समान अधिकार के बावजूद क्यों परेशान हैं नेपाल में समलैंगिक
१८ सितम्बर २०१९नेपाल में चार साल पहले लैंगिक अल्पसंख्यकों को समान अधिकार देने वाला संविधान अपनाया गया. ऐसा करने वाला नेपाल दक्षिण एशिया का पहला देश था. नया संविधान लैंगिक रुझानों पर आधारित सभी भेदभावों को रोकता है. अब नागरिकता प्रमाणपत्र और पासपोर्ट 'नॉन मेल-नॉन फिमेल' कैटेगरी के लोगों को भी दिया जाता है. समलैंगिक जोड़ीदार नीरज सुन्वार और आशिक लामा कहते हैं कि संविधान तो अपना लिया गया लेकिन उसके बाद और काम नहीं हुए.
23 साल के सुन्वार और 28 साल के लामा उस दिन का इंताजर कर रहे हैं जब वे कानूनी रूप से शादी कर सकें. लामा की इच्छा एक बच्चे को गोद लेने की है. हालांकि अभी वे ऐसा नहीं कर सकते हैं क्योंकि वर्तमान में इस तरह का कोई कानून नहीं है जो इसकी इजाजत दे. लामा कहते हैं, "हम सरकारी कार्यालय में विधिवत तौर पर शादी करना चाहते हैं और एक प्रमाणपत्र चाहते हैं ताकि खुलकर जिंदगी जी सकें. हम एक बच्चे को गोद लेकर पारिवारिक जीवन शुरू करना चाहते हैं."
नेपाल में राजशाही के समाप्त होने के बाद जो संविधान बना उसमें इस तरह के अधिकारों की बात की गई है. वजह ये थी कि 2008 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने यौन अल्पसंख्यकों के खिलाफ सभी भेदभाव को समाप्त कर दिया था. हालांकि, एलजीबीटी एक्टिविस्ट कहते हैं कि नेता ऐसे नियम बनाने में नाकाम रहे जिससे वो अधिकार मिल सकते थे.
पिछले साल सिविल कोड के आने के बाद स्थिति और खराब हो गई. सिविल कोड में यह साफ तौर पर लिखा हुआ है कि शादी एक महिला और एक पुरुष का बंधन है. इस कदम ने दूसरी चीजों को और पीछे धकेल दिया. एलजीबीटी के अधिकारों के लिए काम करने वाले समूह ब्लू डायमंड सोसायटी की कार्यकारी निदेशक मनीषा ढकाल कहती हैं, "नेपाल ने जो रास्ता खोला, अन्य देशों ने भी उसी तरह किया लेकिन यह यहीं तक रुक गया है. संसद इस मामले में कुछ नहीं करना चाहती है."
लैंगिक भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने के अलावा नए संविधान ने अल्पसंख्यक समूहों को विशेषाधिकार दिया है. इन विशेष अधिकारों में सरकारी नौकरी और शिक्षा में आरक्षण शामिल है. एलजीबीटी समुदाय को अल्पसंख्यक बताया गया है लेकिन किसी तरह का आरक्षण नहीं मिलता है. एलजीबीटी के अधिकारों के लिए काम करने वाली एक्टिविस्ट पिंकी गुरुंग कहती हैं, "संविधान में साफ तौर पर कहा गया है कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए लेकिन इसके समर्थन के लिए कोई नियम या कानून नहीं है."
ढकाल कहती हैं, "संसद में बनाए जा रहे एक नए नागरिकता विधेयक के तहत अपनी स्थिति को बदलने के इच्छुक ट्रांसजेंडरों को मेडिकल प्रूफ दिखाना आवश्यक होगा. लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि किस तरह का मेडिकल प्रूफ दिखाना होगा. शारीरिक जांच का प्रावधान हमारी निजता का उल्लंघन है. नेपाल में लिंग बदलवाने की सर्जरी उपलब्ध नहीं है और ज्यादातर ट्रांसजेंडर इसमें लगने वाले खर्च को वहन भी नहीं कर सकते हैं. एक्टिविस्ट समान अधिकार के लिए कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं. इसके बाद इस मुद्दे को इंटरनेशनल राइट ग्रुप के पास ले जाया जाएगा ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके."
नेपाल का संविधान न केवल अपने देश में बल्कि दक्षिण एशिया में भी अपने समय से आगे था. भारत में पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को वैध ठहराया. भूटान की संसद ने हाल ही में "अप्राकृतिक यौन संबंध" को गैरकानूनी बनाने वाले प्रावधानों को रद्द किया है. वहीं मुस्लिम बहुल देश बांग्लादेश और पाकिस्तान में समलैंगिकता अभी भी गैरकानूनी है और इसके लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट हमेशा भेदभाव का सामना करते हैं. संविधान में जो अधिकार शामिल किए गए है यदि उन्हें मंजूर कर दिया जाए तो नेपाल एशिया के सभी देशों में सबसे आगे होगा. हालांकि ताईवान मई महीने में एक ही लिंग में शादी की मान्यता देने वाला पहला देश बना.
नेपाल में एलजीबीटी समुदाय के लोगों की संख्या के बारे में पूरी जानकारी नहीं है. 2021 में अगली जनगणना होगी. गुरुंग कहती हैं कि वे एलजीबीटी लोगों की गिनती की मांग कर रही हैं. एलजीबीटी समुदाय के लोगों की संख्या नहीं पता होने की वजह से उनके लिए नौकरी, शैक्षणिक संस्थान या स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में कोई कोटा नहीं है. एक्टिविस्ट कहते हैं कि आए दिन एलजीबीटी समुदाय के लोग नेपाल में भेदभाव का शिकार होते हैं.
सुन्वार कहते हैं, "नेपाल में एक ही लिंग के लोगों की शादी के लिए कोई नियम नहीं है. हम समाज में काफी परेशानी झेल रहे हैं. जब हम एक साथ गलियों में निकलते हैं तो हमारे पड़ोसी हिकारत भरी नजरों से देखते हैं क्योंकि दो पुरुष एक साथ जोड़े की तरह रह रहे हैं. दोनों दो साल से एक दूसरे के साथ रह रहे हैं लेकिन कुछ महीने पहले ही अपने परिजनों को इस बारे में बताया है."
अधिकारी कहते हैं कि सरकार एक ही लिंग में शादी की संभावनाओं की रिपोर्ट की समीक्षा कर रही है. साथ ही नए कानून बनाने पर विचार कर रही है. महिला, बच्चे और वरिष्ठ नागरिकों के लिए बनाए गए मंत्रालय में काम कर रहे अधिकारी भरत राज शर्मा कहते हैं, "कार्य की गति धीमी है लेकिन सरकार इस मुद्दे पर काम कर रही है. नया सिविल कोड और प्रस्तावित नागरिकता विधेयक ने इस मुद्दे को और अधिक पेंचिदा बना दिया है. अन्य मंत्रालयों के साथ मिलकर इन मश्किलों को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है. "
आरआर/एनआर (एपी)
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