सीबीएसई ने कोर्स कम किया तो क्यों हो गया विवाद
१७ जुलाई २०२०कौन कौन से थीम पढ़ रहे हैं, इससे ज्यादा चिंता छात्रों की ये होती है कि परीक्षा कैसे पास करेंगे. कोरोना महामारी ने सीबीएसई के फैसले को लागू करवाने में मदद ही की है. बहुत से छात्रों का कहना है कि ऐसे साल में जहां पढ़ाई कर पाना बेहद मुश्किल हो गया है और स्कूल कब खुलेंगे इसका पता नहीं, ऐसे में सिलेबस में कमी उनके लिए एक अच्छी खबर है. हैदराबाद में रहने वाली 14 साल की अनन्या इस साल दसवीं क्लास की पढ़ाई शुरू कर रही हैं, अनन्या का कहना है कि वो पूरा सिलेबस पढ़ना जरूर चाहती हैं लेकिन लगातार ऑनलाइन पढ़ाई होने से उन्हें परीक्षा की तैयारी की चिंता है. 11वीं में पढ़ने वाले आरव का भी मानना है कि महामारी के बीच में पढ़ाई काफी मुश्किल है, जिसका असर नंबरों पर पड़ेगा. हालांकि वो इस बात से भी चिंतित हैं कि कोर्स से जरूरी चीजें निकाल देने से आगे की पढ़ाई शायद मुश्किल हो जाए.
छात्र भले ही कोर्स कम करने को अपने समय के साथ देख रहे हों, कोर्स में हुए बदलावों से अभिभावक ज्यादा चिंतित हैं. दिल्ली के सेंट जेविअर स्कूल में पढ़ने वाले दो बच्चों के पिता थॉमस का कहना है कि छोटे बच्चों के लिए कोर्स कम करना अच्छी बात है लेकिन 10वीं और 12वीं के बोर्ड एग्जाम देने वाले छात्रों के लिए ये बुरी खबर है, क्योंकि सीबीएसई ने ऐसी चीजों को कोर्स से निकाला है जो आसानी से समझी जाने वाली चीजें है और बच्चों को बेहतर नंबर लाने में मदद करती हैं.
केंद्रीय बोर्ड ने निकाले जरूरी चैप्टर
सीबीएसई के फैसले पर सिर्फ स्कूल या अभिभावक द्वारा ही नहीं, राजनीतिक तौर पर भी कई सवाल उठे. दरअसल बोर्ड ने ‘दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति' का हवाला देते हुए 9वीं से 12वीं कक्षा तक के कोर्स में 30 फीसदी तक कटौती की है, जिसमें से कुछ बदलाव हमेशा के लिए लागू रहेंगे. लेकिन सबसे ज्यादा जिन बदलावों से सरकार पर सवाल उठ रहे हैं वो हैं कक्षा 9 राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम से, जहां भारतीय संविधान के लोकतांत्रिक अधिकारों और संरचना पर अध्यायों को पूरी तरह से हटा दिया गया है. कक्षा 9 के अर्थशास्त्र पाठ्यक्रम से भारत में खाद्य सुरक्षा पर अध्याय पूरी तरह से हटा दिया गया है. कक्षा 11 के राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम से संघवाद, राष्ट्रवाद, नागरिकता और धर्मनिरपेक्षता को भी पूरी तरह से हटा दिया गया है.
इसी तरह कक्षा 10 राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम से लोकतंत्र और विविधता के अलावा जाति, धर्म और लिंग वाले अध्याय को भी हटा दिया गया है. कक्षा 11 के सिलेबस से स्थानीय सरकार के अध्याय में दो इकाइयों, ‘हमें स्थानीय सरकारों की आवश्यकता क्यों है?' और ‘भारत में स्थानीय सरकार की वृद्धि' को पूरी तरह से हटा दिया गया है. साथ ही 12वीं कक्षा से भी समकालीन दुनिया में सुरक्षा, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन, भारत में नए सामाजिक आंदोलन, भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंध, जैसे कई अध्याय कोर्स से हटा दिए गए हैं.
बोर्ड के फैसले पर सवाल
सीबीएसई बोर्ड के फैसले के बाद सीपीएम के सीताराम येचुरी ने ट्वीट किया, "अत्याचारी! महामारी की आड़ में मोदी सरकार भारत की विविधता, बहुलता और लोकतंत्र को बनाए रखने वाले मूल्यों को उच्चतर माध्यमिक सिलेबस से हटा रही है.” वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी बोर्ड के इस कदम पर सवाल उठाए और ट्वीट किया, "दसवीं कक्षा के छात्र 12वीं के बाद जो खुद मतदाता बनने की कगार पर हैं, अब ‘समझ विभाजन,' ‘राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता' या ‘अपने पड़ोसियों के साथ भारत के संबंधों' पर सबक नहीं सीखेंगे. ये महत्वपूर्ण विषय हैं.”
हालांकि राजनीतिक बवाल बढ़ने पर सीबीएसई ने सफाई पेश करते हुए कहा है कि वो स्कूल और शिक्षकों से अपील करते हैं कि जिन अध्यायों को हटाया गया है वे उसे भी बच्चों को समझाएं, लेकिन वो एग्जाम में नहीं आएंगे. बोर्ड ने पहले एनसीईआरटी से उन विषयों और अध्यायों के बारे में सुझाव देने के लिए कहा था, जो या तो दोहराए जा रहे हैं या उससे संबंधित पढ़ाई अन्य अध्यायों के तहत कवर की जा रही है. देश भर के विश्वविद्यालयों और स्कूलों को 16 मार्च से ही बंद हैं. इस दिन केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी.
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