विदेश से पैसा पाने वाले एनजीओ विदेशी एजेंट
२१ जुलाई २०१२इस विवादित कानून के लागू हो जाने से उन सभी गैर सरकारी संगठनों को विदेशी एजेंट कहा जा सकेगा जिन्हें विदेशों से पैसा मिलता है. पुतिन की सरकार को यह कानून पास कराने की इतनी जल्दी थी कि गर्मियों की छुट्टियों से पहले ही आनन फानन में इसे संसद के दोनों सदनों से पारित करा कर राष्ट्रपति के दस्तखत करा लिए गए. राष्ट्रपति के कार्यालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि पुतिन ने, "विदेशी एजेंट की भूमिका निभा रहे गैर सरकारी संगठनों के कामकाज को नियंत्रित करने वाले संघीय कानून पर दस्तखत कर दिए हैं."
रूसी संसद के निचले सदन डूमा ने इसी महीने की 13 जुलाई को यह बिल पारित किया, इसके पांच दिन बाद संसद के ऊपरी सदन फेडरेशन काउंसिल ने भी इसे पास कर दिया. कानून बन जाने के बाद विदेश से पैसा लेने वाले सभी गैर सरकारी संगठनों को अधिकारियों के पास अपने संगठन का नाम विदेशी एजेंट के रूप में दर्ज कराना होगा. इन सभी गैर सरकारी संगठनों को अपनी आमदनी, अपने खाते और प्रबंधन के ढांचे की समय समय पर अधिकारियों से जांच करानी होगी. सिर्फ इतना ही नहीं समय समय पर उन्हें खुद भी अपनी कमाई के स्रोत और प्रबंधन के बारे में जानकारी सार्वजनिक करनी होगी.
विश्लेषकों का मानना है कि सरकार ने यह कानून गैरसरकारी संगठनों की तरफ हाल के चुनावों की आलोचना का जवाब देने के लिए बनाया है. पिछले साल दिसंबर में हुए संसदीय चुनाव और इस साल मार्च में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान गैर सरकारी संगठनों ने राष्ट्रपति पुतिन और उनकी पार्टी के खिलाफ खुल कर मोर्चा खोल दिया. चुनाव में धांधली की शिकायत की गई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुतिन की काफी किरकिरी हुई.
इन चुनावों के बाद बड़े पैमाने पर देश में पुतिन के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए. पुतिन ने इन सबके पीछे अंतरराष्ट्रीय ताकतों की साजिश बताया. चुनाव पर नजर रखने वाले गोलोस जैसे गैर सरकारी संगठनों पर जम कर गुस्सा निकाला है. गोलोस और उस जैसे दूसरे संगठनों के जुटाए सबूतों के आधार पर ही विपक्षी पार्टियों ने इस बार के चुनावों के अवैध होने का दावा किया.
इस बार के चुनाव ने पुतिन को वापस राष्ट्रपति की कुर्सी पर तो बिठा दिया लेकिन देश के भीतर और बाहर उनके तौर तरीकों को लेकर काफी आलोचना हुई है. चुनावों में धांधली की बात खूब उठी और वह जिस जनमत के अपने साथ होने का दावा करते रहे हैं, उसे धांधली से हासिल बताया गया. गैर सरकारी संगठनों ने चुनाव के दौरान बेहद सक्रिय भूमिका निभाई और अमूमन हर पोलिंग बूथ पर अपनी तरफ से पर्यवेक्षकों को तैनात किया. इन संगठनों को विदेश से मिलने वाले पैसे को लेकर राष्ट्रपति ने उनके खिलाफ मोर्चा खोला है.
एनआर/एमजे (एएफपी)