सुप्रीम कोर्ट मानता है मानहानि को दंड योग्य अपराध
१३ मई २०१६मानहानि संबंधी कानून के आलोचकों का कहना है कि इसका इस्तेमाल अक्सर राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ किया जाता है. मानहानि का दोषी पाये जाने पर दो साल तक की कैद हो सकती है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट के सामने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और भारतीय जनता पार्टी नेता और अब सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने मानहानि संबंधी कानून की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए याचिकाएं दाखिल की थीं, जिन पर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया है. राहुल गांधी और स्वामी पर महाराष्ट्र और तमिलनाडु में दिए गए राजनीतिक भाषणों के कारण मानहानि के मुकदमें चल रहे हैं और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ केंद्रीय मंत्री और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने मानहानि का मुकदमा दायर किया हुआ है.
इस कानून के साथ समस्या यह है कि इसमें अभियुक्त अपने बचाव में यह दलील पेश नहीं कर सकता कि उसने जो कुछ कहा है, वह पूरी तरह से सच है. उसे ना केवल अपने बयान की सत्यता प्रमाणित करनी होगी बल्कि यह भी सिद्ध करना होगा कि उसने यह बयान सार्वजनिक हित में दिया है. आम तौर पर अभियोजन पक्ष को प्रमाणित करना पड़ता है कि उसके द्वारा अभियुक्त पर लगाए गए आरोप सही हैं और अभियुक्त ने झूठ बोला है. यदि अदालत ने उसके बयान को सच मानते हुए भी यह मानने से इंकार कर दिया कि उसका बयान सार्वजनिक हित में था, तो उसे दो साल तक की कैद हो सकती है क्योंकि मानहानि संबंधी कानून आपराधिक है और इसके तहत प्रभावित व्यक्ति और सरकार, दोनों को ही मुकदमा चलाने का अधिकार है.
यही नहीं, इस कानून के तहत ऐसे व्यक्ति के खिलाफ भी केस चलाया जा सकता है जिसने कोई लिखित या मौखिक बयान दिया ही नहीं. केस इस आधार पर चलाया जा सकता है कि वह उस व्यक्ति के साथ साजिश में शामिल था जिसने वास्तव में वह लिखित या मौखिक बयान दिया जिसे मानहानि करने वाला माना जा रहा है. मानहानि का मुकदमा उस सूरत में भी चलाया जा सकता है जब आपत्तिजनक माना जा रहा बयान किसी मृत व्यक्ति के बारे में हो.
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि उसने देश भर के मजिस्ट्रेटों को निर्देश जारी कर दिए हैं कि वे निजी मानहानि की शिकायतों में बहुत सोच-समझ कर बेहद सावधानीपूर्वक समन जारी करें. लेकिन यह बात सभी को मालूम है कि अक्सर सर्वोच्च अदालत के अनेक निर्देशों का निचले स्तर पर पालन नहीं किया जाता. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि अभियुक्तों को हथकड़ी ना पहनाई जाए लेकिन अक्सर देखा जाता है कि पुलिस अभियुक्तों को हथकड़ी पहना कर अदालत ले जाती है और उन्हें उसी रूप में पेश करती है.
मानहानि के कानून का दुरुपयोग बहुत व्यापक स्तर पर होता है और अक्सर इसके जरिये आलोचकों की आवाज को दबाने का प्रयास किया जाता है. संयुक्त राष्ट्र से जुड़े कई संगठन मानहानि के कानूनों की समाप्ति की मांग कर चुके हैं क्योंकि इनका सहारा लेकर गलत कामों का पर्दाफाश करने वाले लोगों पर लगाम कसी जाती है. भारत सरकार ने इन कानूनों के पक्ष में बहुत लचर दलीलें दी हैं और इंटरनेट युग में मानहानि से बचने के लिए इनकी जरूरत बताई है. सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी नीयत और मंशा पर भरोसा करके यह मान लिया है कि इन कानूनों का गलत इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. देखना होगा कि क्या वाकई ऐसा होता भी है? अभी तक का अनुभव तो इस संबंध में बहुत आश्वस्त नहीं करता.
ब्लॉग: कुलदीप कुमार