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समाज

शराब परोसने वाली महिलाएं पिला रहीं चाय

१ जनवरी २०१८

बिहार में शराबबंदी का असर न केवल शराब पीने वालों पर पड़ा बल्कि शराब बनाने वाली आदिवासी महिलाएं भी इससे प्रभावित हुई. जिसके बाद अब प्रशासन ने नई पहल छेड़ी है. 

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Indien Bihar Alkohol
तस्वीर: IANS

बिहार में शराबबंदी के बाद पुलिस ने अवैध शराब कारोबारियों को पकड़ने के लिए कई तरीके इजाद किए. लेकिन शराब बनाने वाली आदिवासी महिलाओं को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए बिहार की मुंगेर जिले की पुलिस ने एक अनूठी पहल की. पुलिस की इसी पहल का नतीजा है कि जो महिलाएं कल तक 'मयखाने' में शराब परोसती थीं, अब वे लोगों को चाय पिला रही हैं. पुलिस ने इन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए चाय की दुकान खुलवाई और मुर्गी पालन के लिए प्रोत्साहित किया.

पुलिस अधिकारी ने बताया कि आदिवासी गांव की 15 महिलाएं पिछले दिनों झारखंड से देशी शराब बनाने के लिए महुआ लाने के चलते पकड़ी गई थीं. जिन्हें अदालत के आदेश के बाद जेल भेज दिया गया था. लेकिन जमानत मिलने के बाद ये महिलाएं जेल से बाहर हैं. महिलाओं ने पुलिस को बताया था कि आर्थिक तंगी के कारण और आदिवासी इलाकों में रोजगार के अभाव के कारण ये सभी शराब बनाने का कार्य कर रही हैं. जिसके बाद पुलिस अधीक्षक आशीष भारती ने इन महिलाओं के लिए अनूठी पहल की. 

पुलिस अधीक्षक ने जिला प्रशासन के सहयोग से उनभीवनवर्षा गांव को ही गोद ले लिया. इन महिलाओं के रोजगार के लिए चाय दुकान खोलने से लेकर मुर्गी पालन तक के लिए सामान और मुर्गियां मुहैया करवाईं. पुलिस का उद्देश्य इन महिलाओं को स्वावलंबी बनाना है, जिससे आर्थिक कमजोरी के कारण फिर से ये महिलाएं शराब बनाने का धंधा न अपना लें.

पुलिस अधीक्षक आशीष भारती कहते हैं कि वर्तमान समय में गांव की 15 महिलाओं को स्वरोजगार के साधन उपलब्ध कराए गए हैं. उनकी योजना यहां की महिलाओं को स्वरोजगार के क्षेत्र में जैसे मोमबत्ती बनाने, अगरबती, पापड़ बनाने के लिए प्रशिक्षण दिलवाने की है. उन्होंने बताया कि इसके लिए वे खुद कई संस्थाओं से बात कर रहे हैं. वहीं इस पहल से महिलाएं भी खुश हैं. यहां महिलाएं अब न केवल दुकान खोलकर लोगों को चाय पिला रही हैं, बल्कि आर्थिक रूप से मजबूत भी हो रही हैं.

कमली देवी जिन्हें मुर्गी पालन के लिए प्रशासन द्वारा मुर्गियां दी गई हैं, कहती हैं, "किसी को भी अवैध धंधा करना अच्छा नहीं लगता परंतु पेट के लिए सबकुछ करना पड़ता है." उन्होंने कहा कि अब वह कभी भी शराब के धंधे की ओर नहीं जाएंगी. वह कहती हैं, "मेहनत-मजदूरी कर खा लेंगे परंतु अवैध शराब का धंधा कभी नहीं करूंगी." पुलिस द्वारा गैस सिलेंडर, केतली जैसे सामान मुहैया कराए जाने पर चाय की दुकान चला रही कारी देवी के लिए तो अब पुलिस ही भगवान हैं. उसका कहना है कि पुलिस की इस पहल का प्रभाव अन्य गांवों में भी पड़ेगा.

उनभीवनवर्षा गांव की पहचान नक्सल प्रभावित गांव के रूप में रही है. नक्सल प्रभावित होने के कारण सरकार की कई योजनाएं भी यहां असफल ही रही हैं. इस कारण आज भी यह गांव न केवल विकास की बाट जोह रहा है, बल्कि यहां के लोगों के लिए रोजगार के साधन भी नहीं के बराबर हैं.

आईएएनएस