि गोहत्या के मामलों में इतनी सख्त कार्रवाई की वजह से ही राज्य में दंगे नहीं हुए हैं और शांति व्यवस्था नहीं बिगड़ने पाई. अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी कहते हैं कि ऐसे ज्यादातर मामलों में एनएसए लगाने को हाईकोर्ट ने भी अपनी स्वीकृति दी है. अवनीश अवस्थी का कहना है कि गोहत्या में कमी लाने के लिए ही सरकार ने पिछले दिनों गोहत्या कानून को भी और सख्त किया है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी साल जून में गोहत्या कानून को सख्त बना दिया था. अब गोहत्या पर 10 साल की सजा का प्रावधान किया गया है. उत्तर प्रदेश गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश, 2020 के तहत गोवंश को शारीरिक तौर पर नुकसान पहुंचाने पर एक से सात साल की सजा होगी. इसके अलावा गोकशी और गायों की तस्करी से जुड़े अपराधियों के फोटो भी सार्वजनिक रूप से चस्पा किए जाएंगे.
गोवध निवारण अधिनियम 1955 राज्य में छह जनवरी 1956 को लागू हुआ था. वर्ष 1956 में इसकी नियमावली बनी. वर्ष 1958, 1961, 1979 एवं 2002 में अधिनियम में संशोधन किया गया. सरकार का कहना है कि नियमावली के वर्ष 1964 व 1979 में संशोधन हुआ लेकिन, अधिनियम में कुछ ऐसी शिथिलताएं बनी रहीं जिनकी वजह से कानून का सख्ती से पालन नहीं हो सका.
कार्रवाई पर संदेह
गोकशी के खिलाफ एनएसए जैसे कानून को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं कि आए दिन राज्य में हत्या, रेप और अपहरण जैसी गंभीर वारदातें हो रही हैं और सरकार गोहत्या रोकने में लगी हुई है. लेकिन सरकार की ओर से तर्क दिया जा रहा है कि गोकशी की घटनाओं की वजह से राज्य में कई बार सांप्रदायिक दंगे तक हो चुके हैं.
यूपी में डीजीपी रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी डॉक्टर विभूति नारायण राय भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि गोकशी की घटनाएं सांप्रदायिक संघर्ष की वजह बनती हैं लेकिन उनका यह भी मानना है कि सरकार की मंशा इस बारे में ठीक नहीं है. राय कहते हैं, "एनएसए की कार्रवाई शांति भंग होने या फिर सांप्रदायिक संघर्ष होने की आशंका के आधार पर की जा सकती है लेकिन इसमें यह भी देखा जाना चाहिए कि दंगा किसकी वजह से फैल रहा है. किसी के घर पर गोमांस मिलना यदि इसका आधार बन सकता है तो जो लोग इसे मुद्दा बनकर इसे सांप्रदायिक संघर्ष की शक्ल देते हैं, उनके खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए. पर ऐसा हो नहीं रहा है.”
राज्य में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें अभियुक्त पक्ष के लोगों ने आरोप लगाया है कि महज उनके घर पर मांस के टुकड़े पाए जाने के कारण पुलिस उठा ले गई और गैंगस्टर एक्ट के अलावा एनएसए भी लगा दिया गया. इन लोगों का आरोप है कि यह भी जानने की कोशिश नहीं की गई कि मांस गाय का है या फिर किसी अन्य पशु का.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में पुलिस ने गोकशी के आरोप में 11 लोगों के खिलाफ एनएसए के तहत मामला दर्ज किया है. बिजनौर जिले के ही आसफाबाद चमन गांव के पूर्व प्रधान यामीन के दो चचेरे भाइयों के खिलाफ भी इस मामले में एनएसए के तहत कार्रवाई की गई है जबकि गोकशी के आरोप में उनके परिवार के छह लोग जेल में बंद हैं.
