यूरोप दौरे पर क्या मोदी पर दबाव बनाएगा यूरोपीय संघ
३० अप्रैल २०२२प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस की यात्रा पर आ रहे हैं. यूक्रेन पर रूसी हमले में अपने रुख के लिए आलोचना झेल रहा भारत यूरोपीय देशों के साथ साझेदारी में ऊर्जा भरने की कोशिश में है.
युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने रूसी कार्रवाइयों की निंदा से खुद को दूर रखा है. इसी बीच उसने सस्ते रूसी तेल की खरीदारी भी बढ़ा दी है. यूरोप इस लिहाज से बिल्कुल उल्टी दिशा में है. यूरोप युद्ध के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय विरोध को मजबूत कर रहा है और ऊर्जा की खरीदारी में कटौती.
इस यात्रा के दौरान उम्मीद की जा रही है कि मोदी यूरोपीय संघ के नेताओं को यूक्रेन पर अपने रुख के बारे में सफाई देंगे. जर्मनी में इसमें सबसे ऊपर होगा. बर्लिन में चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के साथ भारत के प्रधामंत्री की यह पहली मुलाकात होगी.
दोनों नेता इंडो-जर्मन इंटरगर्वनमेंटल कंसल्टेशंस यानी आईजीसी की बैठक में शामिल होंगे. यह एक द्विपक्षीय संवाद का प्लेटफॉर्म है जिसका मकसद कई नीतिगत मोर्चों पर सहयोग को आगे ले जाना है.
भारत के साथ करीबी संबध चाहता है जर्मनी
जर्मन विदेश मंत्रालय में जूनियर मंत्री तोबियास लिंडनर ने यात्रा शुरू होने से पहले कहा, "कोई बड़ी समस्या भारत के बगैर हल नहीं हो सकती." इस हफ्ते दिल्ली में एक बैठक के दौरान लिंडनर ने कहा, "हम तकनीक, शिक्षा, सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन पर भारत के साथ सहयोग करना चाहते हैं. भारत एक बहुत अहम सहयोगी है."
पिछले साल भारत और जर्मनी ने आपसी कूटनीतिक रिश्तों की 70वीं वर्षगांठ मनाई थी और दोनों देश साल 2000 से ही एक दूसरे के रणनीतिक साझेदार हैं. भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है, "यह दौरा विस्तृत क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने और उसे तेज करने का एक मौका होगा जिसमें दोनों सरकारें आपसी हितों के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर अपने विचार साझा करेंगी."
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विदेश नीति के विशेषज्ञों का कहना है कि यह बैठकें मोदी को यूक्रेन पर जर्मनी और यूरोपीय संघ की धारणाओं को बेहतर तरीके से समझने में मदद करेंगी.
भारत ब्राजील के साथ मुक्त व्यापार समझौते(फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) की कोशिश में है और इसके लिए जर्मनी और फ्रांस का सहयोग चाहता है. पूर्व राजनयिक वीना सीकरी ने डीडब्ल्यू से कहा, "यह मोदी की शॉल्त्स के साथ पहली मुलाकात है. मौजूदा वातावरण में निजी सामंजस्य आपसी रिश्तों के साथ-साथ यूरोपीय संघ से समझौतों के नवीनीकरण और उन्हें नए मुकाम तक पहुंचाने में मददगार होगा. जर्मनी और फ्रांस इंडो पैसिफिक में निवेश के लिहाज से बेहद अहम हैं."
बर्लिन के बाद मोदी कोपेनहेगन जायेंगे. जहां उन्हें डेनमार्क के प्रधानमंत्री मेते फ्रेडेरिक्सन ने दूसरे इंडिया-नॉर्डिक समिट में हिस्सा लेने के लिए न्यौता दिया है. इस सम्मेलन में आइसलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड के नेता भी होंगे.
