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समाज

सीवर सफाई में कब तक जानें जाती रहेंगी

शिवप्रसाद जोशी
४ मार्च २०१९

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सीवर की सफाई करते हुए दो युवकों की मौत हो गई. इस घटना के कुछ दिन पहले ही कुंभ में सफाईकर्मियों के पांव धुलते हुए मोदी का वीडियो आया था.

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Indien Neu Delhi - unaufgeklärte Todesursachen bei Arbeitern
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Das

खबरों के मुताबिक 34 साल के चंदन कुमार और 26 साल के राजेश पासवान जब मैनहोल में उतरे तो उन्हें कंपनी की ओर से गैस मास्क या सेफ्टी बेल्ट मुहैया नहीं कराई गई थी. इस बात पर सवाल उठ रहे हैं कि बिना किसी सुरक्षा उपकरण के दोनों युवकों को मैनहोल में क्यों उतारा गया. इस तरह से ये घटना भी मैनुअल स्केवेजिंग यानी हाथ से मैले की सफाई के तहत आती है जो यूं कानूनन प्रतिबंधित है और जिसके लिए एक साल की जेल और 50 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है. 2013 में ये कानून बनाया गया था.

सीवर की सफाई के दौरान मौतों का सिलसिला जारी है और उन्हें लेकर किसी स्पष्ट कार्ययोजना का अभाव बना हुआ है. इस भयानक काम से मुक्ति की राह आसान नहीं है. कुंभ यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार सफाई कर्मचारियों के पांव पखारते हुए देखे गए थे. आलोचक इसे ऑपटिक्स करार दे रहे हैं. और एक सवाल तो ये है कि उनकी सरकार को सफाईकर्मियों की वास्तव में कोई चिंता है भी या नहीं. क्योंकि वास्तविकता कुछ अलग है. बजट आवंटन से ही शुरू करें. द वायर के एक आंकड़े के मुताबिक 2019-20 के अंतरिम बजट में मोदी सरकार ने पांच राष्ट्रीय आयोगों के लिए करीब 40 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. जिनमें राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग शामिल हैं. इससे पहले के बजट में ये रकम 33.72 करोड़ रुपये थी. राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के लिए सिर्फ नौ करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है. पिछले बजटों के मुकाबले ये राशि बढ़ी तो है लेकिन बहुत ही मामूली बढ़त है.

दिसंबर 2018 में लोकसभा में सरकार की ओर से बताया गया था कि देश में मैनुअल स्केवेजिंग के काम में 1,80,657 परिवार जुड़े है. सरकार की पिछले साल की गिनती में देश में मैनुअल स्केवेंजरों की संख्या 53,236 पाई गई. लेकिन ये आंकड़ा पूरा नहीं बताया जा रहा है क्योंकि इसमें देश के 121 जिलों से ही डाटा लिया गया है. और रेलवे का तो इसमें आंकड़ा ही नही है जहां सबसे ज़्यादा मैनुअल स्केवेंजर बताए जाते हैं. सफाईकर्मियों के पुनर्वास की योजना 2007 से लागू है. 2013 में सरकार ने योजना को बहाल किया और मैनुअल स्केवेंजिग पर कानून लाकर प्रतिबंध भी लगा दिया. लेकिन पुनर्वास की योजना, निर्धारित बजट के इस्तेमाल में अनियमितता के चलते दम तोड़ रही है. और योजना की कार्यप्रणाली का अंदाजा तो इसी बात से लग जाता है कि 2006-07 से लेकर 2018-19 की अवधि के दरम्यान सिर्फ पांच बार इस स्कीम के तहत फंड रिलीज हो पाया. यानी सरकार कोई भी हो, पुनर्वास के काम को गंभीरता से नहीं लिया गया. और वैसे भी इतनी कम राशि का पुनर्वास हालात को बदलने वाला नहीं हैं.

Indien Müllfrauen in Mudali
2013 से गैरकानूनी है हाथ से मैला ढोनातस्वीर: Lakshmi Narayan

सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक और रेमन मैगसैसै अवार्ड विजेता समाजसेवी बेजवाडा विल्सन का मानना है कि इस दिशा में एक व्यापक सोच का अभाव है. यह पुनर्वास नहीं बल्कि पीछा छुडाने की प्रवृत्ति ज्यादा दिखती है. सीवर सफाईकर्मियों की काम करने की स्थितियां जसकीतस बनी हुई हैं. ये काम एक तरह से उनके लिए अभिशाप ही बन गया है. सामाजिक रूप से अलगथलग होकर रहे जाने वाले ये सफाईकर्मी जीवन को दांव पर लगाते हुए कई तरह की खतरनाक बीमारियों के खतरे से जूझते आ रहे हैं.

एक साल पहले ही सरकार ने लोकसभा में माना था कि मैनुअल स्केवेंजिग पर रोक प्रभावी नहीं हुई है और देश के कुछ हिस्सों में ये काम अभी भी जारी है. 2014-2018 के दरम्यान सेप्टिक टैंक और सीवर की सफाई करते हुए 323 मौतें हुई हैं. सबसे ज्यादा मौतें तमिलनाडु से रिपोर्ट की गई हैं. मुआवजा राशि के बंटवारे को लेकर भी लापरवाही और उदासीनता देखी गई है. सफाई कर्मचारी आंदोलन के एक आंकड़े के मुताबिक पिछले पांच साल में 1470 लोगों की मौत सीवर लाइनों और सैप्टिक टैंकों की सफाई करते हुए हुई.

इस बीच दिल्ली की आप सरकार ने पिछली घटनाओं से सबक लेते हुए एक बड़ा फैसला किया है. 200 सीवर सफाई मशीनें उतार दी गई हैं. सरकार का कहना है कि इससे सीवर की सफाई का काम आसान होगा और सफाईकर्मियों की सुरक्षा की भी गारंटी हो सकेगी. सबसे बड़ी बात मैनहोल और सैप्टिक टैंक में उतरने की भयावहता से उन्हे निजात मिलेगी. दिल्ली सरकार ने पिछले साल मैनुअल स्केवेंजरों के लिए स्किल डेवलेपमेंट प्रोग्राम भी लॉंच किया था. शाहदरा जिले को इस काम के लिए चुना गया था जहां ऐसे 28 लोग चिंहित किए गए थे जो पिछले 5 से 15 साल से हाथ से मैला उठा या साफ कर रहे थे. उन्हें तीन महीने का हाउसकीपिंग का प्रशिक्षण दिया गया. इसे पायलट प्रोजेक्ट बताते हुए दिल्ली के हर जिले में लागू करने की बात भी कही गई थी.

हाथ से मैले की सफाई को पूरी तरह खत्म करने के लिए स्वच्छ भारत अभियान की व्यापकता और संसाधनप्रचुरता वाले अभियान की तरह केंद्र सरकार को एक विस्तृत, डेडलाइन युक्त और पारदर्शी कार्ययोजना बनानी चाहिए जिसमें निगरानी और जवाबदेही का ढांचा भी स्पष्ट हो. इसके अनुरूप ही राज्यों को भी कार्रवाई करनी चाहिए. दिल्ली सरकार अगर मशीनें दे सकती हैं तो अन्य सरकारें भी आगे आएं. कंपनियों को अगर ये काम ठेके पर दिया जा रहा है तो कंपनियों को सख्त आदेश हों कि वे हर हाल में मशीन से ही काम लेंगी और मैनहोल में किसी कर्मचारी को नहीं उतारा जाएगा. बैंको, सरकारी एजेंसियों, शहर नियोजकों, हाउसिंग बोर्डों, निर्माण कंपनियों, एनजीओ और सिविल सोसायटी के नुमाइंदों को भी आगे आना चाहिए. मैला साफ करने वालों के प्रति भेदभाव और छुआछूत खत्म करने के लिए सामाजिक जागरूकता चाहिए और उनके साथ होने वाली रोजमर्रा की नाइंसाफियों में उनके साथ एकजुटता और पक्षधरता भी.