रिलायंस कितना बदलेगा भारत के ग्रीन एनर्जी सेक्टर को
६ जुलाई २०२१ग्रीन एनर्जी के बारे में कहा जाता है कि इससे जुड़ा हर प्लान सौर ऊर्जा से शुरू होता है और ग्रीन हाइड्रोजन पर खत्म होता है. हाल ही में भारत के सबसे बड़े बिजनेसमैन मुकेश अंबानी की ग्रीन एनर्जी को लेकर की गई घोषणा में भी यह बातें दिखीं. अंबानी ने गुजरात के जामनगर में 5 हजार एकड़ जमीन पर 'गीगा' कारखाना बनाने की बात कही, जहां सोलर पैनल, ग्रीन हाइड्रोजन, फ्यूल सेल और लीथियम-आयन बैटरी का निर्माण किया जाएगा. कंपनी ने साल 2030 तक 100 गीगावाट ग्रीन एनर्जी उत्पादन क्षमता हासिल करने का लक्ष्य भी रखा है. और सिर्फ अगले 3 सालों में इसका एक बड़ा हिस्सा पूरा कर लेने की बात कही है.
इतने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए जरूरी उपकरणों का प्रबंध कैसे किया जाएगा, इसे लेकर कोई घोषणा नहीं की गई लेकिन यह जरूर कहा गया कि रिलायंस दुनिया में सबसे कम लागत वाली ग्रीन एनर्जी उत्पादक बनने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि पूरी दुनिया के मार्केट को अपनी ओर आकर्षित कर सके. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2030 तक भारत को 450 गीगावाट ग्रीन एनर्जी उत्पादन क्षमता वाला देश बनाने का लक्ष्य रखा है. रिलायंस तब तक इस लक्ष्य का करीब एक-चौथाई उत्पादन अकेले करना चाहती है.
ग्रीन एनर्जी सेक्टर में एंट्री की कई वजहें
रिलायंस की इस सेक्टर में एंट्री बहुत महत्वपूर्ण समय पर और सरकारी नीतियों को ध्यान में रखते हुए हो रही है. अगले साल से भारत ग्रीन एनर्जी से जुड़े उपकरणों पर आयात शुल्क बढ़ाने वाला है. ऐसे में रिलायंस घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देकर भारत में बढ़ती मांग को पूरा करने का काम करेगी. बड़े स्तर पर निर्माण की घोषणा इसी से जुड़ी है. यह पहली बार नहीं है जब रिलायंस किसी ऐसे सेक्टर में एंट्री कर रही है, जहां पहले ही कई बड़ी कंपनियां मौजूद हैं. ग्रीन एनर्जी सेक्टर में टाटा, अडानी और जेएसडब्ल्यू जैसी बड़ी कंपनियां पहले से हैं. फिलहाल अडानी ग्रीन एनर्जी सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनी है. यह सोलर उपकरणों का निर्माण भी करती है और जल्द ही इसका विस्तार का प्लान भी है.
क्लाइमेट ट्रेंडस की संस्थापक और पूर्व में WWF से जुड़ी रही आरती खोसला कहती हैं, "निवेशक फिलहाल जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल, कोयला आदि) में निवेश नहीं कर रहे हैं. कंपनियों और सरकारों के ऊपर स्वच्छ और भविष्योन्मुखी ऊर्जा में निवेश का दबाव है. साथ ही रिलायंस भविष्य में भी अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को अपनी ओर आकर्षित करना चाहती है. ग्रीन एनर्जी सेक्टर में रिलायंस की एंट्री की यही वजहें हैं." वे कहती हैं, "सरकार की ओर से कंपनियों को दी जा रही सुविधाओं (जैसे उत्पादन पर सरकारी प्रोत्साहन) ने इस प्रकिया को तेज किया है. हालांकि अडानी के पास पहले से इस सेक्टर में होने का फायदा है लेकिन रिलायंस ने अन्य सेक्टर में जिस तरह परफॉर्म किया है, उससे उसकी सफलता पहले से ही सुनिश्चित है."
