सरकार करेगी संसद का सामना
१८ नवम्बर २०१२सरकार ने सितंबर में रिटेल सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी है, जिसके साथ ही पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि की गई है. इन फैसलों पर सरकार की तीखी आलोचना हुई है और उसकी प्रमुख सहयोगी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने साथ छोड़ दिया है. आधिकारिक तौर पर सरकार अल्पमत में है. इन घटनाक्रमों के बाद सरकार को न सिर्फ अपना बहुमत दिखाना होगा, बल्कि संसद के हंगामाखेज सत्र का भी सामना करना पड़ सकता है.
तृणमूल के साथ छोड़ने के बाद सरकार को दूसरी पार्टियों से बाहर के समर्थन की जरूरत है और कुछ पार्टियों ने यह साथ देने की बात तो कही है लेकिन संसद के अंदर अभी शक्ति परीक्षण नहीं हुआ है.
वित्तीय मामलों के जानकार भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था धीमी हो चली है और ऐसे में कुछ कड़े वित्तीय फैसले लेने की जरूरत है. इसी आधार पर एफडीआई वाला फैसला किया गया है. भारत का सकल घरेलू उत्पाद इस साल की दूसरी तिमाही में बहुत धीमी गति से चला है और चालू तिमाही के भी खराब नतीजों की संभावना है.
जेएनयू की प्रोफेसर जोया हसन का कहना है, "यह सरकार विश्वसनीयता को लेकर गहरे संकट में है. खास कर क्योंकि बेरोजगारी और महंगाई बढ़ती जा रही है. सरकार के भविष्य को लेकर बहुत साफ तस्वीर नहीं है. अगर विपक्ष संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाती है, तो सरकार मुश्किल में पड़ सकती है."
वामपंथी सीपीएम और तृणमूल कांग्रेस ने इस बात के संकेत दे दिए हैं कि वे संसद में अविश्वास प्रस्ताव ला सकती हैं.
जहां तक एफडीआई का सवाल है, सरकार सुपर मार्केट रिटेल की मंजूरी अपने दम पर दे सकती है लेकिन बीमा और पेंशन के मामले में एफडीआई की मंजूरी के लिए संसद से समर्थन हासिल है.
समय पूर्व चुनाव से बचने के लिए मनमोहन सिंह सरकार को समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों के समर्थन की दरकार होगी. हालांकि इन पार्टियों ने भी एफडीआई का विरोध किया है. भारत की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बीजेपी ने इस मुद्दे पर अभी तक खुल कर कोई बयान नहीं दिया है. पिछले सत्र में हर दिन बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने हुड़दंग मचाया था और पूरे सत्र संसद की कार्यवाही नहीं चल पाई थी.
दिल्ली के थिंक टैंक पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की देविका मलिक का कहना है कि 2009 से ही संसद में गतिरोध की परंपरा चली आ रही है, "हम देख रहे हैं कि सरकार कई बिल ला रही है और सिर्फ कुछ ही पास हो पा रहे हैं."
उनका कहना है कि 2010 के शीतकालीन सत्र में जो समय बर्बाद हुआ और पूरा सत्र बिना किसी काम के खत्म हो गया, उसकी वजह से बहुत सा पुराना काम जमा हो गया है. संसद में 102 विधेयक लटके हैं, जिनमें भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों के अहम बिल भी शामिल हैं. पिछले सत्र में चार में से तीन बिलों को सिर्फ 20 मिनट में पास किया गया और इसके लिए कोई बहस नहीं हुई.
राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषक बीजी वर्गीस का कहना है कि विपक्षी पार्टी एक बार फिर संसद की गतिविधि रोकने का प्रयास करेंगी. उन्होंने चेतावनी दी कि सरकार के पास इतना समय नहीं है कि वह ऐसी घटनाओं को सिर्फ मूक दर्शक बन कर देखती रहे, "अगर उन्होंने अभी कदम नहीं उठाया और अभी कार्रवाई नहीं की तो उन्हें एक भारी कीमत अदा करनी होगी क्योंकि तब चुनाव कराने होंगे."
एजेए/एएम (एएफपी)