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रॉस्टॉक में लोकतंत्र पर धब्बा

२२ अगस्त २०१२

बीस साल पहले उत्तरी जर्मन शहर रॉस्टॉक में विदेशी विरोध अपने सबसे खतरनाक स्वरूप में दिखा. तीन दिनों तक युवा दंगाईओं ने विदेशी शरणार्थियों के एक मकान पर हमला किया. इस घटना को लोकतंत्र पर बदनुमा धब्बा माना जाता है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

अगस्त 1992 में ये तस्वीरें दुनिया भर में गईं. स्थानीय निवासियों और उग्र दक्षिणपंथियों की भीड़ ने रॉस्टॉक लिष्टेनहागेन के बहुमंजिली इमारतों वाली बस्ती में एक मकान को घेर लिया था. वे विदेशी विरोधी नारे लगा रहे थे, पत्थरबाजी कर रहे थे और मोलोटोन कॉकटेल फेंक रहे थे. जब भी खिड़कियों के शीशे टूटते स्थानीय निवासी युवा दंगाईयों का उत्साह बढ़ाते. अपनी बाहरी पेंटिंग के कारण सूर्यमुखी भवन के नाम से जानी जाने वाली इमारत में आग लगा दी गई.

इस इमारत में एकीकरण के बाद मैक्लेनबुर्ग प्रांत के शरणार्थियों को रखा जाता था. हिंसा भड़की तो रॉस्टॉक के विदेशी मामलों के कमिश्नर वोल्फगांग रिष्टर इमारत के अंदर थे. हिंसा के आयाम ने उन्हें हैरान कर दिया, "उनके लिए यह बेमानी हो गया था कि इमारत में सौ लोग थे जिनकी आगजनी में जान जा सकती थी."

Rechtsradikale Gewalt gegen Ausländer in Rostock-Lichtenhagen 1992
पुलिस का पहरातस्वीर: picture-alliance/dpa

लेकिन किसी चमत्कार की तरह कोई घायल नहीं हुआ. अंतिम क्षणों में इमारत की छत पर जाकर वहां रहने वाले लोग और कमिश्नर ने जान बचाई. दो दिनों तक दंगाइयों का तांडव चलता रहा. उसके बाद प्रशासन ने कार्रवाई की और शरणार्थियों को निकाल कर बसों में सुरक्षित स्थान पर ले गई. उसके बाद दंगाईयों की कुंठा, तोड़ फोड़ और नफरत का निशाना बने इमारत में बचे रह गए वियतनामी गेस्टवर्कर और उनकी हिफाजत के लिए तैनात पुलिसकर्मी.

इमारत के सामने 30 पुलिसकर्मी 300 दंगाईयों को संभालने की नाकाम कोशिश कर रहे थे. बाद में और पुलिकर्मी आए लेकिन वे भी इस तरह की स्थिति के लिए तैयार नहीं थे. नवनाजियों ने दंगों का इस्तेमाल अपने प्रचार के लिए करना शुरू किया. अलग अलग जगह जाकर दंगा भड़काने वाले उग्र दक्षिणपंथी युवा दंगाइयों और घृणा से भरे निवासियों में घुल मिल गए. शीघ्र ही इमारत के सामने 1000 लोगों की भीड़ जमा हो गई.

Asylbewerber campieren vor Zentraler Aufnahmestelle 1992 Rostock-Lichtenhagen
अर्जी देने का इंतजारतस्वीर: picture-alliance/dpa

अचानक शुरू हुई लगने वाली हिंसा का अतीत था. हिंसक घटनाओं के कुछ सप्ताह पहले ही कुछ सौ शरणार्थियों जो ने इमारत के सामने मैदान में टेंट लगाए बैठे थे. वे शरण की अर्जी देने का इंतजार कर रहे थे, जबकि भारी गर्मी के कारण उनकी स्थिति खराब होती जा रही थी. स्थानीय निवासी उन्हें गंदगी, कूड़े, शोर और इलाके में हो रही चोरियों के लिए जिम्मेदार मानने लगे.

दोषी कौन?

पिछले बीस साल से एक सवाल किया जा रहा है कि यह नौबत क्यों आने दी गई? नस्लवाद विशेषज्ञ हायो फुंके का कहना है कि हिंसा की घटनाएं गलतियों की एक चेन का नतीजा था. शहर, प्रांत और एक हद तक सरकार ने हिंसा बढ़ने दी और उसके खिलाफ जरूरी कदम नहीं उठाए. फुंके के विचार में हिंसा को रोकने की इच्छाशक्ति का अभाव था. अपराधियों पर कानूनी कार्रवाई भी धीमी रही. 44 लोगों को तीन साल तक कैद की सजा मिली. रॉस्टॉक के मेयर और प्रांत के गृह मंत्री कतो इस्तीफा देना पड़ा. अब तक साफ नहीं है कि पुलिस कार्रवाई की जिम्मेदारी किसकी थी, क्योंकि पुलिस की एक टुकड़ी को हटाने के बाद हिंसा भड़की थी.

Randalierer Rechte Gewalt Ausländerhass Eisenhüttenstadt 1992
नवनाजी दंगाईतस्वीर: picture-alliance/dpa

उस दिन जलती इमारत में फंसे वियतनामी थिंह दो ने घटना के बीस साल बाद बताया कि रॉस्टॉक शहर प्रशासन से इससे सबक सीखा है. उन्हें नहीं लगता कि ऐसा कुछ वहां फिर से हो सकता है. नस्लवाद विशेषज्ञ फुंके मानते हैं कि विदेशियों पर वैसा हमला अब मीडिया की रिपोर्टों और पुलिस के नए नए नियमों के कारण संभव नहीं रहा है.

लेकिन विदेशियों से नफरत की आशंका कम नहीं हुई है. नस्लवाद ने अब नया रूप ले लिया है . उग्र दक्षिणपंथी अब भूमिगत रूप से सक्रिय हैं. 2011 में पता चले नवनाजी आतंकी सेल की तरह जिसने कई सालों के दौरान दस विदेशियों को जान से मार डाला.

Berliner Rechtsextremismus-Forscher Hajo Funke
हायो फुंकेतस्वीर: picture-alliance/dpa

सोशल डेमोक्रैटिक सांसद सोन्या स्टेफान का मानना है कि विदेशियों से खुले और छुपे नफरत का सामना एक जागरुक नागरिक समाज ही कर सकता है. रॉस्टॉक के बाद इसमें भी बदलाव आए हैं. उग्र दक्षिणपंथी पार्टी एनपीडी के खिलाफ हुए एक प्रदर्शन के बारे में वे बताती हैं, "इस शांतिपूर्ण जलसे में 2000 लोगों ने हिस्सा लिया. यह दिखाने के लिए कि हम एनपीडी की सोच के खिलाफ हैं."

रॉस्टॉक लिष्टरहागेन की यह सीख जर्मनी के राष्ट्रपति योआखिम गाउक को भी पसंद है. रॉस्टॉक में पादरी के रूप में काम कर चुके गाउक 20 साल पहले की उस घटना की याद जिंदा रखना चाहते हैं. 26 तारीख को वे सूर्यमुखी भवन के सामने भाषण देंगे. इस प्रयास में एक योगदान कि बीस साल बाद दूसरी तस्वीरें दुनिया में जाएं.

रिपोर्टः रिचर्ड फुक्स/एमजे

संपादनः निखिल रंजन