"संवेदनशील मुद्दों का ख्याल रखे चीन"
२९ अक्टूबर २०१०दुनिया में तेजी से उभरते दो देशों के नेताओं की मुलाकात में इस बात पर सहमति बनी कि मुश्किल समस्याओं के हल तलाशे जाएं. बैठक में दोनों ने साफ कहा कि दुनिया बहुत बड़ी है और उनके विकास के लिए पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं. इसके साथ ही दोनों के बीच आपसी सहयोग की भी पूरी गुंजाइश है. सहयोग की राह पर आगे बढ़ने के लिए चीनी प्रधानमंत्री इसी साल दिसंबर में भारत की यात्रा भी करेंगे.
हनोई में आसियान देशों की बैठक के मौके पर हुई 45 मिनट की इस मुलाकात में इस बात पर भी रजामंदी हुई की दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों की इस महीने के अंत में मुलाकात होगी और मुश्किल मामलों के हल पर चर्चा की जाएगी. इन मुश्किल मामलों में सीमा विवाद भी शामिल है. भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकर शिव शंकर मेनन ने मनमोहन-वेन की मुलाकात के बाद पत्रकारों से कहा, "प्रधानमंत्री ने सभी मुश्किल सवालों को उठाया और एक दूसरे के प्रति संवेदनशील होने को कहा. उन्होंने दोनों देशों को एक दूसरे की चिंताओं के प्रति संवेदनशीलता को मौजूदा वक्त की जरूरत बताया."
जुलाई में रक्षा संबंधों को निलंबित किए जाने के बाद दोनों देशों के बीच बड़े स्तर की यह पहली बातचीत रही. सुरक्षा सलाहकार ने प्रमुख मुद्दों के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब नहीं दिया. लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी से पता चला है कि यह मामला जम्मू कश्मीर से जुड़ा हो सकता है. चीन जम्मू कश्मीर के लोगों को भारतीय पासपोर्ट की जगह नत्थी किए हुए कागज पर वीजा देता है. भारत इस प्रक्रिया को अपनी संप्रभुता पर चोट मानता है.
इस साल यह मामला तब और बड़ा बन गया, जब चीन ने भारतीय सेना की उत्तरी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बीएस जायसवाल को भी यही नत्थी वीजा देने की पेशकश कर दी. नतीजा यह हुआ कि जायसवाल ने वीजा लेने से इनकार कर दिया. भारत ने इसके जवाब में दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों को निलंबित कर दिया और कहा कि यह तब तक जारी रहेगा जब तक चीन अपने रवैये में सुधार नहीं लाता.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः ए कुमार