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लड़कियां बोझ नहीं

५ दिसम्बर २०१३

बाल विवाह के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की मुहिम को दक्षिण एशियाई देशों ने पीठ दिखा दी है. इस प्रस्ताव में 2015 तक बाल विवाह के मामले खत्म करने की बात है.

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तस्वीर: picture alliance/AP Photo

दक्षिण एशिया में आज भी कम उम्र में ही लड़कियों की शादी हो जाना बड़ी समस्या है. यह कई बार पारंपरिक कारणों से तो कई बार शादी की उम्र को लेकर चले आ रहे रूढ़िवादी विचारों की वजह से होता आ रहा है. संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार समिति (यूएनएचसीआर) के अनुसार अगले दस सालों में 14 करोड़ से ज्यादा लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो जाएगी. इनमें से आधी दक्षिण एशियाई देशों में होंगी.

भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों में बाल विवाह गैर कानूनी है, लेकिन फिर भी इन्हें रोका नहीं जा सका है. यूनाइटेट नेशंस पॉपुलेशन फंड (यूएनएफपीए) की रिपोर्ट के अनुसार 2000 से 2010 के बीच करीब ढाई करोड़ लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में कर दी गई.

बड़े होने का डर

इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च के रिप्रोडक्टिव हेल्थ एंड इकोनॉमिक डेवलपमेंट विभाग की निदेशक प्रिया नंदा ने डॉयचे वेले को बताया, "दक्षिण एशिया में यह काफी आम है. जैसे ही लड़कियों का मासिक धर्म शुरू हो जाता है उन्हें शादी के लायक मान लिया जाता है." उनका मानना है कि इस तरह की सोच का सीधा सा मतलब यही है कि लड़की बड़ी हो गई तो उसे संरक्षण चाहिए. यह परिवार के मान सम्मान की बात होती है. यौन हमलों या शादी से पहले किसी के साथ स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बना लेने का डर भी परिवारों पर हावी होता है. इसी दबाव में अक्सर माता पिता उनकी जल्दी शादी करना सही कदम मानते हैं.

Kinderehe in Indien
तस्वीर: AP

संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव

बाल विवाह बंद करने के लिए यूएनएचसीआर ने एक प्रस्ताव रखा. इसमें दुनिया भर के देशों से इस संकल्प में सहयोग की मांग की गई. इथियोपिया, दक्षिण सूडान और यमन में बाल विवाह के मामले काफी ज्यादा हैं. इन देशों समेत कुल 107 देशों ने बाल विवाह के खिलाफ संकल्प लिया. भारत, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान अपने यहां बाल विवाह की उच्च दर के बावजूद भी इस संकल्प में शामिल नहीं हुए.

भारत में सामाजिक कार्यकर्ता कृति भारती ने कहा, "कई बार परंपराएं कानून पर भारी पड़ती हैं." वह कहती हैं भारत में गावों के बड़े बूढ़े ऐसे मामलों में कानून को ज्यादा मान्यता नहीं देते और क्षेत्रीय अधिकारी भी इन मामलों में आंखें मूंद लेते हैं. भारती को ऐसी लड़कियों के परिवार, आस पास के लोगों और कई बार राजनेताओं से भी आए दिन धमकियां मिलती हैं.

उनकी गैर सरकारी संस्था 'सारथी ट्रस्ट' बाल वधुओं को बचाने के लिए काम करती है. इस तरह के 150 मामलों में उनकी संस्था ने लड़कियों के बाल विवाह को कानूनी तौर पर रद्द करने में मदद की है. भारती ने डॉयचे वेले को बताया, "राजस्थान में यह प्रथा ज्यादा है और ऐसे में लोगों की मानसिकता बदलना बहुत मुश्किल है. इसी तरह से जबरदस्ती शादी कराने की एक परंपरा है 'मौसार'. परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने की स्थिति में घर का माहौल बदलने के लिए लड़की की शादी 13 दिनों के अंदर कर देनी होती है. फिर चाहे उम्र शादी के लायक हो या ना हो."

