रिटायर होंगे दलाई लामा
१० मार्च २०११दलाई लामा ने कहा है कि वे तिब्बतियों के राजनीतिक नेता की भूमिका त्याग रहे हैं. उन्होंने कहा कि वक्त आ गया है और तिब्बतियों को खुद लोकतांत्रिक तरीके से अपने नेता को चुनना चाहिए. गुरुवार को दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में लोगों को संबोधित करेंगे.
चीन का शासन स्वीकार नहीं
उधर, तिब्बत युवा कांग्रेस के कोंगचोक यांगफेल ने कहा, "कुछ प्रदर्शनकारियों ने दूतावास में घुसने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक लिया. 40 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया गया है."
चीन के दूतावास के बाहर लगभग 60 तिब्बती नागरिकों ने 'आजाद तिब्बत' के नारे लगाए और तिब्बत में चीन के शासन का विरोध किया. यह लोग 1959 में चीन के खिलाफ तिब्बती आंदोलन की 52वीं सालगिरह पर प्रदर्शन कर रहे थे.
तिब्बती युवा कांग्रेस ने कहा है कि तिब्बत के नागरिक तिब्बत में चीन के शासन को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकते हैं. इस दिन की संवेदनशीलता को देखते हुए चीन की सरकार ने अस्थायी तौर पर इलाके में पर्यटकों के जाने पर रोक लगा दी है. नेपाल में भी पुलिस ने वहां रह रहे तिब्बती शरणार्थियों को विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने से मना किया है.
आंदोलन का लंबा इतिहास
1959 में भारत पहुंचकर दलाई लामा ने विदेश में तिब्बत की सरकार का गठन किया था हालांकि इसे किसी भी देश से मान्यता हासिल नहीं है. भारत में लगभग एक लाख तिब्बती शरणार्थी रहते हैं. इनके लिए 35 खास बस्तियां बनाई गई हैं. इसके बाद अपने कुछ देशवासियों सहित तिब्बतियों के धार्मिक गुरू दलाई लामा ने भारत में शरण ली.
52 साल पहले 1959 में चीन शासन के खिलाफ तिब्बत में आंदोलन छिड़ा था जब नेता माओ त्से तुंग के शासन में सांस्कृतिक क्रांति के तहत तिब्बत के धार्मिक मठों को चीन ने अपने कब्जे में कर लिया. उस वक्त कई तिब्बती धार्मिक नेता और नागरिक गिरफ्तार किए गए. तब से लेकर अब तक तिब्बत में मानवाधिकार हनन को लेकर भी चीन की सरकार पर कई सवाल उठे हैं. 2008 में चीन में ओलंपिक खेलों के दौरान तिब्बत की राजधानी ल्हासा में भारी विरोध प्रदर्शन हुए. उस वक्त भारत में भी चीन के साथ संबंधों को देखते हुए कई प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई थी.
रिपोर्टः एजेंसियां/एमजी
संपादनः ईशा भाटिया