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कोविड काल की इमरजेंसी शक्तियों के गलत इस्तेमाल का आरोप

७ अप्रैल २०२०

विश्व के कई नेताओं ने कोविड-19 के संक्रमणकाल में जनता को बचाने के लिए इमरजेंसी शक्तियां अपने हाथों में ले ली हैं. लेकिन एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन इन शक्तियों के दुरुपयोग के मामले उठा रहे हैं.

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Philippinen Schüsse in einer Mall in Manila
तस्वीर: Reuters/E. Lopez

एक ओर वेनेजुएला में कोविड-19 के बारे में रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार डार्विन्संस रोजस को जेल में डाला गया. तो दूसरी ओर, कंबोडिया में सरकार के 17 आलोचकों को जेल की सजा हुई. इसी तरह थाईलैंड में एक व्हिसल-ब्लोअर को जेल में डाला गया. इस कलाकार ने अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखी थी जिसमें उसने देश के एक प्रमुख हवाईअड्डे पर कोरोना की जांच की पर्याप्त व्यवस्था ना होने की बात कही थी. अगर दोष साबित हो गया तो उसे 3,000 डॉलर से भी अधिक का जुर्माना और पांच साल तक की जेल हो सकती है. ऐसे तमाम मामलों का जिक्र करते हुए अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सोशल मीडिया साइटों पर यह वीडियो शेयर किया है.

हाल ही में यूरोपीय देश हंगरी में प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने देश का शासन चलाने का अधिकार अनिश्चितकाल के लिए अपने हाथों में ले लिया. कोरोना की महामारी से निपटने के नाम पर जैसी इमरजेंसी शक्तियां सरकार के हाथ में हैं उनमें "गलत खबरें” फैलाने पर पांच साल तक की जेल की सजा भी हो सकती है.

देश के पत्रकारों में इसे लेकर आशंका फैली हुई है क्योंकि आलोचनात्मक रिपोर्ट देने वालों को चुप कराने की कानूनी व्यवस्था देश में की जा चुकी है. इसके अलावा विपक्षियों को हिरासत में लेने के मामले आइवरी कोस्ट से लेकर क्यूबा तक में सामने आए हैं. इन मामलों की टाइमिंग को लेकर मानवाधिकार समूहों ने सवाल उठाए हैं. 

अफ्रीकी महाद्वीप में मानवाधिकारों की स्थिति पर अपनी सालाना रिपोर्ट जारी करते हुए एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि 2019 में नाइजीरिया, बुर्कीना फासो, कैमरून, माली, मोजाम्बिक, सूडान और सोमालिया जैसे तमाम अफ्रीकी देशों में प्रदर्शनकारियों ने सरकारी दमन का सामना किया.

नागरिक आंदोलनों को दबाने के प्रयासों के बारे में जर्मनी में एमनेस्टी की अफ्रीका विशेषज्ञ फ्रांसिस्का उल्म-ड्युस्टरहोफ्ट ने कहा, "कई अफ्रीकी देशों में सुरक्षा बल जिस तरह से असंगत कार्रवाई कर रहे हैं, इस समय वह कोविड-19 से निपटने की कोशिशों के सामने बड़ा खतरा बन सकता है."

एमनेस्टी का कहना है कि अफ्रीकी महाद्वीप के 20 से भी अधिक देशों में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों से जुड़े लोगों को कई तरह के प्रतिबंध झेलने पड़ रहे हैं, उन पर अत्यधिक शक्ति के इस्तेमाल हो रहा है और तमाम लोगों को हिरासत में लिया जा रहा है.

अन्य मानवाधिकार संगठनों ने तेल के मामले में समृद्ध खाड़ी देशों से अपील की है कि वे शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों से जुड़े राजनीतिक एक्टिविस्टों को जेल से रिहा कर दें और प्रवासी मजदूरों के लिए बनाए गए शिविरों में ढील दें जिससे कोरोना के संक्रमण से निपटा जा सके.

खाड़ी सहयोग परिषद के छह देशों में कई सालों से ऐसे एक्टिविस्टों और विपक्षी नेताओं को हिरासत में रखा गया है. ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि सेहत पर खतरे को देखते हुए इमिग्रेशन डिटेंशन में रखे गए लोगों को हिरासत से बाहर रहने का विकल्प दिया जाना चाहिए. खाड़ी देशों के ऐसे डिटेंशन शिविरों और जेलों में भीड़ की समस्या होने के कारण वहां कोरोना का खतरा कहीं ज्यादा है.

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एडिटर, डीडब्ल्यू हिन्दी
ऋतिका पाण्डेय एडिटर, डॉयचे वेले हिन्दी. साप्ताहिक टीवी शो 'मंथन' की होस्ट.@RitikaPandey_