Stephanie Sinclair World Press Photo
तस्वीर: Stephanie Sinclair, VII Photo Agency for National Geographic magazine/AP/dapd

आर्थिक कारण

दक्षिण एशिया में आमतौर पर शादी ब्याह बड़े पैमाने पर खर्चीले अंदाज में होते हैं. ऐसे में परिवार पर भारी आर्थिक बोझ आ पड़ता है. अकसर लोग इसके लिए कर्ज ले लेते हैं. शोध के अनुसार बाल विवाह के ज्यादातर मामले ग्रामीण इलाकों में ज्यादा हैं. नंदा ने डॉयचे वेले को बताया, इन इलाकों में दहेज के लेन देन का भी खूब चलन है. जैसे जैसे लड़की बड़ी होती जाती है उसके साथ दहेज की मांग भी बढ़ती जाती है. ऐसे में परिवार ज्यादा पैसे खर्च करने के बजाय लड़की की जल्दी शादी कर देना बेहतर समझते हैं.

इसके अलावा उन्होंने बताया लड़की की कीमत इस बात से भी आंकी जाती है कि उससे कितना काम लिया जा सकता है. समाज में यह सोच बरकरार है कि उसका ज्यादा फायदा लड़के के परिवार वालों को मिलना चाहिए. वे मानते हैं लड़की का बहुत दिन तक अपने माता पिता के घर पर रहने का क्या औचित्य है जब वह उन्हें फायदा नहीं पहुंचाने वाली? इस तरह की शादियां कई बार व्यापार की तरह होती हैं. मानव अधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच के हीथर बार ने कहा, "अफगानिस्तान में कम उम्र की लड़कियां किसान पिता पर चढ़े कर्ज की भेंट चढ़ जाती हैं. जब किसान अपना कर्ज नहीं चुका पाते हैं तो पैसे के बदले उन परिवारों में लड़कियों की शादियां करके कर्ज चुका देते हैं."

Kinderehe in Indien
तस्वीर: AP

शरीर पर प्रभाव

शिक्षा की कमी में ये लड़कियां गरीबी में जीवन गुजारती हैं और आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर हो जाती हैं. इसके अलावा उनके स्वास्थ्य पर बेहद खराब असर पड़ता है. इन लोगों को यह भी नहीं पता कि शरीर के पूरी तरह से तैयार हो जाने से पहले गर्भधारण उनके शरीर पर बुरा असर डालता है. कम उम्र में शादी हो जाने पर उनके साथ घरेलू हिंसा के भी काफी मामले होते हैं. यूएनएफपीए की रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया में कम उम्र में गर्भधारण और मां बनने की प्रक्रिया में होने वाली मौतें सबसे ज्यादा हैं.

भावी चुनौतियां

हीथर बार इस बात पर जोर देते हैं कि इस समस्या से निपटने के लिए सबसे जरूरी है कि लोगों में इससे संबंधित कानून के प्रति जागरुकता पैदा की जाए. उन्होंने कहा, "सरकार को बहुत काम करने की जरूरत है. अफगानिस्तान में शादी कराने वाले मुल्ला ही ये नहीं जानते कि वहां लड़कों के लिए शादी की कानूनी उम्र 18 साल और लड़कियों के लिए 16 साल है."

जानकारों का मानना है कि इन सभी दक्षिण एशियाई देशों में कानून हैं लेकिन वे पूरी तरह से लागू नहीं हो पा रहे हैं. नंदा ने कहा, "समस्या बहुत गंभीर है और इसकी शुरुआत वहां से होती है जब लड़कियों को लड़कों से कम आंका जाता है. यह बहुत आम सोच है और इसे बदलने की जरूरत है." उनका मानना है सरकार को कुछ ऐसे रास्ते निकालने पड़ेंगे जिनसे हमारा समाज लड़कियों को बोझ की तरह देखना बंद करे.

रिपोर्ट: रोमा राजपाल/ एसएफ

संपादन: एन रंजन