यामीन कहते हैं, "पुलिस बिना हमारी बात सुने छह लोगों को उठा ले गई. सभी के खिलाफ गुंडा ऐक्ट, गैंगस्टर ऐक्ट के तहत कार्रवाई हुई है जबकि मेरे दो चचेरे भाइयों पर दो हफ्ते बाद एनएसए लगा दिया गया. एनएसए तीन महीने के लिए और बढ़ा दिया गया.”
यूपी में एनएसए की कार्रवाई को लेकर कई बार सवाल उठ चुके हैं. हाल ही में गोरखपुर के डॉक्टर कफील के मामले में भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन पर एनएसए लगाए जाने को अवैध बताते हुए उन्हें तुरंत रिहा करने के आदेश दिए थे. हालांकि जानकारों का कहना है कि यदि मजबूत आधार नहीं होगा तो एनएसए हाईकोर्ट की एडवाइजरी बोर्ड या फिर कोर्ट में अपने आप निरस्त हो जाएगा लेकिन खास समुदाय पर इतनी बड़ी संख्या में एनएसए लगाना हैरान करने वाला जरूर है.
ये भी पढ़िए: जर्मनी में चुनी जाती है 'मिस काउ'
बिना अनुमति गिरफ्तारी
यूपी में एनकाउंटर्स पर भी सवाल उठ रहे हैं और पिछले कुछ दिनों से जाति और धर्म के आधार पर एनकाउंटर करने जैसे आरोप भी सरकार पर लगे हैं. हालांकि सरकार ने आंकड़े जारी करके इन्हें खारिज करने की कोशिश की है लेकिन आरोप न सिर्फ विपक्षी दल के लोग लगा रहे हैं बल्कि सत्ताधारी दल के विधायकों ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाई है.
यूपी पुलिस के मुताबिक पिछले साढ़े तीन साल में 124 अपराधियों को मुठभेड़ में मारा जा चुका है. डीजीपी मुख्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक, पुलिस मुठभेड़ों में मारे गए 124 अपराधियों में 47 अल्पसंख्यक, 11 ब्राह्मण, आठ यादव और बाकी 58 अपराधी ठाकुर, वैश्य, अन्य पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जाति जनजाति के थे.
इस बीच, रविवार रात राज्य सरकार ने यूपीएसएसएफ अधिनियम की भी अधिसूचना जारी कर दी जिसके तहत विशिष्ट सुरक्षा बल के सदस्यों को किसी भी अभियुक्त को बिना वारंट के तलाशी लेने और बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के गिरफ्तार कर जेल भेजने की ताकत दी गई है.
उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल अधिनियम को हाल ही में विधानसभा के मॉनसून सत्र में पारित किया गया था. इसके तहत विशेष सुरक्षा बल को बहुत सारी शक्तियां दी गई हैं. सुरक्षा बल के अधिकारियों और सदस्यों को बिना सरकार की इजाजत के अभियुक्त को गिरफ्तार करने का अधिकार होगा और इस कार्रवाई के खिलाफ कोर्ट भी संज्ञान नहीं लेगा.
अधिसूचना के मुताबिक, यूपी एसएसएफ के पास इलाहाबाद हाईकोर्ट, लखनऊ खंडपीठ, जिला न्यायालयों, राज्य सरकार के महत्वपूर्ण प्रशासनिक कार्यालयों, पूजा स्थलों, मेट्रो रेल, हवाई अड्डों, बैंकों व वित्तीय संस्थाओं, औद्योगिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा की जिम्मेदारी होगी. साथ ही, प्राइवेट कंपनियां भी पैसे देकर विशेष सुरक्षा बल की सेवाएं ले सकेंगी. शुरुआत में इसकी पांच बटालियनें गठित होंगी जिस पर 1747 करोड़ रुपये का खर्च आएगा.
हालांकि इसे लेकर कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं. विपक्षी दलों का कहना है कि इसके जरिए सरकार विरोधियों का दमन करने का कानूनी अधिकार प्राप्त करना चाहती है. विपक्षी दल इस कानून का संसद से लेकर सड़क तक विरोध करने की तैयारी कर रहे हैं.
__________________________
हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore