सांप के जहर नहीं अंधविश्वास से मरते हैं लोग
१७ जुलाई २०१८देश में वैसे तो जहरीले सांपों की 13 प्रजातियां हैं. लेकिन उनमें से पांच सबसे खतरनाक हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि सांप काटने की बढ़ती घटनाएं इंसानों और जानवरों के बीच संघर्ष का सबसे बड़ा उदाहरण है. लेकिन इस समस्या की गंभीरता पर समुचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
बढ़ती मौतें
वर्ष 2011 में एक अध्ययन के मुताबिक, तब देश में सांप काटने से हर साल 46 हजार लोगों की मौत हो जाती थी. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा आंकड़ों के मुताबिक अब यह आंकड़ा 50 हजार तक पहुंच गया है. यहां हर साल तीन लाख लोगों को सांप काटते हैं. मुंबई स्थित हॉफकिन इंस्टीट्यूट फॉर ट्रेनिंग, रिसर्च एंड टेस्टिंग (एचआईटीआरटी) की निदेशक निशिगंधा नाइक कहती हैं, "भारत में सांप काटने से हर दस मिनट पर एक व्यक्ति की मौत हो जाती है. यह औसत दुनिया में सबसे ज्यादा है.” देश में सर्पदंश की घटनाओं के मामले में महाराष्ट्र पहले स्थान पर है. वह बताती हैं कि देश में सांप काटने की एक चौथाई घटनाएं महज तीन राज्यों—महाराष्ट्र, गोवा और गुजरात में होती हैं. पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में भी ऐसे हजारों मामले सामने आते हैं. एचआईटीआरटी भारत के उन दो संस्थानों में से एक है जहां सांपों का जहर निकालने के लिए उनको रखा जाता है. दूसरा संस्थान चेन्नई स्थित ईरूला को-आपरेटिव सोसयटी है.
दिलचस्प बात यह है कि सांप काटने से होने वाली मौतों के सरकारी और गैर-सरकारी आंकड़ों में जमीन-आसमान का अंतर है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, ऐसे मामलों में हर साल लगभग 2300 लोगों की मौत होती है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी ज्यादातर घटनाएं ग्रामीण इलाकों में होती हैं और अकसर इसकी सूचना पुलिस या अस्पताल को नहीं दी जाती.
विशेषज्ञों का कहना है कि जागरुकता की कमी भी ऐसी मौतें बढ़ने की प्रमुख वजह है. सांप काटने के बाद पहले लोग ओझा और झाड़-फूंक के चक्कर में फंस जाते हैं. इसमें समय गुजर जाने की वजह से ज्यादातर लोगों को बचाना संभव नहीं होता. वरिष्ठ चिकित्सक डा. कुमार सुब्बा कहते हैं, "सांप काटने के बाद शुरुआती कुछ मिनट बेहद अहम होते हैं. लेकिन ठोस दिशानिर्देशों के अभाव में कई बार अस्पताल इलाज शुरू करने में देरी कर देते हैं. कई मामलों में लोग अस्पताल जाने से पहले नीम-हकीमों के झांसे में पड़ कर कीमती वक्त बर्बाद कर देते हैं.”
सर्पदंश की बढ़ती समस्या पर अंकुश लगाने के लिए डाक्टरों को इसके इलाज का दिशानिर्देश तय करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिल कर वर्ष 2009 में नेशनल स्नेकबाइट मैनेजमेंट प्रोटोकॉल 2009 की रूपरेखा तैयार की थी.लेकिन उसके बाद इस दिशा में कोई ठोस काम नहीं हुआ.
ठोस आंकड़ा नहीं
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में इंसानों व सांपों के बीच बढ़ता संघर्ष इंसान-जानवर संघर्ष का सबसे बड़ा उदाहरण है. लेकिन अक्सर इसकी अनदेखी की जाती रही है हर साल इन घटनाओं में लगभग 50 हजार लोगों की मौत होती है. इसके उलट इंसानों और हाथियों के बीच होने वाले संघर्ष में सालाना सौ से तीन सौ लोगों की ही मौत होती है. ग्रामीण इलाकों में डाक्टरों को यह भी पता नहीं होता कि एंटी-वेनोम की डोज कैसे और कितनी देनी है. गलत डोज से मरीज को भारी शॉक लग सकता है.
इंसानों और सांपों के बीच इस बढ़ते संघर्ष में संरक्षण का मुद्दा भी छिपा है. वाइल्डलाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया के सदस्य जोस लुइस कहते हैं, "चूहों की आबादी पर नियंत्रण के लिए सापों का होना जरूरी है. लेकिन तेजी से साफ होते जंगल की वजह से इंसानों के साथ सापों के संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं.” वह कहते हैं कि यह महज स्वास्थ्य नहीं बल्कि संरक्षण की भी समस्या है. इस संघर्ष में या तो इंसान की मौत होती है या फिर सांप की. विशेषज्ञों का कहना है कि सांपों के काटने से जब हर साल इतनी भारी तादाद में लोगों की मौत हो रही है तब ऐसी स्थिति में लोगों से सांपों को बचाने के महत्व के बारे में बात करना बेवकूफी है. लोग आपकी बात ही नहीं सुनेंगे.
अंकुश के उपाय
बेंगलुरू में सांपों के संरक्षण से जुड़े गेरी मार्टिन कहते हैं, "सांप काटने से होने वाली ज्यादातर मौतें रोकी जा सकती हैं. इसके लिए जागरुकता और सही समय पर सही इलाज की जरूरत है.” देश में खासकर ग्रामीण इलाकों में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में एंटी-वेनोम दवाओं की कमी और उनके इस्तेमाल की सही जानकारी नहीं होने की वजह से सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है. देश में एंटी-वेनोम दवाएं बनाने वाली एक कंपनी प्रीमियम सीरम्स एंड वैक्सीन्स के सह-संस्थापक एम.वी.खांडिलकर का कहना है, "यहां एंटी-वेनोम की कमी है. तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण होने की वजह से इसका उत्पादन बढ़ाना संभव नहीं है. इसके अलावा इस कारोबार में ज्यादा मुनाफा नहीं होने की वजह से बड़ी कंपनियां इस दवा के निर्माण में दिलचस्पी नहीं ले रही हैं.”
लेकिन गेरी मार्टिन का कहना है कि भारत में इस दवा की कमी नहीं है. समस्या इसके वितरण में है. इसे खासकर ग्रामीण इलाकों में स्थित तमाम सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों तक पर्याप्त मात्रा में पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है. लोगों में इलाज के प्रति जागरुकता पैदा करना भी जरूरी है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस दवा को फ्रिज में रखा जाना चाहिए. लेकिन ग्रामीण भारत में बिजली की भारी कटौती को देखते हुए यह भी एक गंभीर समस्या है.
हैदराबाद स्थित फ्रेंड्स आफ स्नेक सोसायटी के महासचिव अविनाश विश्वनाथन कहते हैं, "सांप काटने के एक से दो घंटे के भीतर एंटी-वेनोम इंजेक्शन देकर पीड़ित व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है.”