शादी से पहले दुल्हन का अपहरण और बाल विवाह की बेड़ी
३१ अक्टूबर २०१९यानी इंडोनेशिया की 15 लाख बालिका वधुओं में एक है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक बाल विवाह के सर्वाधिक मामले वाले देशों में इंडोनेशिया आठवें नंबर पर है. सरकार ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 16 साल से बढ़ा कर 19 साल कर दी है लेकिन सामाजिक संगठनों का कहना है कि पुरानी परंपराओं और शादियों का रजिस्ट्रेशन नहीं होने की वजह से बाल विवाह बदस्तूर हो रहे हैं.
यानी लोम्बोक द्वीप की वासी है. यहां रहने वाले ससाक लोग "दुल्हन का अपहरण" करने की सदियों पुरानी परंपरा को अब भी निभा रहे हैं. इस परंपरा में दूल्हा शादी से पहले दुल्हन को भगा ले जाता है. इस परंपरा को "मेरारिक" कहा जाता है. स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि यह रिवाज प्रेमालाप को बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था जो वर और वधु के मां बाप की मर्जी से होता था. हालांकि अब इसका दुरुपयोग समय से पहले शादी के लिए किया जा रहा है.
यानी ने शर्माते हुए बताया,"मुझे नहीं पता था कि क्या करना है जब उसने प्रस्ताव रखा तो मैंने हां कर दिया. हम बीच से मोटरसाइकल पर सवार उसके रिश्तेदार के घर चले गए."
यानी के मां बाप को भी नहीं पता था कि वह कहां है. बाद में गांव के प्रमुख उनके पास आए और बताया कि यानी को वह लड़का ले गया है और शादी की तैयारी कर रहा है. गोद में यानी दो महीने की बच्ची को लिए उसकी मां नूर हलीमा ने बताया, "मैं गुस्से में और परेशान थी, मैं उसे ढूंढ रही थी और लगातार रोए जा रही थी. उसने अपनी स्कूल की पढ़ाई भी पूरी नहीं की थी, लेकिन मैं उन्हें शादी के लिए रजामंदी देने के अलावा और क्या कर सकती थी."
यानी जैसी कहानियां लोम्बोक में बहुत आम हैं लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता एक अलग तरह से इसके खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं. ये लोग गांव के बुजुर्गों के साथ मिल कर "मेरारिक" के पारंपरिक तरीकों को लागू करने की कोशिश में हैं.
शादियों का रजिस्ट्रेशन
गर्ल्स नॉट ब्राइड्स नाम के संगठन के मुताबिक हर साल दुनिया भर में करीब 1.2 करोड़ लड़कियों की शादी बचपन में कर दी जाती है. शोषण, यौन हिंसा, घरेलू उत्पीड़न और बच्चों को जन्म देने के दौरान इन लड़कियों की मौत होने का बड़ा खतरा रहता है.
करीब 26 करोड़ की आबादी वाले इंडोनेशिया में हर नौ में से एक लड़की की शादी समय से पहले हो जाती है. ये आंकड़े आधिकारिक हैं. लोम्बोक में दुल्हन का अपहरण करने की परंपरा की शुरुआत कई पीढ़ी पहले हुई थी. करीब 20 लाख की आबादी वाले ससाक लोग ज्यादातर बाली के पूरब में मौजूद द्वीप पर रहते हैं. पहले जब कोई लड़का किसी लड़की को पसंद कर लेता था तो परिवारों के बीच इस मामले में चर्चा होती थी. यह परंपरा किर्गिस्तान, माली और इथियोपिया जैसे देशों से बिल्कुल अलग थी.
इसके बाद दूल्हा दुल्हन को सहमति से तय एक जगह ले जाता था और वहां रिश्तेदारों की निगरानी में दोनों एक दूसरे को परखते थे. अब यह परंपरा यानी जैसी लड़कियों की दुखद कहानी बन गई है. इसमें दूल्हा कम उम्र की लड़कियों से जबरन शादी कर लेता है. एक बार लड़की अगर लड़के के साथ रह जाए तो मां बाप के लिए ना करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि समाज में फिर उस लड़की के लिए स्वीकार्यता घट जाती है और मां बाप इससे बचना चाहते हैं.