दौरे के आखिर में मोदी पेरिस जा कर फ्रेंच राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों से मुलाकात करेंगे. चुनाव में जीतने के बाद माक्रों यूरोपीय विदेश नीति में फ्रांस को अहम बनाने की कोशिश में हैं. ऐसे में यह मुलाकात रणनीतिक साझेदारी के लिहाज से कुछ महत्वाकांक्षी एजेंडा तैयार करने में मददगार हो सकती है.
यूक्रेन को लेकर भारत पर 'दबाव नहीं'
पिछले महीने भारत में पश्चिमी अधिकारियों के दौरे की लाइन लग गई थी. पश्चिमी देश अब तक भारत पर रूसी युद्ध की आलोचना करने पर बहुत ज्यादा दबाव बनाने से बच रहे हैं. पिछले हफ्ते यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फॉन डेय लेयन ने दिल्ली में प्रधानमंत्री से मुलाकात की. इस दौरान ना सिर्फ कारोबार और तकनीक में सहयोग बढ़ाने पर बात हुई बल्कि "आपसी सहयोग को बढ़ाने के साथ ही कानून आधारित वैश्विक व्यवस्था को मजबूत करने पर ध्यान देने" का वादा भी किया गया.
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पिछले हफ्ते जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से नरेंद्र मोदी की मुलाकात हुई तो भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने कहा कि ब्रिटिश नेता की तरफ से रूसी आक्रमण के लिए भारत पर कोई "दबाव नहीं" था.
पिछले महीने जब शॉल्त्स के विदेश और सुरक्षा सलाहकार येंस प्लोएटनर ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल से मुलाकात की तो उस दौरान भी कहा गया कि जर्मनी यूक्रेन यूद्ध पर "भारत को उपदेश" नहीं देगा.
प्लोएटनर ने कहा, "हम यहां व्याख्यान देने या मांग करने नहीं आये हैं, हम युद्ध को रोकने के बेहतर तरीकों पर भारत के साथ काम कर रहे हैं."
यूरोप में भारत क्या चाहता है?
भारत यूरोपीय संघ का प्रमुख रणनीतक साझीदार है और साथ ही तीसरा सबसे बाड़ा कारोबारी साझीदार है. 2020 में इन दोनों के बीच 62.8 अऱब यूरो का व्यापार हुआ. अमेरिका के बाद यूरोपीय संघ के लिये दूसरा सबसे बड़ा निर्यात का ठिकाना है.
जर्मनी में भारत के पूर्व राजदूत गुरजीत सिंह ने डीडब्ल्यू से कहा, "भारत की यूरोपीय नीति में जर्मनी एक अहम कड़ी है, जिसका प्रमुख कारण तकनीकी और आर्थिक साझेदारी है, पारंपरिक रणनीतिक साझेदारी में फ्रांस आगे है." सिंह कहते हैं, "2021 में तैयार हुआ जर्मन इंडो पैसिफिक पॉलिसी गाइडलाइंस में भारत के साथ साझेदारी की नई इच्छा जाहिर की गई."
गुरजीत सिंह का यह भी कहना है, "भारत के उत्पादन केंद्रों के साथ व्यापार का विस्तार जर्मनी के भारत में कारोबारी हितों से जुड़ा है. ये ज्यादातर हरित और छोटे हैं और उनका बड़े हरित बुनियादी ढांचे के प्रोजेक्टों में विस्तार करना है."
फ्रांस में भारत के पूर्व राजदूत मोहन कुमार ने डीडब्ल्यू से कहा कि यूरोपीय संघ बहुध्रुवीय दुनिया में एक मजबूत और स्वतंत्र "ध्रुव" बनता है तो यह भारत के हित में होगा.
मोहन कुमार ने यह भी कहा कि यूक्रेन पर हमला यूरोपीय संघ की रणनीतिक मामलों में दृढ़ता को बढ़ा सकता है और जर्मनी ने जिस तरह से रक्षा मामलों में अपना रुख बदला है वह उसकी एक अभिव्यक्ति है. "जर्मनी में नया चांसलर है और मोदी 'निजी कूटनीति' में यकीन रखते हैं तो यह बैठक अहम होगी.