व्यावहारिक राजनीतिज्ञ हैं मैर्केल
७ सितम्बर २०१३अंगेला मैर्केल किस तरह राजनीति करती हैं ये जानने की इच्छा रखने वाले को बस मौजूदा एनएसए स्कैंडल में उनके व्यवहार पर नजर डालनी होगी. दरअसल ये स्कैंडल जर्मन चांसलर की विदेश और घरेलू नीति के लिए भयानक साबित हो सकता था. उनके सबसे निकट सहयोगी अमेरिका ने सारी खुफिया कला का इस्तेमाल कर अपने जर्मन दोस्तों की जासूसी की और जर्मन खुफिया एजेंसियों ने उनकी पूरी मदद की. बात सार्वजनिक हुई तो मैर्केल अपने सामान्य इंतजार वाले अंदाज में पेश आईं.
पहले वह चुप रहीं, फिर अपने प्रवक्ता के जरिए इस पर क्षोभ व्यक्त किया. अंत में एक टेलीविजन इंटरव्यू में इस तरह से आम सी टिप्पणी करती हैं कि उसका विरोध करना मुश्किल है. वे कहती हैं, "मैं समझती हूं कि हमें दो चीजें करनी चाहिए. पहली बात, हमें खुफिया एजेंसियों की जरूरत है और दूसरे हमें कहना चाहिए कि आप लोकतांत्रिक कानून व्यवस्था के बाहर नहीं हैं, बल्कि जहां तक आपका काम इसकी इजाजत देता है, आपकी जिम्मेदारी है कि आप कुछ चीजों को स्पष्ट करें. अपने काम के तरीके को बताएं ताकि उसके बारे में ज्यादा पता चल सके."
वे समस्याओं पर चुप्पी साध लेती हैं और अंत में बहुमत की राय में शामिल हो जाती हैं. बहुत से लोग इसे मैर्केल का तरीका बताते हैं. ये एक ऐसा राजनीतिक गुण है, जो उन्हें सम्मान के साथ तिरस्कार भी दिलाता है. लेकिन समय समय पर वे अपना सख्त चेहरा भी दिखाती हैं. मुख्य रूप से यूरोपीय मंच पर. 2008 से यूरो मुद्रा को बचाने में उन्हें संकटमोचक समझा जाता है. यूरोप में उनकी बचत नीति के कारण हर जगह प्रशंसा नहीं होती, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बहुमत उनकी यूरो नीति के पक्ष में है.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के काल में जर्मनी में किसी राजनीतिज्ञ को इतना कमतर नहीं आंका गया है जितना पूर्वी जर्मनी से आने वाली पादरी की इस बेटी को. चांसलर मैर्केल की जीवनी लिखने वाली लेखिका जैकलिन बॉयजेन कहती हैं, "बहुत से लोगों ने एक दशक से ज्यादा तक कोल की इस लड़की की, जैसा कि उस वक्त कहा जाता था, हंसी उड़ाई. वे उस समय दूसरे राजनीतिज्ञों से एकदम अलग थीं." लेकिन सरकार चलाने के अपने गंभीर अंदाज के साथ उन्होंने सभी पार्टियों का सम्मान जीता है.
वे दलील और तथ्य इकट्ठा करती हैं और उनके आधार पर फैसले लेती हैं. इस प्रक्रिया में वे अक्सर खुद अपनी पार्टी के विचारों और कार्यक्रमों की परवाह नहीं करतीं. उनके लिए व्यावहारिक राजनीति सबसे महत्वपूर्ण है. इसके लिए वे पुराने दृष्टिकोणों को बेहिचक बदल सकती हैं. फुकुशिमा में परमाणु दुर्घटना के बाद उन्होंने परमाणु ऊर्जा का समर्थक होने के बावजूद परमाणु बिजलीघरों को बंद करने का फैसला किया. इससे उनका कोई नुकसान नहीं हुआ, फायदा ही हुआ. पूर्व चांसलर कोल की लड़की इस बीच राजनीति में "मां" हो गई है. पार्टी और सरकार पूरी तरह उनके नियंत्रण में है.
अंगेला मैर्केल ने संभवतः अपनी नेतृत्व क्षमता साम्यवादी जीडीआर में सीखी है. वे मजदूर और किसान राज्य की समर्थक नहीं थीं, लेकिन वे विद्रोही भी नहीं थीं. उनकी जीवनी लिखने वाली बॉयजेन कहती हैं, "इस बात ने उन्हें संवारा है कि वे एक ऐसे सिस्टम में बड़ी हुईं, जिसमें वह वो सब नहीं कर सकती थीं, जो करना चाहती थीं."
उन्हें बहुत जल्दी जरूरत के मुताबिक समझौता करना और दूसरों से व्यवहार में सावधानी बरतना सीखना पड़ा. साथ ही उन्होंने अपना सबसे बडा गुण दिखाया, दूसरों की बातें सुनने का गुण.
राजनीति में अंगेला मैर्केल देर से आईं और वह भी बिना किसी योजना के. जीडीआर के अंतिम प्रधानमंत्री लोथर दे मेजियेर के उप प्रवक्ता के रूप में उन्हें संवाद की क्षमता दिखाने का मौका मिला. चांसलर ने उन्हें पहले परिवार कल्याण मंत्री और फिर 1994 में पर्यावरण मंत्री बनाया. 1998 में चुनाव हारने के बाद उनकी पार्टी सीडीयू सदमे में थी, लेकिन अंगेला मैर्केल नहीं. उन्होंने कोल का काल खत्म होने के बाद अपने लिए मौका देखा. पहले पार्टी की महासचिव बनीं और पार्टी चंदा स्कैंडल के बाद कोल के पतन की शुरुआत की.
13 साल से अंगेला मैर्केल सीडीयू पार्टी की अध्यक्ष हैं. आठ साल से वे देश की चांसलर हैं. इस अवधि में उन्होंने पार्टी के अंदर अपने विरोधियों को एक एक कर किनारे लगा दिया है. उन्होंने साबित कर दिया है कि वे नेतृत्व कर सकती हैं, लेकिन कहां? यह सवाल उनकी पार्टी सीडीयू में भी बहुत से लोग पूछते हैं. पार्टी के एक धड़े का कहना है कि पार्टी अपनी विशिष्टता खोती जा रही है, लेकिन पार्टी में उनकी स्थिति अत्यंत मजबूत है. पत्रकार राल्फ बोलमन इसकी वजह सीडीयू की सत्तावादी व्यावहारिकता को मानते हैं. वे कहते हैं, "जब तक मैर्केल सफल हैं, यह काम करता रहेगा."
रिपोर्टः जनेट जाइफर्ट/एमजे
संपादनः निखिल रंजन