नीतियों की कमी से हो सकती है गड़बड़ी
रिलायंस और अडानी जैसे खिलाड़ी इस सेक्टर को तेजी से बदलने के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन इससे कई मुसीबतों का डर भी लोगों को सता रहा है. ग्रीनपीस में सीनियर कैंपेनर अविनाश कुमार कहते हैं, "कोयले से ऊर्जा निर्माण पहले ही एक महंगा साधन माना जाने लगा है. ऐसे में यह बदलाव होना ही था. लेकिन इस दौरान यह ध्यान रखना भी जरूरी होगा कि जो लोग पहले से पारंपरिक एनर्जी सेक्टर में काम कर रहे हैं, वो अचानक से बेरोजगार न हो जाएं. यह भी ध्यान रखना होगा कि जो बड़े-बड़े सोलर पैनल प्रोजेक्ट लगाने की बात हो रही है, जल्दबाजी में उन्हें ऐसी जगहों पर लगाने की अनुमति न दे दी जाए, जिससे आस-पास के जीव-जंतुओं और इंसानों को नुकसान उठाना पड़े."
इन तेज बदलावों के लिए समाज और बाजार दोनों को ही तैयार किया जा रहा है लेकिन इसके नियमन के लिए तेजी से नीतियां नहीं बनाई जा रहीं. आरती खोसला कहती हैं, "अब हजारों की संख्या में इलेक्ट्रिक कारें (ईवी) भारत में बिकने लगी हैं लेकिन अब तक भारत के पास ईवी की बैटरी को रिसाइकिल करने की कोई नीति नहीं है. इनकी अनियंत्रित बढ़ोतरी होती रही, तो इन ईवी और रूफटॉप सोलर के जरिए भी हम फिर से एक ऐसे बड़े प्रदूषण के दैत्य को खड़ा कर देंगे, जो कोयले या जीवाश्म ईंधन की तरह एक नई पर्यावरण त्रासदी को जन्म देगा." अब तक भारत में सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट का एनवायरमेंट एसेसमेंट नहीं होता है. जानकार चाहते हैं कि अगर इतने बड़े प्रोजेक्ट लग रहे हैं तो अब पर्यावरण पर इनके फायदे-नुकसान का आकलन भी होना चाहिए.
ऊर्जा के समझदारी से इस्तेमाल की जरूरत
ग्रीन एनर्जी की बात होने पर हम अक्सर बिजली की जरूरत तक सीमित हो जाते हैं लेकिन इसका एक बड़ा हिस्सा यातायात-परिवहन और उद्योगों से भी जुड़ा है. अविनाश कुमार कहते हैं, "इन दोनों पर भी पर्याप्त ध्यान देना होगा. एक बड़ा मसला जागरुकता का भी है. लोगों को संसाधनों के संयमित इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना होगा, वरना ऊर्जा की बर्बादी नहीं रोकी जा सकेगी और पर्याप्त ग्रीन एनर्जी होने के बावजूद बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन के प्रयोग की जरूरत पड़ती रहेगी." अविनाश कुमार लोगों को इलेक्ट्रिक कार खरीदने के लिए प्रेरित करने के बजाए पब्लिक ट्रांसपोर्ट से यात्रा को प्रोत्साहित करने और पब्लिक ट्रांसपोर्ट के इलेक्ट्रिफिकेशन पर काम करने की मांग करते हैं. वे कहते हैं, "तभी हम न सिर्फ ऊर्जा के सतत प्रयोग में आने वाले स्रोतों का सही इस्तेमाल कर सकेंगे और पर्यावरण को पिछले दशकों में हुए नुकसान की भरपाई भी कर सकेंगे."
इसके विपरीत आरती खोसला कहती हैं, "लोगों के लिए ग्रीन एनर्जी से जुड़ी नीतियां बनाने के साथ ही कंपनियों के लिए भी नीति बनानी होंगी कि वे एक निश्चित समय बाद अपने उत्पाद की सुध लें और अगर वह उपयोग लायक नहीं रह गया है तो उसकी रिसाइक्लिंग सुनिश्चित करें." हालांकि अभी प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि कैसे ऐसा माहौल पैदा किया जाए कि लोग ग्रीन एनर्जी संसाधनों को तेजी से अपनाएं और कंपनियों को भरोसा हो कि वे अपने उत्पादों को प्रतिस्पर्धी दामों पर बेच सकेंगीं.