सऊदी अरब में आसान होगी विदेशी कामगारों की जिंदगी
५ नवम्बर २०२०भारत समेत कई देशों से लोग सऊदी अरब में मेहनत मजदूरी करने जाते हैं. अकसर उनके दमन और उत्पीड़न की खबरें आती रही हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए सऊदी अरब के मानव संसाधन और सामाजिक विकास मंत्रालय ने सुधारों का एलान किया है. इसके तहत सऊदी अरब में काम करने वाले विदेशी कामगार अब वहां आसानी से नौकरी बदल सकते हैं. इसका मतलब है कि वे अपनी स्पॉन्सरशिप एक कंपनी से दूसरी कंपनी को ट्रांसफर करा सकते हैं. जब उन्हें सऊदी अरब छोड़ना होगा उन्हें फाइनल एक्जिट वीजा दिया जाएगा. इसके लिए नौकरी देने वाली कंपनी की मंजूरी जरूरी नहीं होगी. नौकरी करते हुए भी वे सऊदी अरब से अपने देश आसानी से जा सकते हैं और फिर वापस आ सकते हैं.
इन सुधारों की लंबे समय से मांग हो रही थी. सऊदी सरकार में उप मंत्री अब्दुल्लाह बिन नासेर अबुथनैन ने कहा है कि नई "श्रम संबंध पहल" को मार्च 2021 से लागू किया जाएगा. इससे सऊदी अरब की लगभग एक तिहाई आबादी प्रभावित होगी. सऊदी अरब में लगभग एक करोड़ विदेशी कामगार रहते हैं.
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की रिसर्चर रोथना बेगम कहती हैं कि उन्हें अब तक जो सूचना मिली है उससे पता चलता है कि सऊदी अधिकारी खाड़ी देशों में पाए जाने वाले "कफाला" स्पॉन्सरशिप सिस्टम के कुछ प्रावधानों को हटा रहे हैं, जिसके तहत विदेशी कामगार नौकरी देने वाली कंपनी पर निर्भर रहते हैं.
कतर ने भी हाल में इसी तरह के सुधारों का एलान किया है, जो 2022 में फुटबॉल वर्ल्ड कप की मेजबानी की तैयारी कर रहा है. बेगम सऊदी अरब के श्रम कानून में हुए बदलाव को अहम मानती हैं जिससे विदेशी कामगारों की स्थिति सुधरने की उम्मीद है. हालांकि वह यह भी कहती है कि कफाला को अभी पूरी तरह खत्म किए जाने के संकेत नहीं मिलते. उनका कहना है, "विदेशी कामगारों को देश में आने के लिए अब भी कंपनी की स्पॉन्सरशिप चाहिए और हो सकता है कि कामगारों के रहने की अवधि और उनके दर्जे को अब भी कंपनी नियंत्रित करे." बेगम ने मध्य पूर्व में विदेशी कामगारों के अधिकारों, घरेलू नौकरों और महिलाओं के अधिकारों पर काम किया है.
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कफाला का चंगुल
सऊदी अरब के कफाला सिस्टम के तहत कामगारों के पास शोषण से बचने का बहुत कम मौका होता है, क्योंकि अब तक नौकरी देने वाली कंपनी ही इस बात को तय करती आई है कि वे देश से बाहर कब जाएंगे और उन्हें नौकरी बदलने की अनुमति होगी या नहीं. बेगम ने हाल में एक रिपोर्ट में लिखा कि किस तरह कंपनियां विदेशी कामगारों के पासपोर्ट रख लेती हैं और फिर उनका शोषण होता है. उनसे ज्यादा काम कराया जाता है और वेतन नहीं दिया जाता. इसी कारण सैकड़ों कामगार भाग जाते हैं और फिर उनके पास अपनी पहचान का कोई दस्तावेज नहीं होता.
सऊदी अरब में सुधारों का एलान क्राउन प्रिंस के विजन 2030 के मद्देनजर किया गया है जिसका मकसद देश को विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक बनाना, निजी सेक्टर का विस्तार करना और तेल पर निर्भर देश की अर्थव्यवस्था को विविध बनाना है.
विदेशी कामगारों पर रिसर्च करने वाले अली मोहम्मद कहते हैं कि जब तक काम और रहने के वीजा को एक व्यक्ति यानी स्पॉन्सर से जोड़ कर रखा जाएगा, तब तक कफाला सिस्टम बना रहेगा. वह कहते हैं कि सऊदी अरब में विदेशी कामगारों की हालत बहुत खराब है. वह मानते हैं कि विदेशी कामगारों को सिर्फ एक स्पॉन्सर के चंगुल से मुक्त करने के कदम का स्वागत होना चाहिए.
बेगम कहती हैं कि यह देखना अभी बाकी है कि क्या श्रम कानून में किया गया बदलाव घरों में काम करने वाली नौकरानियों और नैनी समेत सभी विदेशी कामगारों पर लागू होगा. वह कहती हैं कि सुधारों से जुड़ी जानकारी में इस बात जिक्र नहीं है कि क्या कंपनी किसी कर्मचारी के गायब होने की रिपोर्ट लिखा सकती है, या फिर कंपनी अब भी नौकरी बदलने से पहले कर्मचारी का वीजा भी खत्म करा सकती है. इसके लिए वह कफाला को पूरी तरह खत्म करने की मांग करती हैं.
एके/एनआर (एपी)
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