लोकतंत्र का तकाजा
२१ मई २०१५हां, मिस्र एक महत्वपूर्ण देश है. अरब दुनिया के विकास से लेकर लोकतंत्र तक के लिए महत्वपूर्ण. यूरोप के लिए महत्वपूर्ण. इसलिए संपर्क और राजनीतिक वार्ताएं अहम हैं. अब मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सिसी जून के शुरू में बर्लिन आ रहे हैं. और जर्मन संसद के प्रमुख नॉर्बर्ट लामर्ट क्या करते हैं? वे काहिरा से आने वाले मेहमान से मिलने से इंकार कर देते हैं. आखिर क्यों? नॉर्बर्ट लामर्ट ने भी डॉयचे वेले के साथ एक इंटरव्यू में मिस्र को "एक अहम देश" बताया है. लेकिन सबसे ज्यादा आबादी वाला अरब देश इस समय लोकतांत्रिक नहीं है. सवाल किया जा सकता है कि क्या वह कभी स्थिर लोकतांत्रिक सिद्धांतों वाला था. लेकिन तय है कि 2012 में लोकतांत्रिक चुनाव हुए और जनता ने एक संसद चुना. लेकिन उसके बाद हुए आंदोलनों और अल सिसी के नेतृत्व में सैनिक तख्तापलट ने जो कुछ भी लोकतंत्र था उसे नष्ट कर दिया.
संकेत से ज्यादा
लामर्ट का कदम सांकेतिक भर लग सकता है. लेकिन वह लोकतंत्र और संसद के विचार के लिए महत्वपूर्ण है. अल सिसी ने कई कदमों के जरिए अपनी सत्ता को पुख्ता कर लिया है, लेकिन आम लोगों की भागीदारी के प्रयास उनमें नहीं दिखते हैं. फील्डमार्शल अल सिसी विपक्ष का दमन कर रहे हैं, मौलिक अधिकारों में कटौती कर रहे हैं और अभिव्यक्ति तथा प्रेस स्वतंत्रता को नजरअंदाज कर रहे हैं. 2012 के अंत से दसियों हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया है, प्रदर्शनों में हजारों जानें गई हैं और न्यायपालिका भी स्वतंत्र नहीं है.
सरकारों को स्थिति को प्रभावित करने के लिए दुनिया के सभी शासकों के साथ बात करनी चाहिए. राजनीतिकतौर पर मुश्किल तानाशाहों और निरंकुश शासकों के साथ भी. बर्लिन में प्रमुख विदेशनीति विशेषज्ञ और राजनीतिज्ञ भी मिस्र में हो रहे विकास की आलोचना करते हैं और उन्हें चिंताजनक मानते हैं, लेकिन कहते हैं कि संवाद बना रहना चाहिए ताकि एक अस्थिर इलाके के स्थिर देश मिस्र का समर्थन किया जा सके.
दिल से सांसद
लेकिन लामर्ट जैसे संसद अध्यक्ष को क्या करना चाहिए? बुंडेसटाग के अध्यक्ष अपने फैसले से इस बात की याद दिलाते हैं कि जनप्रतिनिधि सभा के रूप में संसदों के अपने मूल्य होते हैं. वे लोकतंत्र की याद दिला रहे हैं. पिछले महीनों में कई स्मृति सभाओं में लोकतांत्रिक परंपरा की सराहना की गई है.
नॉर्बर्ट लामर्ट की कभी कभी इस बात के लिए हंसी उड़ाई जाती है कि वे अच्छा बोलते हैं, उन्हें बोलना पसंद है और वे भावनाओं को सही शब्द देते हैं. इस तरह वे सही मायनों में सांसद हैं. हाल का एक उदाहरण. कई हफ्तों तक जर्मनी में इस पर बहस हो रही थी कि उसमानी साम्राज्य में अर्मेनियाई लोगों के हत्याकांड को नरसंहार कहा जाए या नहीं. किसी जर्मन राजनीतिज्ञ ने इतनी साफगोई नहीं दिखाई जितनी लामर्ट ने और कहा, "यह जनसंहार था." यह वाक्य बना रहेगा क्योंकि संसद प्रमुख ने सांसदों के दिल की बात कह दी थी.