शांत हो गई रणथम्बौर की रानी
१८ अगस्त २०१६रणथम्बौर के भीतर पुराने के किले अवशेषों पर बैठकर अपने इलाके के देखने वाली मछली अपने पीछे तीन पीढ़ियां छोड़कर विदा हुई. पिछले दो दशकों से राजस्थान के रणथम्बौर राष्ट्रीय पार्क ही बाघिन 'मछली' का घर था. एक बाघिन का नाम मछली रखा जाना अजीब लगता है लेकिन इसके पीछे भी एक कहानी है. असल में इस बाघिन को ज्यादातर समय रणथम्बौर पार्क के भीतर पानी वाले इलाके में रहना ही पसंद था, इसी कारण उसे मछली कहा गया.
इसके अलावा भी इसके कई नाम थे. जैसे उसका नाम 'लेडी ऑफ दि लेक' तब पड़ा, जब पानी में बहादुरी से मगरमच्छ से लड़ने की बेहतरीन तस्वीरें दुनिया के सामने आईं. साल दर साल इस पार्क के सभी बाघों में मछली की सबसे ज्यादा तस्वीरें ली गईं. इस तरह वह कई किताबों और वृत्तचित्रों की मुख्य स्टार बन गई.
वन अधिकारी योगेश कुमार साहू ने बताया, "मछली बहुत बूढ़ी हो गई थी और पिछले कुछ समय से बीमार चल थी. चार दिन से वो जंगल में कुछ कुछ बेहोशी जैसी हालत में एक ही जगह बैठी थी."
राजस्थान के मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर मछली की मौत पर दुख व्यक्त करते हुए लिखा कि उसने कई दर्शकों को जीवन भर ना भूलने वाली कहानियां दीं थीं.
बाघिन टी16 को सबसे पहले सन 1997 में स्पॉट किया गया था. इसलिए उसकी उम्र कम से कम 20 साल तो थी ही, इससे ज्यादा भी हो सकती है. बाघ प्रजाति की औसत आयु 12 से 13 साल ही होती है. इस लिहाज से भी मछली दुनिया की सबसे बूढ़ी बाघिन खास साबित हुई. बीते कुछ सालों में उसके दांत टूट गए थे और वन अधिकारी उसे खुद खाना उपलब्ध कराकर उसका ख्याल रखते थे.