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ये हैं दिल्ली के दफ्तर जाने वाले किसान

एम. अंसारी
२३ नवम्बर २०१८

दिल्ली और एनसीआर में नई तरह की हरित क्रांति हो रही है. इस क्रांति में ऐसे लोग खेतों से जुड़ रहे हैं, जिनका कभी किसानी से नाता नहीं रहा.

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Urban Farming in Indien
मीता सरीनतस्वीर: DW/A.Ansari

बड़े शहरों में किचन गार्डन और अर्बन फार्मिंग यानी शहरों में खेती का ट्रेंड तेजी से बढ़ा है. आखिर क्या कारण है कि बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम करने वाले लोग खेती को अपना रहे हैं और अपने और अपने परिवार के लिए फल और सब्जियां उगा रहे हैं? 52 साल की मुदिता अग्रवाल पेशे से स्कूल टीचर हैं लेकिन उनको आधुनिक दौर का किसान भी कहा जा सकता हैं. मुदिता हर शनिवार और रविवार अपना कुछ समय खेतों में बिताती हैं. वे हरी सब्जियां उगाती हैं और उन्हें बड़े ही शौक से अपने और परिवार के लिए पकाती हैं.

पिछले 6 महीने से मुदिता किसानी कर रही हैं. वे कहती हैं कि किचन से निकलने वाले कचरे ने उन्हें किसानी की ओर जाने के लिए प्रोत्साहित किया. मुदिता जिस हाउसिंग सोसाइटी में रहती हैं, उसमें कंपोस्ट खाद बनाने को लेकर शुरु हुई उनकी रिसर्च ने उन्हें खेतों तक पहुंचा दिया.

दिल्ली से सटे गुरुग्राम की रहने वाली मुदिता कहती हैं, "मेरे घर पर साग-सब्जी उगाने के लिए जगह नहीं है. लेकिन मैंने एक संस्था के बारे में जाना, जो खेत किराए पर देती है. हमने इस साल के जुलाई से खेत को किराए पर लिया है. हम हफ्ते में दो बार खेत में जाकर काम करते हैं, बीज लगाते हैं, छोटे-छोटे पौधे लगाते हैं." मुदिता बताती हैं कि वे अपने पति के साथ पूरा हफ्ता उन पौधों के बारे में बात करती हैं, "खेतों में पौधों को बड़ा होता देखना बहुत ही अद्भुत अनुभव होता है. उन पौधों को हम अपने बच्चे की तरह बढ़ा होता देखते हैं."

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बागवानी करती मुदिता अग्रवालतस्वीर: DW/A.Ansari

मुदिता का कहना है कि जो सब्जी और फल बाजार में मिलते हैं, उनके बारे में ग्राहक को पक्की जानकारी नहीं होती है कि वे कहां और किस हालात में उगाए गए हैं. मुदिता के मुताबिक, "जब हम अपने खेत में सब्जी या फल उगाते हैं, तो हमें उसका पूरा विवरण पता होता है, जैसे बीज या पौधा कहां से आया, किस तरह की खाद का इस्तेमाल हुआ, कीटनाशक पेड़ पर डाला गया है या नहीं. और भी कई चीजें हैं जिनके बारे में हमें वक्त-वक्त पर पता चलता रहता है." मुदिता के अनुसार खुद से खेती करने का सबसे बड़ा फायदा यब है कि आप जैविक और स्वादिष्ट सब्जियों का लुफ्त उठा पाते हैं.

44 साल की मीता सरीन ने तो अपने घर की छत पर ही किचन गार्डन बना डाला. मीता आउटर एरिया डिजाइनर हैं और उन्होंने कभी किसानी का काम नहीं किया था. मीता बताती हैं कि सर्दी के मौसम के लिए उन्होंने साग और सब्जियां लगाई हैं. पिछले कुछ हफ्तों से घर पर उगने वाली सब्जियों का ही इस्तेमाल खाने के लिए हो रहा है.

डॉयचे वेले से बातचीत में मीता उन सब्जियों के बारे में बताती हैं जिनको उन्होंने उगाया है, "मैंने पालक, रॉकेट लीव्स, लेटस और अन्य सलाद के पत्ते उगाए हैं. इसके अलावा हमने सरसों, चेरी टमाटर, बथुआ, धनिया, हरी मिर्च लगाए हैं." मीता ने पांच फीट लंबे और पंद्रह इंच चौड़े प्लांटर्स खरीदे हैं जिसपर वे आसानी से साग और सब्जी उगा पा रही हैं. वह कहती हैं, "मुझे और मेरे पति को ग्रीन सैलेड खाने का बहुत शौक है. हम हमेशा से हरा सलाद खाना पसंद करते हैं. मैं चाहती थी कि क्यों ना घर पर हरी सब्जियां और साग उगाकर उसका इस्तेमाल किया जाए."

Urban Farming in Indien
अपने घर का सलाद तस्वीर: DW/A.Ansari

खुद से उगाए जाने वाले साग-सब्जी के फायदे गिनाते हुए मुदिता कहती हैं, "किचन गार्डन में सब्जी उगाने का एक और लाभ यह है कि आप अपने मन मुताबिक सब्जी को तोड़ सकते हैं और खाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. ये बाजार से थोड़ी सस्ती के साथ-साथ स्वच्छ भी होती हैं."

भारत में इन दिनों जैविक खेती या कीटनाशक रहित सब्जी और फल उगाने पर जोर दिया जा रहा है. लोग स्वस्थ खाने के लिए थोड़े ज्यादा पैसे तक खर्च करने को तैयार हैं. जो लोग खुद से घर पर सब्जी नहीं उगा पा रहे हैं, वो ऐसे खेतों से सब्जी और फल ऑनलाइन ऑर्डर कर रहे हैं, जहां खेती के लिए कीटनाशक और अन्य रासायनों का इस्तमाल नहीं होता है.

होम गार्डन कैसे बनाना है और वहां क्या क्या लगाया जा सकता है, एडिबल रूट्स नाम की एक संस्था यही सब सिखाती है. कंपनी लोगों के लिए वर्कशॉप भी आयोजित करती है. एडिबल रुट्स के संस्थापक कपिल मांडवेवाला के मुताबिक, "शहरी लोगों और उनके खान-पान में सही तालमेल नहीं है. शहर में रहने वाले लोग खेती से जुड़े बुनियादी सवालों के जवाब नहीं जानते हैं. वे यह नहीं जानते कि उनका खाना कहां से आ रहा है, उसे कौन और किस तरह से उगा रहा है."

कपिल बताते हैं कि शुरुआत में जब उन्होंने वर्कशॉप का आयोजन किया, तो उन्हें लगा था कि कुछ ही लोग घर जाकर सब्जी उगा पाएंगे, "इसलिए हमने उन्हें व्यावहारिक अनुभव के साथ आत्मविश्वास भी दिलाया कि वे घर पर आम किसान की तरह सब्जी-फल उगा सकते हैं. सब्जी उगाने के पूरे सफर में हम उनके साथ रहते हैं. हम उन्हें छोटी सी छोटी जानकारी देते हैं."

मुदिता और मीता सरीन इस मौसम में सब्जी उगता देख काफी उत्साहित हैं. मुदिता बताती हैं कि हर हफ्ते जो भी सब्जी खेत से तोड़कर लाती हैं, उसको रिश्तेदारों और पड़ोसियों में भी बांटती हैं. ताजा, हरी-भरी और जैविक सब्जी देख उनके पड़ोसी और रिश्तेदार भी काफी प्रभावित होते हैं.

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