1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

"लोकपाल से पीएम को अलग रखा तो मुश्किल होगी"

१९ जून २०११

लोकपाल बिल की ड्राफ्टिंग कमेटी में प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखने के मुद्दे पर टकराव कम होता नजर नहीं आ रहा है. समिति के मुताबिक पीएम के पद छोड़ने के बाद लोकपाल अगर कार्रवाई करता है तो उसे पकड़ना मुश्किल होगा.

https://p.dw.com/p/11f7D
तस्वीर: dapd

लोकपाल बिल का मसौदा तैयार कर रही समिति में शामिल यूपीए मंत्रियों का कहना है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए. प्रधानमंत्री के पद से हटने के बाद लोकपाल को उसके खिलाफ जांच का अधिकार होना चाहिए. सिविल सोसाइटी सदस्य सरकार के इस पक्ष का विरोध कर रहे हैं.

कर्नाटक के लोक आयुक्त संतोष हेगड़े ने सरकार के रुख की आलोचना करते हुए कहा, "इससे प्रभावी जांच का हमारा उद्देश्य पूरा नहीं होगा. अगर पीएम को पद पर रहते हुए लोकपाल से अलग रखे जाने की इजाजत दी जाती है तो फिर उसके गलत आचरण का कोई सबूत ही नहीं बचेगा." हेगड़े सबूतों के नष्ट किए जाने की संभावना की ओर इशारा कर रहे थे.

संतोष हेगड़े ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री के पद छोड़ने के बाद लोकपाल को जांच की अनुमति दी जाती है तो इससे सबूतों को नष्ट किए जाने की आशंका बनी रहेगी. यह भी तर्क दिया जा सकता है कि जिस मामले में आरोप लगा है वह भ्रष्टाचार नहीं है और प्रधानमंत्री से निर्णय लेने में गलती हुई है.

इससे पहले एक टीवी न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, "हम महसूस करते हैं कि प्रधानमंत्री को इस बिल में नहीं रखना चाहिए. लेकिन हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जब पीएम अपने पद से हट जाए तो फिर उसे छूट नहीं मिलनी चाहिए." सिब्बल के मुताबिक इस मुद्दे पर सरकार तभी अंतिम फैसला लेगी जब बिल का मसौदा कैबिनेट के पास जाएगा. सिब्बल का कहना है कि सरकार खुले मन से सिविल सोसाइटी के सदस्यों के प्रस्तावों पर विचार कर रही है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: आभा एम

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी