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सबसे गर्म सालों में रहा 2010

२१ जनवरी २०११

ब्रिटेन की कुछ पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्थाओं का कहना है कि 2010 अब तक का दूसरा सबसे गर्म साल था. 1998 में औसतन तापमान सबसे ज्यादा था. 2005 और 2010 में तापमान लगभग एक से रहे.

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तस्वीर: DLR

ब्रिटेन के क्लाइमेटिक रिसर्च यूनिट सीआरयू के निदेशक फिल जोन्स के मुताबिक 2010 में पृथ्वी की सतह का तापमान 1961 से लेकर 1990 के औसतन तापमान से 0.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था. जोन्स ने कहा कि 2001 से लेकर 2010 तक के सारे साल रिकार्ड गर्मी वाले साल थे. इनमें से केवल 2008 में तापमान सामान्य रहा. जोन्स के मुताबिक यह ग्रीनहाउज गैसों में बढ़ोतरी की ओर संकेत करता है और इसके पीछे मनुष्यों का प्रमुख भूमिका है. 2010 में पाकिस्तान में बाढ़, रूस, चीन और आर्जेंटीना में खाने पीने की चीजों के बढ़ते दाम, सब जलवायु परिवर्तन की ओर संकेत करते हैं.


तापमान बढ़ रहे हैं

नई जानकारी से पता चलता है कि पर्यावरण में बदलाव वास्तव में चिंता का कारण बन रहा है. सीआरयू और हैडली सेंटर के डाटा के अनुसार 2010 में तापमान 1961-1990 से 0.498 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था. 1998 में तापमान 0.517 ज्यादा था. उधर 2005 पुराने औसतन तापमान से 0.474 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था.

जोन्स का यूनिट मौसम की जानकारी देने वाले हैडली सेंटर के साथ इस मुद्दे पर काम कर रहा है. विश्व भर में सीआरयू और अमेरिका की दो और संस्थाएं पृथ्वी में बढ़ रहे तापमान पर काम कर रही हैं. संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड मीटियोरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन तीनों संस्थाओं से तापमान संबधित जानकारी लेता है और अब तक की जानकारी के मुताबिक 2010 सबसे गर्म सालों में है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

हाल ही में पर्यावरण से संबंधित लीक किए गए इमेल्स से पता चला कि 2009 में पर्यावरण वैज्ञानिक जलवायु में बदलाव को साबित करने में लगे हुए थे. संयुक्त राष्ट्र की जलवायु बदलाव संस्था आईपीसीसी की रिपोर्ट के गलत साबित होने से भी काफी नुकसान हुआ है. जबसे पता चला है कि रिपोर्ट में हिमनदों के पिघलने को लेकर गलत जानकारी है, तब से कई सरकारें पर्यावरण के मुद्दे पर कम ध्यान देती नजर आ रही हैं. लेकिन नए डाटा से शायद सरकारें एक बार फिर जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर हो जाएं.


सरकारों की कोशिशें

पिछले महीने मेक्सिको के कानकून में मिल रहे विश्व नेता गरीब देशों के लिए पर्यावरण संबंधी मदद देने पर एकमत तो हुए लेकिन कार्बन डायॉक्साइड उत्सर्जन को लेकर कोई सहमति बनती दिखाई नहीं दे रही है. विश्व सरकारें ग्लोबल वॉर्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस कम करने का वादा कर रही हैं लेकिन इन पर अमल होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा. उधर औद्योगिक युग से पहले के समय से तापमान 0.8 डिग्री बढ़ चुका है. वैज्ञानिकों का मानना है कि पर्यावरण में बदलाव की जानकारी और ऊर्जा में कमी सरकारों को सकारात्मक कदम उठाने की और उकसा सकती है.

रिपोर्टः एजेंसियां/एमजी

संपादनः एन रंजन

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