रोहिंग्या शरणार्थी मौत के मुंह में धकेले जा रहे हैं?
१८ मार्च २०१९रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए भाशन चार नाम के द्वीप पर घर बनाए गए हैं. यहीं रोहिंग्या शरणार्थियों को बसाया जाना है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और खुद रोहिंग्या शरणार्थियों ने बांग्लादेश की योजना पर सवाल उठाया है. दरअसल भाशन चार एक छोटा सा और तलछट से बना द्वीप है जिस पर बाढ़ और तूफान आने का खतरा हमेशा बना रहता है.
बांग्लादेश की सरकार ने एक साल पहले इस द्वीप पर सड़कें, शिविर और बाढ़ से बचाने वाली दीवारें बनानी शुरू कीं. इस परियोजना को पूरा करने पर 28 करोड़ डॉलर खर्च किए गए हैं.
भाशन चार का शाब्दिक अर्थ होता है बहता हुआ द्वीप. लगभग बीस साल पहले बंगाल की खाड़ी में यह द्वीप बनना शुरू हुआ. जानकारों का कहना है कि यह द्वीप ऐसी जगह पर स्थित है कि यहां पर मॉनसून में हमेशा बाढ़ का खतरा रहेगा.
बांग्लादेश की योजना है कि इस द्वीप पर बनाए गए 1,440 घरों में लगभग एक लाख रोहिंग्या लोगों को भेजा जाए. म्यांमार की सीमा से लगने वाले बांग्लादेश के कोक्स बाजार में स्थित शरणार्थी शिविरों में इस समय दस लाख शरणार्थी रह रहे हैं. बांग्लादेश सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री मोजाम्मेल हक का कहना है कि द्वीप पर निर्माण कार्य पूरा हो गया है और अगले महीने वहां शरणार्थियों को भेजने का काम शुरू हो जाएगा.
बांग्लादेश के तटीय इलाकों में तूफानों का खतरा बना रहता है. पिछले पचास साल में वहां तूफानों और बाढ़ की वजह से लाखों लोग मारे गए हैं. भाशन चार द्वीप पर 13 किलोमीटर लंबी एक दीवार बनाई गई है. अधिकारियों का कहना है कि तूफान आने की स्थिति में यह दीवार शरणार्थियों की बस्ती को समुद्र की ऊंची लहरों से बचाएगी.
वहीं संयुक्त राष्ट्र की एक उच्च मानवाधिकार विशेषज्ञ ने इस द्वीप का दौरा करने के बाद कहा कि उन्हें नहीं लगता कि यह द्वीप इंसानों के लिए रहने लायक है. म्यांमार के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि यांगही ली ने कहा, "शरणार्थियों की सहमति लिए बिना उन्हें आनन फानन में वहां पर भेजने से नया संकट पैदा हो सकता है." यांगही ने जनवरी में इस द्वीप का दौरा किया था.
इस द्वीप का दौरा कर चुके एक स्थानीय पत्रकार शाहिद शफीक का भी यही कहना है कि वहां रहना मुश्किल है. उनके मुताबिक, सामान्य लहरों की स्थिति में भी इस द्वीप के ज्यादातर हिस्से पानी में डूबे रहते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "यह द्वीप ऊंचा नीचा है और वहां जो नई सड़कें बनाई गई हैं, वे तेज लहर आने पर पानी में डूब जाती हैं. कोई भी तूफान द्वीप को आसानी से अपने साथ बहाकर ले जा सकता है."
शफीक कहते हैं कि बंगाल की खाड़ी में स्थित यह द्वीप बांग्लादेश की मुख्य भूमि से बहुत दूर है. वह कहते हैं, "ट्रॉलर से द्वीप पर पहुंचने में तीन घंटे लगते हैं और समुद्र अकसर अशांत रहता है जिससे वहां पहुंचना और जोखिम भरा काम हो जाता है."
इसीलिए बहुत से रोहिंग्या लोग वहां जाने से घबरा रहे हैं. ऐसे में इस बात की आशंका है कि सरकार उन्हें वहां जाने के लिए मजबूर कर सकती है. जर्मनी में रहने वाले एक रोहिंग्या कार्यकर्ता नेय सान ल्विन कहते हैं, "जब से शरणार्थियों को द्वीप पर बसाने की योजना बनाई गई है, तब से बहुत से लोगों ने वहां ना जाने की इच्छा जताई है. अगर वहां कोई जाता है तो उसे जबरदस्ती ही वहां भेजा जाएगा."
ल्विन कहते हैं, "मैंने शरणार्थियों के बहुत से प्रतिनिधियों से बात की है और कोई भी वहां नहीं जाना चाहता है. तब तक उन्हें पूरे अधिकारों और सुरक्षा के साथ अपने देश (म्यांमार) वापस नहीं भेजा जाता, वे वहीं रहना चाहते हैं जहां अभी हैं."
कोक्स बाजार के शरणार्थी कैंप में रहने वाले एक रोहिंग्या शरणार्थी अंसारुल्लाह अरमान ने डीडब्ल्यू को बताया, "अधिकारियों ने कैंप में आकर लोगों से पूछा कि कौन द्वीप पर जाकर बसना चाहता है, सबने इनकार कर दिया. ऐसे में अगर हमें जबरदस्ती वहां भेजा गया तो हम इसका विरोध करेंगे."
लेकिन तमाम आपत्तियों और चिंताओं के बावजूद बांग्लादेश की सरकार अपनी योजना पर अमल करने को तैयार है. बांग्लादेश के मंत्री मोजाम्मेल हक कहते हैं, "यह बांग्लादेश को तय करना है कि वह शरणार्थियों को कहां रखेगा."
अराफातुल इस्लाम/एके