लॉकडाउन से परेशान हैं भारत के टीनएजर्स भी
५ मई २०२०कोरोना वायरस लॉकडाउन के चलते देश के 47 करोड़ बच्चे पिछले 1 महीने से घरों की चार दीवारों में कैद हैं तो वहीं हाई स्कूल और यूनिवर्सिटी के छात्र परीक्षाएं स्थगित होने और बढ़ती अनिश्चितता को लेकर परेशान हैं. इंफेक्शन के डर से बच्चों के घर से बाहर निकलने पर भी पेरेंट्स ने पाबंदी लगा रखी है. अचानक हुए इन बदलावों ने जैसे बड़ों को परेशान कर रखा है, वैसे ही बच्चों और छात्रों के लिए भी ये आसान नहीं. 25 मार्च से लागू हुए देशव्यापी लॉकडाउन में लोगों की जिंदगी अचानक रुक सी गई है. जिस तरह बड़े लॉकडाउन संभालने के लिए तैयार नहीं थे, उसी तरह छात्र भी इन बदलावों के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे. अचानक परीक्षाएं स्थगित होने और क्लास ऑनलाइन शिफ्ट होने से जहां कई तरह की अनिश्चितताएं बढ़ गई हैं, वहीं मानसिक तनाव भी चरम पर है.
लेकिन ये परेशानी सिर्फ परिवार से अलग रह रहे बच्चों की नहीं, बल्कि परिवार के साथ रह रहे टीनएजर्स और युवा भी ऐसी ही परेशानियों से घिरे हैं. पिछले एक महीने से सोशल डिस्टेंसिंग और बिना पास बाहर ना निकल पाने की पाबंदियों के बीच कई छात्र अपने-अपने घरों में अपने परिवार के साथ पिछले एक महीने से बंद हैं. हाई स्कूल और यूनिवर्सिटी की परीक्षाएं टलती जा रही हैं, वहीं ज़ूम जैसे वीडियो कॉलिंग प्लैटफॉर्म के जरिए क्लास ली जा रही हैं. ज़्यादातर छात्रों ने एक महीने से कॉलेज नहीं देखा. लेकिन "नेटफ्लिक्स और चिल" के इस दौर में भी रियल लाइफ दोस्ती की कमी कई बच्चों को खल रही है और भारत के सदियों पुराने चाय के स्टॉल पर होने वाली चर्चा की जगह व्हाट्सएप नहीं ले पा रहा.
दोस्तों से दूरी ने बढ़ाई परेशानी
लॉकडाउन ने अचानक छात्रों को अपने परिवार के नजदीक तो खींच लिया लेकिन उन्हें अपने दोस्तों से दूर कर दिया, जिनपर शायद वो मानसिक तौर पर ज्यादा निर्भर हैं. कई छात्रों का मानना है कि पढ़ाई ऑनलाइन होने के बावजूद लॉकडाउन का असर उनके ग्रेड्स और आगे की तैयारी पर पड़ेगा. साथ ही किसी भी दोस्त से ना मिल पाना भी बड़ी समस्या है. 21 साल के निशांत गंगवानी बंगलुरू के अजीम प्रेमजी कॉलेज में डेवलपमेंट की पढ़ाई कर रहे हैं. उन्हें लॉकडाउन में इंदौर वापस आकर अपने माता-पिता के साथ रहना पड़ा. निशांत की पढ़ाई वीडियोकॉलिंग साइट जूम के जरिए ही हो रही है, लेकिन उनका मानना है कि ऑनलाइन क्लास के बावजूद यूनिवर्सिटी से दूर रह के पढ़ना उनके लिए मुश्किल है.
"कॉलेज में रहते हुए आप क्लासेस के अलावा भी दोस्तों के साथ उठते बैठते है, जहां पढ़ाई को लेकर भी बातें हो जाती हैं. हम कैंटीन में साथ खाते हुए और चाय की टपरी पर खड़े होकर कई बार क्लास में हुए लेक्चर पर चर्चा और बहस भी करते हैं जिससे कई नए एंगल निकलकर आते हैं और चीजें समझने में आसानी होती है, जो वी़डियो कॉल या फोन पर मुमकिन नहीं. कुछ इसी तरह की परेशानी का जिक्र ललित चौहान भी करते हैं, जिनका कहना है कि क्लासेस ऑनलाइन होने के कारण उनका स्क्रीन के सामने बैठने का टाइम कई गुना बढ़ गया है, "मैं ज्यादातर वक्त सोशल मीडिया और नेटफ्लिक्स पर ही गुजार रहा हूं, मुझे नहीं पता ये अच्छा है या बुरा, लेकिन मेरे पास हैंग आउट या बात करने के लिए कोई भी दोस्त नहीं है."