बहुत से मां बाप यह भी सोचते हैं कि उनके नहीं रहने पर उनकी बेटी का पति उसका अच्छा ख्याल रखेगा. इसके अलावा उन पर आर्थिक बोझ भी नहीं पड़ता.
एक स्थानीय गैर सकारी संगठन से जुड़े फाओजान बताते हैं , "यह सब परंपरा के नाम पर किया जाता है, तो लोग इसे आंख मूंद कर स्वीकार कर लेते हैं, भले ही यह सही हो या गलत." फाओजान बताते हैं कि कम उम्र में शादी तलाक से लेकर अनियोजित गर्भ, बच्चे को जन्म देते वक्त मां की मौत और बच्चों के विकास में कमी के रूप में सामने आती है.
इसके साथ ही इस्लामी कानून इस तरह की शादियों को मंजूरी देते हैं. हालांकि ऐसी शादियां कहीं रजिस्टर नहीं होती हैं इसलिए तलाक की स्थिति में कोई गुजारे के लिए कोई धन नहीं मिलता.
यानी की शादी तो इस्लामी कानून से हुई लेकिन उसके पति ने बच्ची के जन्म से एक महीने पहले उसे तलाक दे दिया. अब वह अपने बच्ची का जन्म प्रमाणपत्र बनवाने के लिए परेशान है क्योंकि उनकी शादी को रजिस्टर नहीं कराया गया. इंडोनेशिया के महिला सशक्तिकरण और बाल संरक्षण मंत्रालय ने हाल ही में एक बयान में कहा था कि उसने बच्चों, मां-बाप और धार्मिक नेताओं में बाल विवाह रोकने के लिए जागरुकता बढ़ाने की एक योजना बनाई है. सरकार का कहना है कि शादी की उम्र बढ़ा कर बच्चों को बाल विवाह से बचाया जा सकता है. शादी की उम्र तो बढ़ा दी गई लेकिन नए कानून में यह भी प्रावधान है कि मां बाप चाहें तो कोर्ट से इजाजत लेकर कम उम्र में बच्चों की शादी कर सकते हैं. इस वजह से बहुत सी लड़कियों की कम उम्र में शादी हो जा रही है.
ससाक बुजुर्ग मुहम्मद रईस उन लोगों में हैं जो शादी, जन्म और मृत्यु जैसे मामलों में लोगों को रिवाजों के बारे में बताते हैं. 2016 से वह दूसरे लोगों और सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर "मेरारिक" की पुरानी परंपरा को वास्तविक रूप में लाने की कोशिश में जुटे हैं. उनका कहना है कि मेरारिक की परंपरा में कुछ बेहद जटिल नियम हैं जिनका सावधानी से पालन होना चाहिए. यह नियम "अपहरण की रस्म" से पहले के हैं. "मेरारिक" की परंपरा में शादी के लिए उम्र का तो कोई नियम नहीं बनाया गया है लेकिन कहा गया है कि लड़की तब तक शादी ना करे जब तक कि वह 144 कपड़े ना बुन ले. इसी तरह लड़के के लिए तब तक शादी की मनाही है जब तक कि वो किसी भैंस के 25 बच्चे होने तक उसका पालन पोषण ना कर ले. दूसरे शब्दों में कहें तो जब तक कि वो वयस्क ना हो जाएं.
54 साल के रईस कहते हैं, "मैं उदास, लज्जित और नाराज हूं. हमारी परंपरा का हमारे अपने ही लोग दुरुपयोग कर रहे हैं. पीड़ित हमारी लड़कियां और औरतें हैं." इस परंपरा को वास्तविक रूप में लाने के लिए "बेलास" की रस्म को फिर से लागू करवाने की कोशिश की जा रही है. इस रस्म के मुताबिक अगर लड़का लड़की एक दूसरे के लिए उपयुक्त ना हों तो उन्हें अलग कर दिया जाता है.
सामाजिक संगठन लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि बच्चों को शादी करने से रोकना कोई शर्म की बात नहीं है.
एनआर/एके(रॉयटर्स)
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