'सुरक्षा परिषद लकवे का शिकार'
२४ सितम्बर २०१३आमसभा की बैठक से पहले ही ईरान के नए राष्ट्रपति हसन रोहानी ने अंतरराष्ट्रीय जगत को हैरान कर दिया. पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद के उलट रोहानी ने कहा कि तेहरान परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत को तैयार है. उन्होंने कहा कि ईरान सुरक्षा परिषद के 5 (स्थायी)+1 सदस्यों से बातचीत को तैयार है. ईरानी राष्ट्रपति ने अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी को भी इसमें शामिल होने का न्योता दिया.
ईरान के इस बयान से इस्राएली कूटनीति सकपका गई है. महासभा से ठीक पहले इस्राएली राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी चिंता जताई. नेतन्याहू को उम्मीद है कि मंगलवार को महासभा शुरू होते वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ईरानी राष्ट्रपति रोहानी से बहुत गर्मजोशी से नहीं मिलेंगे. महासभा का उद्घाटन अमेरिकी राष्ट्रपति के भाषण से होगा. भाषण में ओबामा ईरान और सीरिया का जिक्र करेंगे.
महासभा में एक बार फिर कुछ देश स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने जाने पर जोर देंगे. सोमवार को संयुक्त राष्ट्र में भारत के दूत अशोक मुखर्जी ने कहा कि 193 सदस्यों में से 120 सदस्य देश चाहते हैं कि मौजूदा ढांचे में सुधार हों. मुखर्जी ने कहा, "मुझे लगता है कि अंतराष्ट्रीय समुदाय खीझा हुआ है और ऐसा महसूस कर रहा है कि सुरक्षा परिषद को लकवा मार गया है. कई संकटों में ये वक्त पर प्रतिक्रिया ही नहीं देती." अनुमान है कि शनिवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी ये चर्चा छेड़ेंगे.
भारत के साथ ब्राजील, जर्मनी, जापान और दक्षिण अफ्रीका भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनना चाहते हैं. सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य होते हैं. अस्थायी सदस्य दो साल के लिए चुने जाते हैं, लेकिन इन्हें वीटों का अधिकार नहीं होता. फिलहाल अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन ही स्थायी सदस्य हैं. अफ्रीका और दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप का फिलहाल सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य के रूप में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है.
2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा अपनी 70वीं वर्षगांठ मनाएगी. माना जा रहा है कि उस मौके को देखते हुए अभी से कई सुधारों की नींव रखी जा रही है. भारत, जर्मनी, ब्राजील और जापान इनकी तैयारी कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के बाद हुई.
बीते तीन दशकों में कारोबार और तकनीक ने दुनिया को तेजी से बदला है. स्थायी सदस्य बनना चाह रहे देशों का तर्क है कि सुरक्षा परिषद को भी बदलती दुनिया के मुताबिक बनाया जाना चाहिए. ये मांग 1979 से की जा रही है, लेकिन हर बार प्रस्ताव गिरा दिया जाता है. कुछ देशों के आपसी विवाद भी इसकी वजह हैं. कुछ आलोचक कहते हैं कि कुछ देश संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली बेहतर बनाने के बजाए अपने निजी हित के लिए स्थायी सीट मांग रहे हैं. दक्षिण एशिया में भारत का पाकिस्तान और चीन से झगड़ा छुपा नहीं है. ताकतवर और बीच बीच में आक्रामक तेवर दिखाने वाले चीन से जापान चिंता में है. ब्राजील पूरे जोर के साथ दक्षिण अमेरिकी देशों की एकता पर जोर दे रहा है. वहां फाल्कलैंड द्वीपों को लेकर अर्जेंटीना और ब्रिटेन का तीखा झगड़ा है.
बीते दो सालों में अरब संकट और खास तौर पर सीरिया की हिंसा ने सुरक्षा परिषद की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं. ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका का आरोप है कि चीन और रूस के अड़ियल रुख की वजह से सुरक्षा परिषद किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई. वहीं चीन और रूस का आरोप है कि विद्रोही राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं बल्कि आतंकवादी हैं. सीरिया में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल हुआ, लेकिन सुरक्षा परिषद के आपसी मतभेद इतने गहरे हैं कि अभी तक पता ही नहीं चल सका कि जहरीली गैसों के इस्तेमाल किसने किया. करीब एक महीना हो चुका है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. महासभा को इन्हीं चुनौतियों से निपटना है और ये संदेश भी देना है कि वो मूकदर्शक संस्था नहीं है.
ओएसजे/एनआर (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)