सवाल आपके जवाब हमारे
३० मार्च २०१२रविन्द्र कुमार शुक्ला, युवा दर्पण यूथ क्लब, लखनऊ की शिकायत है, "रेडियो डॉयचे वेले हिंदी सेवा की मासिक पहेली प्रतियोगिता व सवाल का निशान प्रतियोगिता को क्यों समाप्त कर दिया गया है? फीडबैक कॉलम को अपडेट करना क्यों बंद कर दिया गया है?
-- शुक्लाजी, आपकी शिकायत कुछ हद तक तो दूर हो गई होगी. सवाल के निशान वाली प्रतियोगिता तो हमने 13 फरवरी से शुरू कर दी है और मार्च माह से आप हमारी मासिक पहेली प्रतियोगिता में भी भाग ले सकेंगे. आपकी फीडबैक कॉलम की शिकायत भी जल्द दूर हो जाएगी.
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सौतिक हटी, मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल से सवाल पूछते हैं, "जर्मनी में हर रोज कितने अखबार पब्लिश होते हैं और कौन सा अखबार सब से ज्यादा बिकता है?
-- जर्मनी में राष्ट्रीय स्तर पर 7 अखबार हर रोज प्रकाशित होते हैं जिनमें ज्यूड़डॉयचे जाइटुंग सबसे ज्यादा बिकता है. उसकी साढ़े पांच लाख प्रतियां बिकती हैं.
क्षेत्रीय स्तर पर भी यहां काफी सारे अखबार रोज निकलते हैं. राष्ट्रीय समाचार पत्रिकाओं की साप्ताहिक संख्या भी काफी है जैसे कि - डेयर श्पीगल (11 लाख), श्टर्न (10.5 लाख), फोकस (8 लाख) और विर्टशाफ्ट्सवोखे( पौने दो लाख)
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डॉ. राजीव कुमार, बिहार के भी दो सवाल हैं. पहला सवाल: " जर्मनी में लोग किस धर्म को मानते हैं?"
-- जर्मन लोग ईसाई धर्म को ही मानते हैं. लेकिन जर्मनी में विदेशी मूल के लोग भी काफी हैं. इस्लाम को मानने वाले भी जर्मनी में काफी लोग हैं.
दूसरा सवाल: जर्मनी का मुख्य पर्व कौन सा है?
-- ईसाईयों का मुख्य पर्व तो क्रिसमस होता है, इसके साथ साथ अन्य कई पर्व जैसे की कार्निवाल और ईस्टर भी बड़े धूम धाम से यहां मनाये जाते हैं.
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उमेश शर्मा, नारनौल, हरियाणा से लिखते हैं, "बर्लिन में यूरोपियन फिल्म फेस्टिवल हुआ जिसमें फिल्म एक्टर शाहरूख खान और प्रियंका चोपड़ा ने भी हिस्सा लिया था. यदि आपने उनका साक्षात्कार लिया हो तो जरूर सुनवाने का कष्ट करें. इंटरनेट वालों को सुनकर बहुत खुशी होगी.
-- जी हां, डॉयचे वेले हिंदी विभाग से मानसी गोपालकृष्णन इस फिल्म फेस्टिवल में गई थीं और उन्होंने शाहरुख खान, प्रियंका चोपड़ा व फरहान अख्तर का इंटरव्यू लिया था. इन्हें इन लिंक्स पर सुना जा सकता है.
http://www.dw.de/dw/article/0,,15737827,00.html
http://www.dw.de/dw/article/0,,15738139,00.html
http://www.dw.de/dw/article/0,,15736778,00.html
आप हमारी वेबसाइट पर जाकर मनोरंजन कालम में पढ़ और सुन भी सकते हैं.
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संकलनः विनोद चढ्डा
संपादनः महेश झा