पेरेंट्स और बच्चों के बीच भरोसे की कमी
बच्चों में अकेलापन परिवार के साथ रहने के बावजूद भी एक बड़ी समस्या है. ज्यादातर मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि टीनएजर्स अपने माता-पिता से ज्यादा अपने दोस्तों से अपनी बात कह पाने में आसानी महसूस करते हैं. एक ऑस्ट्रेलियाई यूनिवर्सिटी की स्टडी के मुताबिक तनावपूर्ण माहौल में बच्चे और टीनएजर्स बड़ों की तुलना में अपनी उम्र के बच्चों की बोली हुई बात को बेहतर समझते हैं और उनपर निर्भर करते हैं. साथ ही तनाव के समय में अपनी उम्र के बच्चों के बीच होने से उन्हें खुलने के लिए एक बेहतर जगह मिल सकती है जो भावनात्मक अशांति को कम करने में मदद करती है.
वहीं भारत में हुई 2018 की एक स्टडी के मुताबिक देश में माता-पिता और बच्चों के बीच का रिश्ता अभी भी बेहद औपचारिक है. यानी बच्चों और पेरेंट्स के बीच कई मुद्दों पर बात नहीं होती, या फिर बच्चे खुलकर अपने विचार माता-पिता के सामने नहीं रख पाते. मसलन NCBI के एक सर्वे के मुताबिक 15 से 22 साल की उम्र के बीच के 64 फीसदी लड़के और 35 फीसदी लड़कियां सिगरेट पीते हैं. लेकिन ज्यादातर परिवारों में इसके बारे में चर्चा नहीं होती. खासकर लड़कियों के सिगरेट पीने को लेकर देश में अभी भी स्वास्थ्य से ज्यादा सामाजिक परेशानियां हैं.
भविष्य को लेकर बढ़ती अनिश्चितता
कोरोना वायरस के चलते बढ़ती अनिश्चितता के कारण कई परीक्षाएं स्थगित भी हो गई हैं. किसी का यूनिवर्सिटी का फाइनल एग्जाम बाकी है, तो कोई महीनों से जिस एंट्रेन्स एग्जाम की तैयारी कर रहा है वो पता नहीं कब होगा. दिल्ली यूनिवर्सिटी के योहान कहते हैं कि उनके ग्रेजुएशन के आखिरी साल का आखिरी एग्जाम टलता जा रहा है. "आप एग्जाम खत्म होने के बाद क्या-क्या करेंगे ये सोच कर रखते हैं, लेकिन अगर परीक्षा खत्म ही ना हो तो आप फंसे रहते हैं. हम घर से बाहर तो नहीं जा सकते लेकिन घर में रह कर भी लगातार परीक्षा का स्ट्रेस बने रहना मुश्किल है."
दिल्ली यूनिवर्सिटी के देव शर्मा कहते हैं कि इस वक्त हमें एग्जाम देकर पोस्ट ग्रेजुएशन एंट्रेंस की तैयारी करनी थी, लेकिन हम इस वक्त ग्रेजुएशन में ही फंसे हुए हैं, और एंट्रेंस एग्जाम का भी कोई भरोसा नहीं. इस वक्त भविष्य को लेकर सकारात्मक रह पाना मुश्किल है. सीबीएसई के 10वीं और 12वीं के छात्रों के कुछ एग्जाम भी अभी बाकी है, जिसकी नई तारीख का एलान बोर्ड को करना है. लेकिन मई का महीना जो छात्रों के लिए छुट्टी का महीना होना था इस वक्त भी पढ़ाई की तलवार उनके सर पर लटकी हुई है.
इंटरनेट से पढ़ाई सबके लिए मुमकिन नहीं
दिल्ली जैसे बड़े शहरों में रह रहे छात्रों के लिए तो ऑनलाइन क्लास फिर भी एक विकल्प है. पर भारत में डाटा भले ही सस्ता हो गया हो लेकिन कई छोटे शहरों में अभी भी इंटरनेट की कनेक्टिविटी उतनी अच्छी नहीं जितनी छात्रों को पढ़ाई के लिए चाहिए. साथ ही लैपटॉप पर बढ़ती निर्भरता गरीब तबके से आने वाले बच्चों की समस्या अमीरों की तुलना में बढ़ा देती है. अभी भी कई छात्र इंटरनेट का इस्तेमाल अपने फोन से करते हैं, और कंप्यूटर के लिए कॉलेज पर निर्भर हैं.
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बीए कर रहे शुभम मिश्रा लॉकडाउन के कुछ वक्त पहले ही अपने गांव वापस आए थे. नेपाल बॉर्डर के पास स्थित बढ़नी में उन्हें इंटरनेट से पढ़ाई करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. "यहां यूट्यूब तक खोलने में काफी मुश्किल होती है, ऐसे में वीडियो कॉल पर रोज क्लास अटेंड पाना नामुमकिन है." जाहिर है कोरोनावायरस सबके लिए ही मुसीबत लेकर आया है जिनमें से कई हमारे हाथ में नहीं. लेकिन घरों में कैद टीनएजर्स और युवा जो पहले ही पढ़ाई और भविष्य को लेकर चिंता में हैं उनके लिए अपनी बात ना कह पाना उनके लिए इस परिस्थिति को और भी मुश्किल बनाता है.
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